बचपन की यादें
कैसे भूल सकती हूँ मैं ? बचपन की वो यादें
कभी मम्मी का प्यार, तो कभी पापा की मार,
कभी भाई का चिड़ाना, तो कभी बहन का रूठना,
कभी टीचर की फटकार, तो कभी यारों की यारी,
कभी अपनों से रुठ जाना, तो कभी अपनों को मनाना,
कभी साइकिल से गिरना, तो कभी स्कूटर से टकराना,
कभी दादा की लाठी, तो कभी दादी की कहानी,
कभी मम्मी की डांट, तो कभी पापा की सीख़,
कभी आँगन का झुला, तो कभी नदी का किनारा,
बस ऐसी ही होती है बचपन की वह यादें, कुछ खट्टी-कुछ मिट्ठी। बचपन में जैसे बारिश में कागज़ की नाँव बनाकर हम उसे बारिश के पानी में बह दिए जाने देते थे, वैसे ही अब अपने दिल के अरमानो की नाँव बनाकर बारिश के पानी में बहा देना है।
चल मन आज फिर से सयाने से थोड़ा नादान बन जाए, चल मन आज फ़िर से उम्र के हर बंधन तोड़ अपने ही बच्चों के साथ एक बार फ़िर से बच्चे बन जाए और उनके साथ भी वही खेल खेले, जो हम अपने ज़माने में अपने दोस्तों के साथ खेलते थे, जो आज के मोबाइल और इंटरनेट के ज़माने में हम भूल ही गए है। चल मन आज फ़िर से मोबाइल और इंटरनेट को साइड पर रख, कुछ वक़्त अपनों के साथ भी गुज़ारे, जैसे हम पहले गुज़ारा करते थे।
चल मन आज वह बचपन की याद के साथ बचपन के वह दिन फ़िर से एक बार जी ले। चल मन आज फ़िर से एक बार सब को किए हुए वादें और दुनिया की सारी रीत रस्मों को कुछ देर भूल के, दुनिया के हर बंधन तोड़ के, चल मन, बचपन की ज़िंदगी फ़िर से एक बार जी ले।
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