काल रात्रि
शायद रणजीत को पता ही नहीं था, कि आज वो घर से बाहर तो जाएगा लेकिन वापस घर लौट पाएगा या नहीं ? क्योंकि जिस हवेली के पास से रणजीत गुज़र रहा था, वहीं उसका पुराना सा स्कूटर रुक जाता है, वह अपना स्कूटर बार-बार स्टार्ट करने की नाक़ाम कोशिश करता है। तभी उसे पीछे से किसी के दर्द से कहराने की आवाज़ सुनाई देती है, किसी के रोने की आवाज़ सुनाई देती है, वह पीछे मुड कर देखता है, तो पीछे या वहां आसपास कोई भी नहीं था। वह फ़िर से उसका स्कूटर स्टार्ट करने की नाक़ाम कोशिश करता है, तभी बड़ी तेज़ हवा का झोका आता है और वह वही गिर जाता है। उसे डर लगने लगा, कि ये सब क्या हो रहा है ? रणजीत उसके स्कूटर को वही छोड़ भागने लगता है, भागते-भागते उसने पीछे देखा तो, एक बहुत बड़ा काला साया उसके पीछे उसे मारने के लिए आ रहा था, जिसके पैर ही नहीं थे, वह हवा में उड रहा था, उसके हाथ हद से भी ज़्यादा ही लम्बे थे, उसके बाल ज़मीन को छुए उतने लम्बे थे, दाँत भी लम्बे और बड़े-बड़े से थे, जिसको देखते ही रूह कापने लगे और जिसकी आवाज़ सुनके कानो के परदे भी फट जाए, ऐसा डरावना सा साया उसके पीछे पड़ा हुआ था, रणजीत की समझ में कुछ नहीं आता, वह बस भागे जा रहा था, भागते-भागते उसकी साँस फुल गई थी, वह थक गया था, मगर वह काला साया अब भी उसका पीछा कर रहा था, तभी रणजीत भागते-भागते एक बड़े से पेड़ से टकराता है और गिर के बेहोश ही हो जाता है। उस रात की दूसरी सुबह को एक औरत वहां से गुज़र रही थी, तो उस औरत ने रणजीत को उसी पेड़ पे लटकते हुए देखा, वह डर के मारे चीख़ उठी, आसपास के लोग जमा हो गए, सब ने पुलिस को बुला लिया। पुलिस ने जाँच-पड़ताल शुरू की, मगर रणजीत की मौत कैसे हुई और किसने उसको मार के इतने लम्बे पेड़ पे लटका दिया ? किसी को कुछ पता नहीं चला। दिन गुज़रते गए, लोग अपने काम में लग गए और ये हादसा भी भूल गए।
रणजीत की मौत के ठीक एक हफ़्ते बाद उसी हवेली के पास से एक शाम अरविंद वहां से गुज़र रहा था, उसने उस हवेली के पास कुछ अजीब सी आवाज़ सुनी। उसे बड़ा ताजुब हुआ, उसने इधर-उधर सब तरफ़ देखा, मगर उसको कोई नज़र नहीं आया, तब वह हवेली के अंदर जाने लगा, क्योंकि उस हवेली में उसका दोस्त किशोरीलाल रहता था, अरविंद उसे मिलने ही आया था, मगर जैसे ही उसने हवेली के बाहर का दरवाज़ा खोला, अचानक से बड़ी तेज़ हवा का झोका शुरू हो गया, हवा इतनी तेज़ चल रही थी, कि वह ठीक से खड़ा भी नहीं रह सकता था, वह गिरते-गिरते बचा, वह अपने आप को संभालकर आगे बढ़ता गया। तभी पीछे से फ़िर से किसी के ज़ोर से रोने की और चिल्लाने की आवाज़ उसे सुनाई दी। अब की बार वह गभराया। मुड कर देखते हुए पूछा,
अरविंद : ककक्कोंन है वहां ? और क्या चाहिए मुझ से ?
काला साया : मैं तुम्हारी मौत हूँ और मुझे तेरा खून पीना है।
अरविंद : मैं ऐसी बातों से डरने वाला नहीं हूँ। तुम जानते नहीं मैं कौन हु ? भाग जाओ यहाँ से।
काला साया : ( हस्ते हुए ) हाहाहाहै..... तू भाग यहाँ से बच्चू, आज तो तू गया।
कहते हुए वह काला साया अरविंद को ज़ोर से धक्का देकर गिरा देता है, अब की बार डर के मारे अरविंद भागा, भागते-भागते वह भी उसी पेड़ के नीचे आके रुका, जिस पेड़ पे उस रणजीत को मार के लटकाया गया था।
काला साया : देख पीछे मुड के, तू अपनी मौत के पास खुद ही चल के आ गया है, यहीं पे तेरे दोस्त को भी मार के मैंने लटका दिया था, आज तेरी बारी है।
अरविंद : ( डरते हुए ऊपर और आस-पास देखता है, तो सच में वही पेड़ था, जहाँ उसके दोस्त को लटकाया गया था। ) मुझे छोड़ दो, मुझे माफ़ कर दो, मैंने कुछ नहीं किया।
काला साया : हाहाहा.... ( हस्ते हुए )
उसका सिर ज़ोर से उसी पेड़ से टकरा देता है, अरविंद भी वही गिर जाता है और बेहोश हो जाता है। दूसरे दिन सुबह पुलिस आके देखती है, तो अरविंद को भी उसी तरह मार के पेड़ पे लटकाया गया था, जिस तरह रणजीत को, पुलिस ने फिर से जाँच-पड़ताल शुरू की, मगर इस बार भी पुलिस को कुछ पता ना चला। इस बात को भी एक हफ्ता हो गया।
तब उस हवेली का मालिक किशोरीलाल जो कुछ दिन दूसरे गाँव रहने गया था, वह वापस आ गया, जैसे ही वह घर का दरवाज़ा खोलकर अंदर जाता है, उसे भी किसी के रोने की और चीखने की आवाज़ सुनाई देती है, लाइट अपने आप चालू बंद होती है, खिड़की अपने आप खुल जाती है, किशोरीलाल समझ जाता है, ज़रूर कोई काला साया है, इसलिए डरे बिना वह अपने कमरे में जाता है और अलमारी से एक किताब निकालकर पढ़ने लगता है, वह किताब तंत्र-विद्या और जादू टोने की थी, जिस से किसी को भी वश में किया जा सकता है, किशोरीलाल बिलकुल वैसा ही करता गया, जैसा उस किताब में लिखा था, उसने पूरे घर में मन्त्रोच्चाकार का पानी छिड़कना चालू कर दिया। तब जाके वह आवाज़ बंद हुई, उसके बाद वह एक हवन कुंड लाता है और कुछ पूजा का सामान। उस किताब में लिखे मुताबिक वह हवन करता जाता है, कुछ घंटो बाद एक कांच की बोतल में कुछ धुँवा सा आकर प्रवेश करता है और तुरंत ही किशोरीलाल ने उस बोतल का ठक्कन बंद कर उस बोतल को घर के ड्राइंग रूम में टेबल पे रख दिया। अब घर में एक सन्नाटा सा छा गया, सारी हलचल भी बंद हो गई, किशोरीलाल अपनी मुछो पे ताव लगाते हुए
किशोरीलाल : देखा, मेरा कमाल, और मुझ से टकराने का नतीजा, अब रहो बंद इस बोतल में, अब ये बोतल कभी खुलेगा नहीं और नाही तुम कभी इस में से बाहर निकल पाओगी। हाहाहाहा...... ( हस्ते हुए )
काला साया : ऐसी भूल मत कर, किशोरीलाल, जिस दिन मैं यहाँ से बाहर निकलूँगी, उस दिन तेरी ज़िंदगी का आखरी दिन होगा, समझ लेना और ये बात याद ऱखना।
किशोरीलाल उसकी बातों पे ध्यान नहीं देता, फ़िर से उसी बोतल के सामने शराब पिने बैठ जाता है।
एक हफ़्ते बाद
अजय जब घर से निकला था, तब उसे इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था, कि आज इस तूफ़ानी रात में उसके साथ क्या होनेवाला है ?
अजय अपनी ऑफिस में काम कर रहा होता है, तभी अजय की माँ का फ़ोन आता है।
माँ : कल तुम्हारे दोस्त की शादी है, तो वक़्त पे चले जाना। तुमने मुझे एक दिन पहले याद दिलाने को कहा था, इसलिए फ़ोन किया।
अजय : जी, माँ जरूर, उसका घर वैसे भी यहाँ से २०० किलोमीटर की दुरी पर ही है, तो मैं अपनी बाइक पे ही चला जाऊँगा। वैसे भी अभी गर्मियों का मौसम है, तो दिन में बहुत गर्मी रहती है, इसलिए मेरे दोस्त ने मुझे रात को ही अपने घर बुला लिया है, तो ऑफिस से दो दिन की छुट्टी लेकर शाम को ऑफिस से सीधा निकल जाऊँगा। वहाँ पहुंचकर तुम्हें फ़ोन कर दूँगा। तुम मेरी फिक्र मत करना, माँ।
शाम होते ही अजय अपनी ऑफिस से बाइक पे अपने दोस्त के वहां जाने के लिए निकलता है, अभी तो वो ५० किलोमीटर की दूरी पर ही गया होगा, कि आसमान में घने काले बादल दिखाई देने लगे थे, फ़िर भी वह बिना सोचे-समझे अपनी बाइक ४० की रफ़्तार से चलाए जा रहा था, अब सड़क तरफ सिर्फ खेत और मैदान ही नज़र आने लगे थे। तभी उसके दोस्त का फ़ोन आता है,
दोस्त : यार, कब आएगा तू, पार्टी अभी शुरू होनेवाली है, तेरे बगैर पार्टी शुरू नहीं होगी, यार।
अजय : तू समझ मैं बस आ ही गया, वो रास्ते में घने बादल और तूफ़ान आने वाला हो, ऐसा मौसम है, हवा भी बहुत तेज़ हो रही है, अभी बाइक की स्पीड बढ़ा नहीं सकता, तू पार्टी शुरू कर, मैं बस समझ आ ही गया।
दोस्त : ओ.के, तू जल्दी से आजा मेरे यार।
कहते हुए अजय का दोस्त फ़ोन रख देता है। अभी अजय ने फ़ोन रखा ही था, कि अचानक से हवा के ज़ोको के साथ तेज़ बारिश शुरू होने लगी, बारिश इतनी तेज़ थी, की अब अजय के लिए बाइक चलना मुश्किल था, इसलिए उसने एक घने पेड़ के नीचे अपनी बाइक रोकी और बारिश के कम होने का इंतज़ार करने लगा।
( वह पेड़ वही पेड़ था, जहाँ रणजीत और अरविंद को मार के पेड़ पे लटकाया गया था, मगर अजय इस बात से बिलकुल अनजान था। )
और वैसे भी पेड़ के अलावा आसपास कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। थोड़ी दूर नज़र करने पर कोई रोशनी उसे दिखाई दी।
अजय : ( अपने आप से ही कहता है ) शायद वहां कोई घर होगा, तो जब तक बारिश रूकती नहीं, मुझे उस घर में शायद पनाह मिल सकती है, क्योंकि अगर इस पेड़ के नीचे भी ज़्यादा देर खड़ा रहा तो, ये कड़कती बिजली कहीं मुझ पे ही ना बरस जाए और मैं अपने दोस्त की शादी के बदले सीधा कहीं ऊपर ही ना पहुंच जाऊँ ! अभी उसके बाद मुझे भी तो शादी करनी है यार, बच ले अजय तू !
ये सोच अजय अपनी बाइक चालू करता है, तो बाइक में से कुछ पटाखे फूटने की आवाज़ आई और इंजन से धुँआ निकलने लगा। अजय ने अपने पैरो से अपनी ही बाइक को लात मारते हुए
अजय : इसने भी बुरे वक़्त में अपना रंग दिखा ही दिया, एक तरफ ये बिजली और बरसात हो रही है, लगता है, तू तो अजय आज गया।
( अजय बाइक को वही छोड़ दूर दिख रही, उस रोशनी की ओर पैदल चलते हुए )
अजय : चल अजय, अगर बचना है तो चलना पडेगा आज। पता नहीं, ये बारिश कब बंद होगी और मैं कब जा पाउँगा, अपने दोस्त के घर ?
रोशनी के पास जाने पे उसे एक बड़ा सा घर दिखाई दिया।
अजय : चलो, घर तो मिला रुकने के लिए, मगर अजीब बात ये है, कि उस घर के अलावा वहां कोई दूसरा घर आसपास नज़र नहीं आ रहा, साला कोई भूत बंगला तो नहीं, मगर इसके आलावा मेरे पास इस वक़्त कोई और रास्ता भी तो नहीं ! चल अजय, हिम्मत कर और घर के अंदर कदम बढ़ा, जो होगा देखा जाएगा, हिम्मतें मर्दा तो मददे खुदा।
घर का दरवाज़ा आधा खुला ही था, अजय घर के दरवाज़े को खटखटाते हुए पूछ्ता है।
अजय : हेल्लो सर, हेल्लो मेम, अरे घर में कोई है क्या ?
अंदर से कोई आवाज़ ना आने पर अजय ने दो बार दरवाज़े से पूछा। फिर भी कोई जवाब नहीं आया।
अजय : ( अजय अपने आप से ) इस पुराने खंडर जैसे घर में मुझे नहीं लगता कोई रहता भी होगा। चल अजय, हनुमानजी का नाम ले और बढ़ आगे। आगे जो होगा देखा जाएगा, इस वक़्त तो सिर छुपाने के लिए जगह मिल गई यही बहुत है।
आधे खुले दरवाज़े को अजय ने ज़रा धक्का लगा के खोला, फ़िर अंदर जाता है। अंदर कमरे में एक लाल टेन जल रही थी, उसकी आंच अजय ने ज़्यादा की तो थोड़ा उजाला ज़्यादा हो गया। लालटेन की आँच तेज़ करने से कमरे में सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा।
अजय : अजीब बात है, बाहर से खंडर दिखने वाला मकान अंदर से हवेली जैसा दीखता है यार। तेरा नसीब अच्छा निकला। बच गया यार अजय तू तो !
घर में थोड़ा उजाला होते ही अजय ने फ़िर आवाज़ लगाई,
अजय : Is anybody in this house ? hay, Is anybody in house ? please say something.
अजय की इतनी आवाज़ देने पर भी किसी ने कोई ज़वाब नहीं दिया। जहाँ अजय खड़ा था, वही पे एक आराम कुर्सी थी और अजय उस कुर्सी पे बैठ गया। कुर्सी इतनी आरामदायक थी, कि अजय ने कमर टिका दी और उसे पता ही नहीं चला, कब उसकी आँख लग गई।
तभी अंदर किचन में से कुछ बर्तन गिरने की आवाज़ आती है। अजय एक पल गभराया हुआ उस और मुड़ा।
अजय : कहीं ऐसा तो नहीं, कि घर का मालिक आ गया हो और उसने मुझे देख कर अंदर कोई हथियार लेने गया हो ? है, भगवान् मेरी रक्षा करना।
अजय उस मालिक से बात करने की सोचता है। अजय बात करते-करते उस आवाज़ की ओर बढ़ता है।
अजय : सर, सुनिए ना ! मैं कोई चोर नहीं हूँ, मैं सिर्फ़ बारिश से बचने के लिए यहाँ रुका, दरवाज़े पे आके मैंने बहुत आवाज़ लगाई, मगर कोई नहीं था, इसलिए अंदर आ गया, बारिश रुकते ही मैं यहाँ से चला जाऊँगा। सर, सर। सुन रहे हो ना आप ?
अजयने डरते-डरते अपनी सफाई में सब बता दिया। मगर फ़िर भी अंदर से कोई जवाब नहीं आया। जब किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, तब अजय को इस बार सच में डर लगने लगा।
अजय : मुझे अंदर जाके देखना चाहिए की नहीं ?
( अजय बड़बड़ाता हुआ ) डरने की कोई बात नहीं, चल अजय, मैं भी देखता हूँ, कोन माइका लाल है, जो मुझे डरा सकता है ?
अजयने लालटेन हाथ में उठाई और अंदर की तरफ़ धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा, जैसे-जैसे अजय आगे बढ़ने लगा, वैसे ही उसने सामने किचन देखा और उसकी बगल में दूसरा एक बड़ा सा बैडरूम था। थोड़ा और नज़दीक जाते हुए अजयने देखा, तो बैडरूम का दरवाज़ा लॉक था, अजय दबे पाँव किचन की तरफ आगे बढ़ा और दरवाज़े को हलके से धक्का दिया। दरवाज़ा खुलते ही अजय की नज़रो ने जो देखा, वह हक्का-बक्का रह गया, उसकी सारी की सारी मर्दानगी और अक्कड़ वही की वही ढेर रह गई। अजय दुमदबा के अपनी लालटेन लेकर घबराया हुआ कमरे का दरवाज़ा बंद कर के कमरे की दूसरी ओर बिना सोचे समझे भागा। लेकिन इसी अफरा तफरी में अजय के हाथ से लालटेन गिर गया, जिससे सारा तेल फर्श पर गिर गया और वहां आग लग गई। अजयने इधर-उधर देखा तो उसे दूसरी तरफ बाथरूम नज़र आया, वो भाग कर बाथरूम में गया और पानी से भरी बाल्टी उढ़ाकर ले आया, उसने जल्दी से आग बुझा दी। उस तरफ़ किचन में से फ़िर से कुछ ड़रावनी सी आवाज़ आने लगी, जैसे अभी किचन का दरवाज़ा कोई तोड़ के उसकी और आ धमकेगा और उसे ज़िंदा ही निगल जाएगा।
अजय अभी भी वहां बूत बनकर डरा हुआ सा खड़ा हुआ है, मानो किसी ने उसे बांध लिया हो और वह हिल भी नहीं पा रहा था।
अजय एकदम डरा हुआ था, अजय घर के बाहर दरवाज़े से जाने की अभी तो सोच ही रहा था, कि तभी घर का मुख्य दरवाज़ा अचानक से धड़ाम से बंद हो गया। अजय का बाहर जाने का रास्ता भी बंद हो गया।
अजय : लो, एक ओर मुसीबत। सोचा की, जल्दी से इस दरवाज़े से बाहर निकल जाऊंगा, मगर ये दरवाज़ा भी बंद हो गया, अब क्या करेगा अजय ? जल्दी से कुछ सोच। वार्ना वो काला साया तुझे निगल जाएगा।
( अपने ही सिर पे झपट लगाते हुए ) किस ने बोला था, तुझे इस भूतिये बंगले में आने को ? अब भुगत। है, हनुमान जी, मुझे बचा लेना, प्लीज...मैं तुझे १००० लड्डू चढ़ाऊँगा।
अजय के पास वो जो लालटेन थी, वो भी गिर के टूट गई और उस आग को भी पानी डाल के अजय ने बुझा दिया था, अब चारों तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ अँधेरा ही था। ऐसे में कहाँ जाए ? अजय की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
अजय : रोशनी कहाँ से करू ? लालटेन भी टूट गया, कुछ दिखे तो आगे बढ़ के भागने का रास्ता भी दिखे, (बड़बड़ाते हुए अजय का हाथ अपनी जीन्स की जेब पे गया, जिस में मोबाइल था ) अरे, बुद्धू ! तेरा मोबाइल तो तेरी जेब में ही है, जल्दी से मोबाइल से रोशनी कर। डर के मारे कुछ याद भी तो नहीं आ रहा। कहते हुए अपने सिर पे अपने हाथों से एक झपत लगाता है। ( मोबाइल में देखते हुए ) अरे, ये क्या इस में तो नेटवर्क ही नहीं है। अब बिना नेटवर्क मैं किसे फ़ोन करू ? ( थोड़ा चिढ़ता हुआ ) चलो मोबाइल की फ़्लैश लाइट तो चालू करके देखु ! आगे क्या है ?
उसने मोबाइल की टोर्च लाइट से पीछे मुड कर देखा, तो उसके पीछे ही किचन था, जिसमें वो काला साया था, मगर अब अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी।
अजय : अजय, मौका अच्छा है, शायद किचन में वो काला साया कुछ खाना खा रहा होगा, मौके का फायदा उठाकर दरवाज़ा खोल के बाहर चला जा।
( बड़बड़ाते हुए अजय दौड़ते हुए दरवाज़े की तरफ भागता है और दरवाज़ा खोलने की नाकाम कोशिश करता है। )
अजय : लगता है, किसी ने बाहर से ही दरवाज़ा बंद कर दिया है। मतलब मुझे यहाँ बंद करने की किसी की साजिश है और मेरा इस घर में आना, मेरी सब से बड़ी भूल, मगर अब क्या ?
अजय ने मोबाइल की टोर्च से चारो और देखने की कोशिश की, शायद बाहर जाने का दूसरा कोई रास्ता नज़र आ जाए। मगर नाकाम। अजय की नज़र अपने मोबाइल पे गई, अरे मोबाइल में भले ही नेटवर्क नहीं हो, मगर इमर्जेन्सी कॉल तो कर ही सकता हूँ, ( बड़बड़ाते हुए अजय ने ११२ डायल किया। २-३ रिंग जाने के बाद किसी लड़की ने फ़ोन उठाया। )
कॉल सेंटर वाली लड़की ने कहा, हेल्लो, मैं ११२ की इमर्जेन्सी से बोल रही हूँ कहिऐ, मैं आपकी किस तरह सेवा कर सकती हूँ ?
अजय : ( बड़बड़ाते हुए ) वाह्ह ! कितनी सुरीली आवाज़ है, सारा डर चला गया।
( तभी फिर से पीछे से कुछ आवाज़ आती है। तब अजय घबराया हुआ एक ही साँस में कहता है )
अजय : मेम, मैं अजय। अभी मैं आगरा दिल्ली हाई वे पे सुमसान जगह पर बने हुए एक बड़े से घर में फस गया हूँ, दरवाज़ा बाहर से बंद हो गया है और मुझे लगता है यहाँ कोई काल साया है, मेम, प्लीज मुझे बचा लीजिऐ... प्लीज..प्लीज...
( कहते हुए अजय एकदम गभरा रहा था। ) मगर सामने से कोई जवाब नहीं आया।
अजय : हेलो, हेलो, मेम, आप आ रहे हो ना, प्लीज...
( कहते हुए अजय रो पड़ता है ) अजय ने देखा, कि फ़ोन की फ़्लैश लाइट ज़्यादा देर चलने की वजह से मोबाइल की बैटरी ने भी साथ छोड़ दिया। अजय को अब पता भी नहीं, कि उसकी कोई बात सामने कॉल सेंटर तक पहुँची भी या नहीं ?
अजयने एक बार फ़िर से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, मगर नाकाम ! घर के बाहर अब भी तूफ़ान वैसे का वैसा ही था, रह-रह कर बिजली चमकती थी, उस वक़्त घर में कुछ पल के लिए उजाला हो जा रहा था। कोई रास्ता ना दिखने पे अजय ने किचन के बगलवाले कमरे में जाने का सोचा। शायद, वहां से कोई रास्ता बाहर निकलने का नज़र आ जाए, ऐसा सोच अजय दबे पाँव उस कमरे की तरफ़ बढ़ता है, तभी अजय का हाथ अँधेरे में उस टेबल पे रखी बोतल से टकराता है, वह बोतल टेबल से गिर के टूट जाती है, उस में से कुछ काला धुँवा जैसा बाहर आ जाता है, ये देख़ अजय थोड़ा सा डर जाता है, फ़िर से एक खम्भे के पीछे छुप जाता है।
अजय : है भगवान्, ये बोतल को भी अभी गिरना था ! (अजय फ़िर से बड़बड़ाता है। ) अजय तू बहुत बड़ा बेवकूफ़ है, हर बार किसी ना किसी से टकराता रहता है। पता नहीं, इस बोतल में क्या था, कि पुरे कमरे में काला धुँवा फ़ैल गया। अब आगे भी बाहर जाने का रास्ता दिखा ही देना, हनुमानजी ! अब की बार सिर्फ़ शनिवार को नहीं, बल्कि रोज़ तेरे मंदिर आऊँगा, तुझे पुरे असली वाला तेल चढ़ाऊँगा, बस एक बार मुझे इस भूत्या बंगले से बाहर निकाल दे।
( उस बोतल में बंद की हुई आत्मा बाहर निकल आती है। )
अजय : चलो कोई बात नहीं, आगे जाकर देखता हूँ, क्या कोई रास्ता है बाहर जाने का ?
अजय किचन की तरफ बढ़ा, मगर इस बार उसका इरादा किचन में नहीं, बल्कि बगल वाले कमरे में जाने का था। अजय बैडरूम के बरवाज़े तक धीरे से पहुंचा और उसने कमरे के दरवाज़े को धीरे से धक्का लगाया, दरवाज़ा खुला ही था, वह जल्दी में अंदर जाने लगा, तो अजय का पाँव किसी चीज़ से टकराने की वजह से अजय गिरते-गिरते बचा। अजयने खुद को सँभाला और एक जगह खड़ा रह गया। अँधेरे में अजय धीरे-धीरे बैडरूम की दूसरी तरफ़ सरकने लगा, अचनाक से अजय का हाथ दिवार पे लगे स्विच बोर्ड पे पड़ा और रूम की स्विच चालू हो गई। पुरे कमरे में लाल रंग की रोशनी फ़ैल गई। उसने कमरे के चारों ओर नज़र की तो उसका डर दस गुना बढ़ गया, अजय के हाथ-पैर डर के मारे काँपने लगे। बैडरूम के कमरे में हर तरफ़ नर मुंड रखे हुए थे, बिच में एक अग्निकुंड बना था और उसके आसपास अजीब सी कलाकृति किसी रंगोली की तरह बने हुए थे। कुंड के चारों तरफ़ आसन लगे हुए थे और वही एक तरफ़ एक आदम कद की एक भयानक राक्षस की तरह दिखनेवाली मूर्ति स्थापित थी। पूरा कमरा देख कर लग रहा था, कि यहाँ कोई तंत्र-मंत्र करता होगा, ये सब देखने के बाद अजय
अजय : चल भाग, अजय, अब तो तू गया। जहाँ नहीं जाना चाहिए था, वहां चला जाता है और जो दरवाज़ा नहीं खोलना चाहिए था, वही खोल देता है। भाग...अजय..भाग...
( बड़बड़ाते हुए ) कुछ भी सोचे बिना कमरे से बाहर भागता है, अँधेरे में उसका सिर खम्भे से टकराता है, अजय चकरा जाता है, उसकी आँखो के आगे अँधेरा छाने लगता है। सिर पे गहरी चोट लगने की वजह से अँधेरे में अजय वही गिर जाता है और उसकी आँखें उसी पल बंद हो जाती है। अजय बेहोश हो जाता है।
सुबह करीब ७ बजे पीसीआर की एक गाड़ी हाई वे पे खड़े अजय के बाइक के पास पहुँच गई और आसपास अजय की तलाश शुरू कर दी। सड़क से कुछ दूर मैदान में अजय बेहोश अवस्था में मिला। पीसीआर ने उसकी जाँच करके उसे शहर के अस्पताल में भर्ती कराया, उसके पास मिले आधार कार्ड के एड्रेस पर पुलिस ने उसके बारे में अजय के घर वालों को सुचना दी। अजय की माँ फ़ौरन अस्पताल पहुंची। कुछ घंटे बाद अजय को होश आ गया। अजय से उसकी माँ को भी मिलने नहीं देते थे,
अजय : ( होश में आते ही, बड़बड़ाते हुए, अपने सिर को पकड़ते हुए ) मैं कहाँ हूँ ? मुझे यहाँ कौन लाया ? मेरे सिर पे ये चोट कैसे लगी ? ऊफ्फ... बहुत दर्द हो रहा है।
सब से पहले पुलिस अजय के पास आई और उस से सवाल करने लगी।
पुलिस : ये सब नाटक हमारे सामने नहीं चलेगा ?
अजय : क्या ? नाटक ? कौन सा नाटक ? मैंने तो कई महीनो से कोई नाटक देखा ही नहीं, वैसे सच कहु, तो मैं नाटक देखता ही नहीं, मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ इंग्लिश हॉरर वेब-सीरीज देखता हूँ ? आप नहीं देखते क्या ?
पुलिस : अबे, चुप। बकवास बंद कर, और सच-सच बता तू कल रात उस हवेली में क्या कर रहा था ? तूने ही तो पीसीआर को फ़ोन कर के बुलाया था ना, फ़िर तू रस्ते पे क्या कर रहा था ? सच-सच बता कल रात तूने उस हवेली में क्या किया और क्यों ?
अजय : ( अपने सिर को खुजाते हुए ) मैंने ? मैं हवेली में ? कौन सी हवेली ? आप क्या कह रहे हो सर, मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा, सर।
पुलिस : जब ये डंडा तेरे सिर पे पड़ेगा ना, तब तुझे सब याद आ जाएगा, बच्चू। अब तू पहले पुलिस ठाणे चल, वहां तेरी ऐसी धुलाई होगी, की तुझे सब याद आ जाएगा।
अजय : मुझे पुलिस ठाणे, क्यों ? मैंने क्या किया है ?
( अजय गिड़गिड़ाने लगा )
उस तरफ़ पुलिस ने डॉक्टर से अजय को अस्पताल से ले जाने की permission ले ली। पुलिस अजय का हाथ पकड़ते हुए, उसे घसीटते हुए, ले जाने लगे।
अजय की माँ भी वही थी, वह भी पुलिस से कह रही थी, मेरे अजय ने कुछ नहीं किया, उसे कहाँ ले जा रहे हो आप ? मेरा एक ही तो बेटा है, छोड़ दीजिऐ, आप उसे।
पुलिस : अपने बेटे को कहो, जितना जल्दी हो सके सच-सच बता दे, वरना कभी घर जा ही नहीं पाएगा, समझ गई आप ?
अजय : ( अपनी माँ से ) मम्मी, मैंने कुछ नहीं किया, ये लोग क्या कह रहे है, मुझे कुछ पता नहीं। तू मोहन को फ़ोन कर के बुला इधर। जल्दी से मम्मी और मुझे छुड़ा ले यहाँ से, मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं कभी भी पुलिस ठाणे नहीं गया, मम्मी, तुझे तो पता है मैं कितना डरपोक हूँ। ( गिड़गिड़ाते हुए )
पुलिस अजय को खींच के ले जा रही थी,
माँ : तू बिलकुल फ़िक्र मत कर बेटा, तेरी मम्मी अभी ज़िंदा है, अभी तक मरी नहीं, मैं मोहन को फ़ोन करती हूँ और तुझे छुड़ा लुंगी, ( अपने बेटे को प्यार करते हुए ) मेरा राजा बेटा !
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पुलिस ठाणे ले जाके अजय को कुर्सी से बांध दिया जाता है। वहां फ़िर से पुलिस उसे सवाल पे सवाल करती है।
पुलिस : बता साले, कल रात तूने क्या कांड किया, उस हवेली में और कैसे किया और क्यों किया ? ये भी बता।
अजय : अरे, सर ! देखो हाथ मत लगाना मुझे, मेरा दोस्त मोहन वकील है, आपके खिलाफ ही रपट कर देगा।
( पुलिस अजय को एक थप्पड़ मारते हुए )
पुलिस : तेरे दोस्त मोहन की तो ऐसी की तैसी, बता साले, अपना दोस्त वकील है, तो धमकी देता है मुझे ? साला !
( अजय रो पड़ता है। )
अजय : हां, याद आया, कल रात मेरी बाइक बारिश की बजह से बिगड़ गई थी, तो बाइक को मैंने वही छोड़ दूर एक हवेली की तरफ गया, जहाँ रोशनी दिखाई दे रही थी, मैं बारिश से बचने के लिए उस हवेली में गया, मगर बाहर से खंडर जैसी दिखनेवाली हवेली अंदर से लाजवाब थी, मगर वहां कोई नहीं था, दरवाज़ा आधा खुला हुआ था, मैंने बाहर से बहुत आवाज़ लगाई, कि कोई है वहां ? मगर हवेली में कोई नहीं था।
पुलिस : अच्छा, झूठ मत बोल, हवेली में कोई नहीं था। अगर हवेली में कोई नहीं था, तो वहां लाश कैसे आई ? और किसने किशोरीलाल का खून किया ?
( अजय गभरा जाता है। )
अजय : लाश ? खून ? ये सब आप क्या कह रहे हो सर ? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जैसा आप कह रहे हो और वहां कोई आदमी भी नहीं था।
पुलिस : सब खुनी पहले ऐसा ही बोलते है, मार खाने के बाद सब की अक्कल ठिकाने लग जाती है, समझे ?
अजय : खुनी और मैं ? क्या सर आप भी, मैंने आज तक मक्खी भी नहीं मारी, तो खून कैसे करूंगा भला ? आप मज़ाक कर रहे हो ना सर ?
पुलिस : ( गुस्से में आकर ) अजय ? ये कोई मज़ाक की बात नहीं है, सच में खून हुआ है वह भी बहुत बुरी तरह से।
पुलिस हवालदार से : दिखाओ, इसको लाश की तस्बीर, तभी इसको याद आएगा, कि कल रात इसने क्या किया था हवेली में ?
हवालदार अजय को लाश की तस्बीर दिखाता है।
अजय डर के रोने लगता है।
अजय : ममम.... मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है, सर ! मेरी बात का यकीं कीजिए।
तभी पुलिस ठाणे में अजय की माँ और मोहन हाथ में फाइल लेकर आते है।
मोहन : हेल्लो, इंस्पेक्टर साहेब, मैं ही हूँ, advocate मोहन। और अजय का केस मेरे ही हाथो में है, अब मैं अजय से पहले अकेले में कुछ बातें करना चाहता हूँ। इसकी परमिशन भी मैंने ले ली है, ( एक कागज़ पुलिस के हाथों में पकड़ाते हुए ) उसके बाद ही आप को जो करना हो कर लीजिएगा, सर।
पुलिस : ओह्ह, तो आप हो, अजय के मोहन। कर लीजिए, जितनी बात आपको करनी हो अपने दोस्त से, लेकिन याद ऱखना, मोहनजी, सारे सबूत अजय की ओर ही इशारा करते है, कानून की नज़रो से कोई बच नहीं सकता।
मोहन : देखते है।
ऐसा कहते हुए मोहन अजय की रस्सी खोल देता है, अजय तुरंत ही मोहन के गले लग जाता है।
अजय : यार, मोहन अच्छा हुआ तू आ गया तो, मैं सच कह रहा हूँ, मैंने कुछ नहीं किया। तू तो मुझे बचपन से ही जानता है ना ! मुझे बहुत डर लग रहा है, यार !
मोहन : अरे, मैं आ गया हूँ ना अभी, तू डर मत। मैं सब ठीक कर दूँगा। पहले मुझे तू सच-सच बता, कल तेरे साथ क्या हुआ और तू उस हवेली में कैसे पहुँचा ?
अजय : ( अपने आँसू पोछते हुए ) हां, यार सब बताता हूँ, ( कहते हुए, अजयने रात को जो भी हुआ, सब कुछ उसके दोस्त मोहन को बता दिया। ) मगर यार मेरी समझ में नहीं आ रहा , कि मैं हवेली में एक खम्भे से टकराकर बेहोश हो गया था तो फिर पुलिस को मैं हवेली के बाहर कैसे मिला ? और जब उस घर में कोई था ही नहीं, तो खून किसका और कैसे हुआ होगा ? तू तो जानता ही है, मैं कभी किसी के साथ झगड़ा भी नहीं करता तो खून तो बहुत दूर की बात है, तू भी सोच ज़रा दोस्त !
मोहन : अरे, अजय शांत हो जा, शांत हो जा, तुझे कुछ नहीं होगा। मुझे अब खुद हवेली जाके सब जाँच-पड़ताल करनी होगी। तेरी विल भी करवा दी है, तू घर जाकर सो जा। वैसे भी कल रात जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह से तुम बहुत परेशान और थक गए हो।
अजय : हाँ, यार तू सच ही कह रहा है।
मोहन : अच्छा, तो चल।
( मोहन पुलिस से परमिशन लेकर अजय को लेकर वहां से चला जाता है। अजय को घर छोड़कर मोहन उसी वक़्त पुलिस को लेकर हवेली में जाता है। हवेली में मोहन खुद एक-एक चीज़ की तलाश करता है, कौन सी जगह, कहाँ, क्या चीज़ है, सब कुछ गौर से देखता है। मोहन ये जानने की कोशिश करता है, कि कल रात क्या हुआ होगा। तभी मोहन उस ड्राइंग रूम तक पहुँचता है, जहाँ किशोरीलालने तंत्र-मंत्र किया था और मोहन को वह किताब भी मिलती है, जिस में किसी की आत्मा को कैसे वस् में किया जाता है, वह भी लिखा हुआ था।
मोहन : ( पुलिस से ) ये देखिए सर, इसका मतलब साफ़ है, कि ये काम जरूर किसी ऐसे इंसान का है, जो ये तंत्र-विद्या जानता था, या फ़िर किसी आत्मा ने बदले के लिए किया होगा या फिर कोई बुरी आत्मा का साया अब भी इस हवेली पर है।
कुछ देर सोचने के बाद
मोहन : अगर ये हवेली किशोरीलाल की है, तो ये उसी ने किया होगा, मगर इस बात का पता कैसे लगाया जाए, क्योंकि किशोरीलाल तो मर गया, अब किस से पूछे इस राज़ के बारे में ?)
पुलिस : और ऊपर से वो जो रणजीत और अरविंद की मौत हुई थी, उस का भी अभी तक कुछ पता नहीं चला, मुझे तो लगता है, वो दोनों खून भी अजय ने ही किए होंगे ! उस वक़्त तो वो बच गया, मगर इस बार वो नहीं बचेगा। गुनेगार कोई ना कोई सुराग छोड़ ही जाता है, तो मैं सबूत ढूँढ ही लूँगा,
( पुलिस अपनी मुछो पर ताव देते हुए कहता है। )
मोहन : अब इसका भी ज़िम्मेदार अजय कैसे हुआ ? और वैसे भी अजय को तंत्र-विद्या के बारे में कुछ नहीं पता। अजय बचपन से ही डरपोक है। वो क्या किसी का खून करेगा ? एक मक्खी तक तो मार नहीं सकता।
पुलिस : वो तो आनेवाला कल ही बताएगा, कि उस ने मक्खी मारी या इंसान को। हह्म्म..
मोहन को अब भी पुलिस की किसी भी बात पर यकीं नहीं हो रहा था, मोहन और इंस्पेक्टर हवेली से चले जाते है। दरवाज़ा बंद हो जाता है।
दूसरे ही दिन सुबह मोहन एक तांत्रिक बाबा को लेकर अजय के घर जाता है, तांत्रिक बाबा पहले तो अपनी झोली में से गंगाजल की बोतल निकालकर पुरे घर में गंगाजल का छंटकाव करते है, अजय अपने कमरे में सो रहा था, अजय के ऊपर कुछ गंगाजल के पानी की छींटे उडी, तब वो फटाक से खड़ा हो गया और ड़रावनी आवाज़ में कहता है, कौन है वहां ? भाग जाओ वहां से ? वार्ना में सब को मार डालूँगी।
मोहन, तांत्रिक बाबा और अजय की माँ ने अजय का ऐसा रूप और आवाज़ पहली बार देखा। तांत्रिक बाबाने फ़िर से अपनी झोली में से एक डिबिया निकाली और भस्म हाथ में लेते हुए, कुछ मंत्र पढ़कर अजय के ऊपर भस्म दाल दी। अजय के ऊपर जैसे ही वह भस्म गिरती है, उसे बड़ी ज़ोर का धक्का लगता है और वह अपने आप पीछे रखे बिस्तर पे गिर जाता है और बेहोश हो जाता है। मोहन उसके करीब जाकर उसे आवाज़ लगाता है।
मोहन : अजय, अजय उठो, क्या हुआ तुम्हें ? बाबाजी ये कुछ बोल क्यों नहीं रहा ? ये मेरे दोस्त अजय को क्या हुआ है ?
तांत्रिक बाबा : मुझे इस घर में पाँव रखते ही पता चल गया था, की कोई बुरा साया इस घर पे भी है, इसलिए मैंने पहले गंगाजल पुरे घर में और फ़िर इसके ऊपर भी छिड़का, तभी उस साये ने अपना रंग दिखा दिया। मैंने अजय के ऊपर जो मंत्रित की हुई भस्म डाली है, इस से वह आत्मा कुछ देर के लिए शांत हो जाएगी, अब मुझे इसके सिर पे हाथ रख के देख लेने दे, ताकि मुझे पता चल सके की क्या हुआ था ? शायद कुछ पता चल जाए, इस में डरने की कोई बात नहीं। आप ज़रा हटिए।
कहते हुए बाबा अजय के सामने बैठ जाते है, अजय के सिर के बीचो बिच कुमकुम का बड़ा टिका लगाते है, उसके बाद उसी टिके पे अपना अंगूठा रख, आँख बंद कर कुछ देखने की कोशिश करते है।
बाबाजी को दिखाई देता है, कि कैसे किशोरीलाल का खून अजयने किया मगर उस वक़्त अजय अपने आपे में नहीं था, किसी काले साया का असर उस पे था, ये बात बाबा को पता चल गई, और खून करने के बाद भी उस काले साए को शांति नहीं मिलती, इस लिए अब वह काला साया अजय के शरीर में रहता है,
मोहन : तो बाबाजी, अजय को उस साये से कैसे बचाया जाए, कोई तो उपाय होगा ?
बाबाजी : हाँ, आज अमावस्या की ही रात है, तो आज रात ही हमें अजय को लेकर उस हवेली में जाना होगा और हवन करना होगा, उस आत्मा के साथ बात करनी होगी, तब पता चलेगा, की उस आत्मा ने ऐसा क्यों किया ? उसके बाद ही हम उस आत्मा को अजय से बाहर निकाल सकते है।
मोहन : ( थोड़ा गभराता है ) अजय की जान को खतरा तो नहीं ना ?
बाबाजी : अजय की जान पर खतरा तो अब भी है, लेकिन आज रात अगर हम ने ये नहीं किया, तो ये काला साया हमेशा के लिए अजय के शरीर के साथ जुड़ जाएगा. इसके बाद इसे निकालना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
मोहन : आप को जैसा ठीक लगे, बाबाजी। आप बस मेरे दोस्त को ठीक कर दीजिए।
( हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए )
मोहन एक वकील था, तो उसके हाथ ऐसे भी कई केस पहले भी आए हुए थे, इसलिए मोहन बाबा की बातों पे यकीं कर लेता है।
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शाम को मोहन ने हवेली जाने की सब तैयारियां कर ली, पूरी हवेली में cctv कैमरा भी लगवा दिया, ताकि सबुत भी हाथ लग जाए. मोहन ने पुलिस को भी रात को वहां बुला लिया। वे लोग खिड़की में से सब कुछ देख रहे थे। ड्राइंग रूम में बिच में ही बाबाजी हवन करने बैठ गए, सामने अजय को बैठा दिया। मोहन भी दूर खड़ा सब देख रहा था, हवन के बिच में ही अजय खड़ा होके भागने लगा, तब बाबाजी का इशारा समझते हुए मोहन ने उसे ज़ोर से पकड़ लिया और कुर्सी से बांध के फिर से बैठा दिया, वह छटपटाने लगा, बाबाजी ने हवन चालू रखा, अजय के ऊपर फिर से मंत्रोच्चार किया हुआ पानी डाला। अजय ज़ोर से बोला, " मुझे छोड़ दो, मैं सब को मार डालूँगी। "
बाबाजी : पहले तू अजय के शरीर को छोड़ दे, उसके बाद तुझे भी छोड़ देंगे।
अजय : मैं कहीं नहीं जाउंगी, हाहाहा....
बाबाजी : मैं देखता हूँ, तू ऐसे कैसे नहीं जाएगी ? लेकिन ये तो बता, तूने किशोरीलाल और उसके दोस्तों का खून कैसे और क्यों किया ?
किशोरीलाल का नाम सुनते ही अजय के अंदर की आत्मा रोने लगी।
बाबाजी : तेरे दिल में जो भी है, बता दे।
अजय : ( के अंदर की आत्मा कहती है ) इसी हवेली में उस काल रात्रि को किशोरीलाल अपने दोनों दोस्त रणजीत और अरविंद के साथ ड्राइंग रूम में बैठ के पार्टी कर रहा था, तभी मैं खाना परोसने आती हूँ, तीनो दोस्त शराब के नशे में थे, तो पहले अरविंद ने मेरी कमर में हाथ डाला, उसके बाद रणजीत ने मेरा दुपटा खिंच लिया और किशोरीलाल कहता है,
किशोरीलाल : मेरी गॉड में आकर बैठ जा, छमिया, तू हमारी हर रात रंगीन कर दे, तुझे रानी की तरह रखेंगे इस हवेली में, फ़िर तुझे कोई काम करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
फ़िर मैं तीनो दोस्तों से बचने के लिए घर से बाहर दरवाज़े की तरफ भागती हूँ, लेकिन रणजीत ने आकर घर का दरवाज़ा बंद कर दिया, मैं अपने आप को बचाने के लिए पुरे घर में पागलो की तरह इधर-उधर भागति रही, मगर तीन मर्द के सामने एक लड़की कैसे बच पाती ? किशोरीलाल के दोस्तों ने मुझको पकड़कर बैडरूम में ले जाते है, मुझे बिस्तर से बांध देते है, फिर मेरे साथ बलात्कार करते है, आखिर में किशोरीलाल की बारी आई, तभी मेरी माँ मुझे लेने आ जाती है, हवेली में से चीखने की आवाज़ सुनते ही मेरी माँ, जिसका नाम लक्ष्मी था, वह भागति हुई दरवाज़ा खटखटाती है, मगर कोई उसकी आवाज़ नहीं सुनता। माँ ने ड्राइंग रूम की खिड़की में से सब देखा, कि कैसे तीनो मर्द उसकी बेटी के साथ बलात्कार कर रहे थे। मेरी माँ मुझे बचाने के लिए पीछे के दरवाज़े से अंदर जाती है, किचन में से एक बड़ा सा चाकू हाथ में उठाकर तीनो दोस्त को चाकू दिखा के डराती है,
लक्ष्मी : पास मत आना, वार्ना तुम सब को जान से मार डालूँगी, एक दिन तो क्या मैंने अपनी लड़की को काम पे भेजा, तुम नालायको ने तो अपना ही काम कर लिया। अपनी बेटी का हाथ खोलते हुए, उसको चद्दर ओढ़ा रही थी, तभी किशोरीलाल ने मेरी माँ के हाथ से चाकू छीन लिया, उसके साथ भी तीनो दोस्त बदतमीज़ी करने लगे, माँ मुझे आवाज़ देती रही, मगर मैं दर्द सेह कर थक गई थी, मुझ से खड़ा भी नहीं रहा जाता था, लेट के सब देख रही थी, उसके बाद माँ भी अपने आप को बचाने के लिए इधर-उधर भाग रही थी, तभी उसके हाथो वहां टेबल पे रखी कांच की बोतल आती है, माँ ने उस कांच की बोतल से रणजीत का सिर फोड़ दिया। किशोरीलाल गुस्से में चाकू लेके उसके पीछे भागता है, तभी चाकू सच में माँ को लग जाता है और वह भी वही गिर जाती है, तीनो दोस्त ने मिलकर माँ और मुझे दोनों की लाश को इसी हवेली के पीछे खुले मैदान में गद्दा खोद के दफ़ना दिया। हम दोनों का इस दुनिया में कोई नहीं था, मेरे बाबा सालों पहले मर गए थे और माँ की एक ही बेटी मैं थी, माँ घर का बाई का काम करके गुज़ारा कर लेती थी, इत्फ़ाक से मैं उस वक़्त सिर्फ बेहोश ही हुई थी, बिना कुछ देखे तीनो दोस्तों ने मुझ को ज़िंदा ही वहां मेरी माँ के साथ दफ़ना दिया। गद्दा बहुत गहरा था, तो दम घुटने की वजह से मैं भी अपनी माँ के साथ मर गई। लेकिन तब से मेरी और मेरी माँ की आत्मा इस हवेली में भटक रही है। मुझे तीनो दोस्तों को जान से मारना था, जिसने मेरा और मेरी माँ का ऐसा हाल किया था।
इसलिए पहले तो मैंने रणजीत को अपना शिकार बनाया, उसे मार के पेड़ के ऊपर लटका दिया, उसके बाद अरविंद की बारी थी, उसे भी मैंने भागते हुए उसी पेड़ की तरफ ले गई और उसे भी मैंने पेड़ पे लटका दिया। उसके बाद बारी आती है, किशोरीलाल की, तो वह तंत्र-विद्या जानता था, इसलिए उसे मारना हमारे अकेले के लिए मुश्किल था, तो जब उस रात मैंने अजय को हवेली में देखा, तो सोचा, कि ये मेरे काम का है, इसलिए हम दोनों ने इस अजय के शरीर का सहारा ले लिया और उसके शरीर में प्रवेश किया। कुछ देर बाद किशोरीलाल घर आता है, तब सब से पहले हमने घर का दरवाज़ा बंद कर दिया, ताकि वह भाग ना सके। उसके बाद किशोरीलाल ने अजय को वहां उल्टा पड़ा हुआ देखा, तो उसे सीधा किया, तभी अजय की आँखें लाल हो गई, उसके दांत बड़े हो गए, वह शक्तिमान बन गया, अजय ने ज़ोर से उसे धक्का दिया, किशोरीलाल धड़ाम से जाके दूसरी और गिरा, उसके पीछे अजय भी भागा, अजयने हाथ में एक रस्सी ली और किशोरीलाल को खम्भे से बांध दिया, फिर अजयने किशोरीलाल को मारना शुरू किया। किशोरीलाल रोते हुए कहता है, " तुम कौन हो ? मुझे क्यों मार रहे हो ? मुझे छोड़ दो, मैंने कुछ नहीं किया। "
अजय के अंदर का काला साया कहता है, कि " तूने कुछ नहीं किया ? याद कर उस रात मैं और मेरी माँ भी तेरे पास ऐसे ही गिड़गिड़ा रहे थे, मगर तूने हमारी एक ना सुनी और मुझे तो तूने ज़िंदा ही उस गद्दे में दफ़ना दिया था।
किशोरीलाल : तू उस वक़्त ज़िंदा थी, ममममाफ कर दे मुझे, मुझे नहीं पता था, कि तू ज़िंदा थी, मेरे दोस्त ने कहाँ कि तू भी मर गई है, इसलिए तुझे भी दफना दिया। दूसरी बार ऐसी गलती नहीं होगी, अब जाने दे मुझे। तुझे यहाँ हवेली में जब तक रहना है, आराम से रह, मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूंगा, मैं कहीं और चला जाता हूँ। तू आराम से हवेली में रहना, मुझे छोड़ दे।
अजय : दूसरी बार ऐसी गलती के लिए तू ज़िंदा ही नहीं बचेगा, किशोरीलाल ! कहते हुए अजय उसकी रस्सी खोल देता है, और कहता है, भाग किशोरीलाल भाग, तुझे जितना भागना है भाग, आज तुझे बचाने कोई नहीं आएगा।
किशोरीलाल भागता रहता है, घर में इधर-उधर, अजय पीछे से उसको मारता जाता है। किशोरीलाल थक के खम्भे से टकरा कर गिर जाता है, तब अजय गुस्से में किशोरीलाल के सिने पे चाकू मारता जाता है, मारता जाता है....
इतना कहते हुए अजय उसी पल कुर्सी के साथ गिरकर फ़िर से बेहोश हो जाता है। मोहन अजय के पास जाकर उसे छुड़ा देता है। पुलिस हवेली के पीछे जाकर गद्दा खोजती है, जहाँ माँ और बेटी की लाश को दफनाया गया था। गद्दा खोदने पर सच में वहां से दो औरत की लाश मिलती है।
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बाबाजीने कहा, हम को इन दोनों माँ बेटी का अच्छे से अंतिम संस्कार करना चाहिए और उसके पीछे जो भी क्रियाकर्म करना पड़ता है, वह भी करना पड़ेगा, तभी दोनों माँ, बेटी की आत्मा को शांति मिलेगी और वह लड़की की आत्मा अजय के शरीर से दूर चली जाएगी, क्योंकि उस आत्मा को शरीर के अंदर प्रवेश करना तो आता था मगर बाहर कैसे निकलते है ये शायद उसे पता नहीं था, इसलिए वह आत्मा अजय के शरीर को छोड़ ना सकी।
मोहन : जैसा आप कहे, बाबाजी। वैसा ही करेंगे।
बाबाजी के कहे मुताबिक दोनों माँ, बेटी का अच्छे से क्रियाकर्म किया गया, उसके बाद ही उस लड़की की आत्मा भी अजय के शरीर को छोड़ पाई।
अजय होश में आता है, उसके सामने फ़िर से पोलिस खड़े हुए थे, पुलिस को देखकर
अजय : मैंने कुछ नहीं किया, मुझे छोड़ दीजिए। कहते हुए रोने लगा।
वहां खड़े सब लोग हसने लगे। अजय की माँ और मोहन ने अजय को गले लगा लिया।
Bela...
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