कर्म का फ़ल
एकबार की बात है, जैसे दो व्यापारी रामलाल और श्यामलाल दूर किसी शहर में व्यापार करने निकलते है और साथ में व्यापार करने को पांँच-पाँच लाख रुपिए धन लेकर गए। रामलाल ने अपने धन का सदुपयोग किया। धर्मशाला या होटल में किराए पे कमरा लिया। उस शहर में उसने बहुत मेहनत की। उस ५ लाख रुपये से उसने हलवाई कि दुकान खोली और हलवाई का बड़ा व्यापारी बन गया। धीरे-धीरे करके कुछ ही महीनो में उसने २० लाख रूपए और ज़्यादा कमा लिए। दो ही साल में रामलाल अपनी कमाई के पैसे लेकर वापस अपने गाँव, अपने घर, अपने परिवार के पास आ गया। हर किसी ने उसकी प्रशंसा की, वह धनी बन गया।
वैसे ही उस तरफ़ श्यामलाल ने भी होटल या धर्मशाला में एक कमरा किराए पर ले लिया। मगर शहर जाने के बाद उसकी मति बदल गई, वहां जाकर श्यामलाल शराब पीने लगा, वेश्याओं का नृत्य देखता, दोस्तों के साथ जुआ खेलता, खाना खाता और सो जाता। इसी मौज-मस्ती में उसने अपना ५ लाख का धन भी नष्ट कर दिया, जो वो व्यापार करने लाया था। धन ख़तम हो जाने पर श्यामलाल वापस घर आया तो कर्ज़ा लेकर आया था। ऊपर से जिससे वह ५ लाख रुपए उधार लेकर गया था, वह तुकाराम ने उस से उसके पैसे वापस माँगे। पैसा ना देने पर तुकाराम ने शयमलाल को अपना मजदूर बनाके अपने पास रखा। तुकाराम की बरसो तलक मजदूरी करते हुए श्यामलाल ने अपना ५ लाख का उधारी चुकाया।
तो दोस्तों, इस कहानी का तात्पर्य ये है, की धन तो सब के पास होता है, मगर उस धन का वह कैसे इस्तेमाल करता है, ये उस व्यक्ति पर निर्भर करता है। किसी ने अपना धन दो गुना किया तो किसी ने अपना धन मौज-मस्ती में ख़तम कर दिया। वैसे ही धन को कैसे खर्च करना है, ये प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है।
" अच्छे कर्म का फ़ल अच्छा और बुरे कर्म का फ़ल बुरा ही होता है। "
Bela...
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