काल रात्रि भाग -२
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि अजय उस तूफानी रात में बड़ी हवेली में फ़स गया था, बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे नज़र नहीं आ रहा था, तभी भागते-भागते अजय एक खम्भे से टकराता है और वही बेहोश होके गिर जाता है। सुबह पुलिस को अजय सड़क के कुछ दूर मैदान में बेहोश अवस्था में मिला। पुलिस उसे अस्पताल ले जाती है, अजय के होश में आने के बाद उस से जाँच-पड़ताल करती है, अब आगे...
पुलिस ठाणे ले जाके अजय को कुर्सी से बांध दिया जाता है। वहां फ़िर से पुलिस उसे सवाल पे सवाल करती है।
पुलिस : बता साले, कल रात तूने क्या कांड किया, उस हवेली में और कैसे किया और क्यों किया ? ये भी बता।
अजय : अरे, सर ! देखो हाथ मत लगाना मुझे, मेरा दोस्त मोहन वकील है, आपके खिलाफ ही रपट कर देगा।
( पुलिस अजय को एक थप्पड़ मारते हुए )
पुलिस : तेरे दोस्त मोहन की तो ऐसी की तैसी, बता साले, अपना दोस्त वकील है, तो धमकी देता है मुझे ? साला !
( अजय रो पड़ता है। )
अजय : हां, याद आया, कल रात मेरी बाइक बारिश की बजह से बिगड़ गई थी, तो बाइक को मैंने वही छोड़ दूर एक हवेली की तरफ गया, जहाँ रोशनी दिखाई दे रही थी, मैं बारिश से बचने के लिए उस हवेली में गया, मगर बाहर से खंडर जैसी दिखनेवाली हवेली अंदर से लाजवाब थी, मगर वहां कोई नहीं था, दरवाज़ा आधा खुला हुआ था, मैंने बाहर से बहुत आवाज़ लगाई, कि कोई है वहां ? मगर हवेली में कोई नहीं था।
पुलिस : अच्छा, झूठ मत बोल, हवेली में कोई नहीं था। अगर हवेली में कोई नहीं था, तो वहां लाश कैसे आई ? और किसने किशोरीलाल का खून किया ?
( अजय गभरा जाता है। )
अजय : लाश ? खून ? ये सब आप क्या कह रहे हो सर ? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जैसा आप कह रहे हो और वहां कोई आदमी भी नहीं था।
पुलिस : सब खुनी पहले ऐसा ही बोलते है, मार खाने के बाद सब की अक्कल ठिकाने लग जाती है, समझे ?
अजय : खुनी और मैं ? क्या सर आप भी, मैंने आज तक मक्खी भी नहीं मारी, तो खून कैसे करूंगा भला ? आप मज़ाक कर रहे हो ना सर ?
पुलिस : ( गुस्से में आकर ) अजय ? ये कोई मज़ाक की बात नहीं है, सच में खून हुआ है वह भी बहुत बुरी तरह से।
पुलिस हवालदार से : दिखाओ, इसको लाश की तस्बीर, तभी इसको याद आएगा, कि कल रात इसने क्या किया था हवेली में ?
हवालदार अजय को लाश की तस्बीर दिखाता है।
अजय डर के रोने लगता है।
अजय : ममम.... मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है, सर ! मेरी बात का यकीं कीजिए।
तभी पुलिस ठाणे में अजय की माँ और मोहन हाथ में फाइल लेकर आते है।
मोहन : हेल्लो, इंस्पेक्टर साहेब, मैं ही हूँ, advocate मोहन। और अजय का केस मेरे ही हाथो में है, अब मैं अजय से पहले अकेले में कुछ बातें करना चाहता हूँ। इसकी परमिशन भी मैंने ले ली है, ( एक कागज़ पुलिस के हाथों में पकड़ाते हुए ) उसके बाद ही आप को जो करना हो कर लीजिएगा, सर।
पुलिस : ओह्ह, तो आप हो, अजय के मोहन। कर लीजिए, जितनी बात आपको करनी हो अपने दोस्त से, लेकिन याद ऱखना, मोहनजी, सारे सबूत अजय की ओर ही इशारा करते है, कानून की नज़रो से कोई बच नहीं सकता।
मोहन : देखते है।
ऐसा कहते हुए मोहन अजय की रस्सी खोल देता है, अजय तुरंत ही मोहन के गले लग जाता है।
अजय : यार, मोहन अच्छा हुआ तू आ गया तो, मैं सच कह रहा हूँ, मैंने कुछ नहीं किया। तू तो मुझे बचपन से ही जानता है ना ! मुझे बहुत डर लग रहा है, यार !
मोहन : अरे, मैं आ गया हूँ ना अभी, तू डर मत। मैं सब ठीक कर दूँगा। पहले मुझे तू सच-सच बता, कल तेरे साथ क्या हुआ और तू उस हवेली में कैसे पहुँचा ?
अजय : ( अपने आँसू पोछते हुए ) हां, यार सब बताता हूँ, ( कहते हुए, अजयने रात को जो भी हुआ, सब कुछ उसके दोस्त मोहन को बता दिया। ) मगर यार मेरी समझ में नहीं आ रहा , कि मैं हवेली में एक खम्भे से टकराकर बेहोश हो गया था तो फिर पुलिस को मैं हवेली के बाहर कैसे मिला ? और जब उस घर में कोई था ही नहीं, तो खून किसका और कैसे हुआ होगा ? तू तो जानता ही है, मैं कभी किसी के साथ झगड़ा भी नहीं करता तो खून तो बहुत दूर की बात है, तू भी सोच ज़रा दोस्त !
मोहन : अरे, अजय शांत हो जा, शांत हो जा, तुझे कुछ नहीं होगा। मुझे अब खुद हवेली जाके सब जाँच-पड़ताल करनी होगी। तेरी विल भी करवा दी है, तू घर जाकर सो जा। वैसे भी कल रात जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह से तुम बहुत परेशान और थक गए हो।
अजय : हाँ, यार तू सच ही कह रहा है।
मोहन : अच्छा, तो चल।
( मोहन पुलिस से परमिशन लेकर अजय को लेकर वहां से चला जाता है। अजय को घर छोड़कर मोहन उसी वक़्त पुलिस को लेकर हवेली में जाता है। हवेली में मोहन खुद एक-एक चीज़ की तलाश करता है, कौन सी जगह, कहाँ, क्या चीज़ है, सब कुछ गौर से देखता है। मोहन ये जानने की कोशिश करता है, कि कल रात क्या हुआ होगा। तभी मोहन उस ड्राइंग रूम तक पहुँचता है, जहाँ किशोरीलालने तंत्र-मंत्र किया था और मोहन को वह किताब भी मिलती है, जिस में किसी की आत्मा को कैसे वस् में किया जाता है, वह भी लिखा हुआ था।
मोहन : ( पुलिस से ) ये देखिए सर, इसका मतलब साफ़ है, कि ये काम जरूर किसी ऐसे इंसान का है, जो ये तंत्र-विद्या जानता था, या फ़िर किसी आत्मा ने बदले के लिए किया होगा या फिर कोई बुरी आत्मा का साया अब भी इस हवेली पर है।
कुछ देर सोचने के बाद
मोहन : अगर ये हवेली किशोरीलाल की है, तो ये उसी ने किया होगा, मगर इस बात का पता कैसे लगाया जाए, क्योंकि किशोरीलाल तो मर गया, अब किस से पूछे इस राज़ के बारे में ?)
पुलिस : और ऊपर से वो जो रणजीत और अरविंद की मौत हुई थी, उस का भी अभी तक कुछ पता नहीं चला, मुझे तो लगता है, वो दोनों खून भी अजय ने ही किए होंगे ! उस वक़्त तो वो बच गया, मगर इस बार वो नहीं बचेगा। गुनेगार कोई ना कोई सुराग छोड़ ही जाता है, तो मैं सबूत ढूँढ ही लूँगा,
( पुलिस अपनी मुछो पर ताव देते हुए कहता है। )
मोहन : अब इसका भी ज़िम्मेदार अजय कैसे हुआ ? और वैसे भी अजय को तंत्र-विद्या के बारे में कुछ नहीं पता। अजय बचपन से ही डरपोक है। वो क्या किसी का खून करेगा ? एक मक्खी तक तो मार नहीं सकता।
पुलिस : वो तो आनेवाला कल ही बताएगा, कि उस ने मक्खी मारी या इंसान को। हह्म्म..
मोहन को अब भी पुलिस की किसी भी बात पर यकीं नहीं हो रहा था, मोहन और इंस्पेक्टर हवेली से चले जाते है। दरवाज़ा बंद हो जाता है।
दूसरे ही दिन सुबह मोहन एक तांत्रिक बाबा को लेकर अजय के घर जाता है, तांत्रिक बाबा पहले तो अपनी झोली में से गंगाजल की बोतल निकालकर पुरे घर में गंगाजल का छंटकाव करते है, अजय अपने कमरे में सो रहा था, अजय के ऊपर कुछ गंगाजल के पानी की छींटे उडी, तब वो फटाक से खड़ा हो गया और ड़रावनी आवाज़ में कहता है, कौन है वहां ? भाग जाओ वहां से ? वार्ना में सब को मार डालूँगी।
मोहन, तांत्रिक बाबा और अजय की माँ ने अजय का ऐसा रूप और आवाज़ पहली बार देखा। तांत्रिक बाबाने फ़िर से अपनी झोली में से एक डिबिया निकाली और भस्म हाथ में लेते हुए, कुछ मंत्र पढ़कर अजय के ऊपर भस्म दाल दी। अजय के ऊपर जैसे ही वह भस्म गिरती है, उसे बड़ी ज़ोर का धक्का लगता है और वह अपने आप पीछे रखे बिस्तर पे गिर जाता है और बेहोश हो जाता है। मोहन उसके करीब जाकर उसे आवाज़ लगाता है।
मोहन : अजय, अजय उठो, क्या हुआ तुम्हें ? बाबाजी ये कुछ बोल क्यों नहीं रहा ? ये मेरे दोस्त अजय को क्या हुआ है ?
तांत्रिक बाबा : मुझे इस घर में पाँव रखते ही पता चल गया था, की कोई बुरा साया इस घर पे भी है, इसलिए मैंने पहले गंगाजल पुरे घर में और फ़िर इसके ऊपर भी छिड़का, तभी उस साये ने अपना रंग दिखा दिया। मैंने अजय के ऊपर जो मंत्रित की हुई भस्म डाली है, इस से वह आत्मा कुछ देर के लिए शांत हो जाएगी, अब मुझे इसके सिर पे हाथ रख के देख लेने दे, ताकि मुझे पता चल सके की क्या हुआ था ? शायद कुछ पता चल जाए, इस में डरने की कोई बात नहीं। आप ज़रा हटिए।
कहते हुए बाबा अजय के सामने बैठ जाते है, अजय के सिर के बीचो बिच कुमकुम का बड़ा टिका लगाते है, उसके बाद उसी टिके पे अपना अंगूठा रख, आँख बंद कर कुछ देखने की कोशिश करते है।
बाबाजी को दिखाई देता है, कि कैसे किशोरीलाल का खून अजयने किया मगर उस वक़्त अजय अपने आपे में नहीं था, किसी काले साया का असर उस पे था, ये बात बाबा को पता चल गई, और खून करने के बाद भी उस काले साए को शांति नहीं मिलती, इस लिए अब वह काला साया अजय के शरीर में रहता है,
मोहन : तो बाबाजी, अजय को उस साये से कैसे बचाया जाए, कोई तो उपाय होगा ?
बाबाजी : हाँ, आज अमावस्या की ही रात है, तो आज रात ही हमें अजय को लेकर उस हवेली में जाना होगा और हवन करना होगा, उस आत्मा के साथ बात करनी होगी, तब पता चलेगा, की उस आत्मा ने ऐसा क्यों किया ? उसके बाद ही हम उस आत्मा को अजय से बाहर निकाल सकते है।
मोहन : ( थोड़ा गभराता है ) अजय की जान को खतरा तो नहीं ना ?
बाबाजी : अजय की जान पर खतरा तो अब भी है, लेकिन आज रात अगर हम ने ये नहीं किया, तो ये काला साया हमेशा के लिए अजय के शरीर के साथ जुड़ जाएगा. इसके बाद इसे निकालना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
मोहन : आप को जैसा ठीक लगे, बाबाजी। आप बस मेरे दोस्त को ठीक कर दीजिए।
( हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए )
मोहन एक वकील था, तो उसके हाथ ऐसे भी कई केस पहले भी आए हुए थे, इसलिए मोहन बाबा की बातों पे यकीं कर लेता है।
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शाम को मोहन ने हवेली जाने की सब तैयारियां कर ली, पूरी हवेली में cctv कैमरा भी लगवा दिया, ताकि सबुत भी हाथ लग जाए. मोहन ने पुलिस को भी रात को वहां बुला लिया। वे लोग खिड़की में से सब कुछ देख रहे थे। ड्राइंग रूम में बिच में ही बाबाजी हवन करने बैठ गए, सामने अजय को बैठा दिया। मोहन भी दूर खड़ा सब देख रहा था, हवन के बिच में ही अजय खड़ा होके भागने लगा, तब बाबाजी का इशारा समझते हुए मोहन ने उसे ज़ोर से पकड़ लिया और कुर्सी से बांध के फिर से बैठा दिया, वह छटपटाने लगा, बाबाजी ने हवन चालू रखा, अजय के ऊपर फिर से मंत्रोच्चार किया हुआ पानी डाला। अजय ज़ोर से बोला, " मुझे छोड़ दो, मैं सब को मार डालूँगी। "
बाबाजी : पहले तू अजय के शरीर को छोड़ दे, उसके बाद तुझे भी छोड़ देंगे।
अजय : मैं कहीं नहीं जाउंगी, हाहाहा....
बाबाजी : मैं देखता हूँ, तू ऐसे कैसे नहीं जाएगी ? लेकिन ये तो बता, तूने किशोरीलाल और उसके दोस्तों का खून कैसे और क्यों किया ?
किशोरीलाल का नाम सुनते ही अजय के अंदर की आत्मा रोने लगी।
बाबाजी : तेरे दिल में जो भी है, बता दे।
अजय : ( के अंदर की आत्मा कहती है ) इसी हवेली में उस काल रात्रि को किशोरीलाल अपने दोनों दोस्त रणजीत और अरविंद के साथ ड्राइंग रूम में बैठ के पार्टी कर रहा था, तभी मैं खाना परोसने आती हूँ, तीनो दोस्त शराब के नशे में थे, तो पहले अरविंद ने मेरी कमर में हाथ डाला, उसके बाद रणजीत ने मेरा दुपटा खिंच लिया और किशोरीलाल कहता है,
किशोरीलाल : मेरी गॉड में आकर बैठ जा, छमिया, तू हमारी हर रात रंगीन कर दे, तुझे रानी की तरह रखेंगे इस हवेली में, फ़िर तुझे कोई काम करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
फ़िर मैं तीनो दोस्तों से बचने के लिए घर से बाहर दरवाज़े की तरफ भागती हूँ, लेकिन रणजीत ने आकर घर का दरवाज़ा बंद कर दिया, मैं अपने आप को बचाने के लिए पुरे घर में पागलो की तरह इधर-उधर भागति रही, मगर तीन मर्द के सामने एक लड़की कैसे बच पाती ? किशोरीलाल के दोस्तों ने मुझको पकड़कर बैडरूम में ले जाते है, मुझे बिस्तर से बांध देते है, फिर मेरे साथ बलात्कार करते है, आखिर में किशोरीलाल की बारी आई, तभी मेरी माँ मुझे लेने आ जाती है, हवेली में से चीखने की आवाज़ सुनते ही मेरी माँ, जिसका नाम लक्ष्मी था, वह भागति हुई दरवाज़ा खटखटाती है, मगर कोई उसकी आवाज़ नहीं सुनता। माँ ने ड्राइंग रूम की खिड़की में से सब देखा, कि कैसे तीनो मर्द उसकी बेटी के साथ बलात्कार कर रहे थे। मेरी माँ मुझे बचाने के लिए पीछे के दरवाज़े से अंदर जाती है, किचन में से एक बड़ा सा चाकू हाथ में उठाकर तीनो दोस्त को चाकू दिखा के डराती है,
लक्ष्मी : पास मत आना, वार्ना तुम सब को जान से मार डालूँगी, एक दिन तो क्या मैंने अपनी लड़की को काम पे भेजा, तुम नालायको ने तो अपना ही काम कर लिया। अपनी बेटी का हाथ खोलते हुए, उसको चद्दर ओढ़ा रही थी, तभी किशोरीलाल ने मेरी माँ के हाथ से चाकू छीन लिया, उसके साथ भी तीनो दोस्त बदतमीज़ी करने लगे, माँ मुझे आवाज़ देती रही, मगर मैं दर्द सेह कर थक गई थी, मुझ से खड़ा भी नहीं रहा जाता था, लेट के सब देख रही थी, उसके बाद माँ भी अपने आप को बचाने के लिए इधर-उधर भाग रही थी, तभी उसके हाथो वहां टेबल पे रखी कांच की बोतल आती है, माँ ने उस कांच की बोतल से रणजीत का सिर फोड़ दिया। किशोरीलाल गुस्से में चाकू लेके उसके पीछे भागता है, तभी चाकू सच में माँ को लग जाता है और वह भी वही गिर जाती है, तीनो दोस्त ने मिलकर माँ और मुझे दोनों की लाश को इसी हवेली के पीछे खुले मैदान में गद्दा खोद के दफ़ना दिया। हम दोनों का इस दुनिया में कोई नहीं था, मेरे बाबा सालों पहले मर गए थे और माँ की एक ही बेटी मैं थी, माँ घर का बाई का काम करके गुज़ारा कर लेती थी, इत्फ़ाक से मैं उस वक़्त सिर्फ बेहोश ही हुई थी, बिना कुछ देखे तीनो दोस्तों ने मुझ को ज़िंदा ही वहां मेरी माँ के साथ दफ़ना दिया। गद्दा बहुत गहरा था, तो दम घुटने की वजह से मैं भी अपनी माँ के साथ मर गई। लेकिन तब से मेरी और मेरी माँ की आत्मा इस हवेली में भटक रही है। मुझे तीनो दोस्तों को जान से मारना था, जिसने मेरा और मेरी माँ का ऐसा हाल किया था।
इसलिए पहले तो मैंने रणजीत को अपना शिकार बनाया, उसे मार के पेड़ के ऊपर लटका दिया, उसके बाद अरविंद की बारी थी, उसे भी मैंने भागते हुए उसी पेड़ की तरफ ले गई और उसे भी मैंने पेड़ पे लटका दिया। उसके बाद बारी आती है, किशोरीलाल की, तो वह तंत्र-विद्या जानता था, इसलिए उसे मारना हमारे अकेले के लिए मुश्किल था, तो जब उस रात मैंने अजय को हवेली में देखा, तो सोचा, कि ये मेरे काम का है, इसलिए हम दोनों ने इस अजय के शरीर का सहारा ले लिया और उसके शरीर में प्रवेश किया। कुछ देर बाद किशोरीलाल घर आता है, तब सब से पहले हमने घर का दरवाज़ा बंद कर दिया, ताकि वह भाग ना सके। उसके बाद किशोरीलाल ने अजय को वहां उल्टा पड़ा हुआ देखा, तो उसे सीधा किया, तभी अजय की आँखें लाल हो गई, उसके दांत बड़े हो गए, वह शक्तिमान बन गया, अजय ने ज़ोर से उसे धक्का दिया, किशोरीलाल धड़ाम से जाके दूसरी और गिरा, उसके पीछे अजय भी भागा, अजयने हाथ में एक रस्सी ली और किशोरीलाल को खम्भे से बांध दिया, फिर अजयने किशोरीलाल को मारना शुरू किया। किशोरीलाल रोते हुए कहता है, " तुम कौन हो ? मुझे क्यों मार रहे हो ? मुझे छोड़ दो, मैंने कुछ नहीं किया। "
अजय के अंदर का काला साया कहता है, कि " तूने कुछ नहीं किया ? याद कर उस रात मैं और मेरी माँ भी तेरे पास ऐसे ही गिड़गिड़ा रहे थे, मगर तूने हमारी एक ना सुनी और मुझे तो तूने ज़िंदा ही उस गद्दे में दफ़ना दिया था।
किशोरीलाल : तू उस वक़्त ज़िंदा थी, ममममाफ कर दे मुझे, मुझे नहीं पता था, कि तू ज़िंदा थी, मेरे दोस्त ने कहाँ कि तू भी मर गई है, इसलिए तुझे भी दफना दिया। दूसरी बार ऐसी गलती नहीं होगी, अब जाने दे मुझे। तुझे यहाँ हवेली में जब तक रहना है, आराम से रह, मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूंगा, मैं कहीं और चला जाता हूँ। तू आराम से हवेली में रहना, मुझे छोड़ दे।
अजय : दूसरी बार ऐसी गलती के लिए तू ज़िंदा ही नहीं बचेगा, किशोरीलाल ! कहते हुए अजय उसकी रस्सी खोल देता है, और कहता है, भाग किशोरीलाल भाग, तुझे जितना भागना है भाग, आज तुझे बचाने कोई नहीं आएगा।
किशोरीलाल भागता रहता है, घर में इधर-उधर, अजय पीछे से उसको मारता जाता है। किशोरीलाल थक के खम्भे से टकरा कर गिर जाता है, तब अजय गुस्से में किशोरीलाल के सिने पे चाकू मारता जाता है, मारता जाता है....
इतना कहते हुए अजय उसी पल कुर्सी के साथ गिरकर फ़िर से बेहोश हो जाता है। मोहन अजय के पास जाकर उसे छुड़ा देता है। पुलिस हवेली के पीछे जाकर गद्दा खोजती है, जहाँ माँ और बेटी की लाश को दफनाया गया था। गद्दा खोदने पर सच में वहां से दो औरत की लाश मिलती है।
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बाबाजीने कहा, हम को इन दोनों माँ बेटी का अच्छे से अंतिम संस्कार करना चाहिए और उसके पीछे जो भी क्रियाकर्म करना पड़ता है, वह भी करना पड़ेगा, तभी दोनों माँ, बेटी की आत्मा को शांति मिलेगी और वह लड़की की आत्मा अजय के शरीर से दूर चली जाएगी, क्योंकि उस आत्मा को शरीर के अंदर प्रवेश करना तो आता था मगर बाहर कैसे निकलते है ये शायद उसे पता नहीं था, इसलिए वह आत्मा अजय के शरीर को छोड़ ना सकी।
मोहन : जैसा आप कहे, बाबाजी। वैसा ही करेंगे।
बाबाजी के कहे मुताबिक दोनों माँ, बेटी का अच्छे से क्रियाकर्म किया गया, उसके बाद ही उस लड़की की आत्मा भी अजय के शरीर को छोड़ पाई।
अजय होश में आता है, उसके सामने फ़िर से पोलिस खड़े हुए थे, पुलिस को देखकर
अजय : मैंने कुछ नहीं किया, मुझे छोड़ दीजिए। कहते हुए रोने लगा।
वहां खड़े सब लोग हसने लगे। अजय की माँ और मोहन ने अजय को गले लगा लिया।
Bela...
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