शायरी
क्या करे, कि
ज़िंदगी में दर्द
सहने की आदत
कुछ इस कदर
हो गई है,
कि अब आँखों से
आँसू भी बहते नहीं।
Bela...
शायरी
क्या करे, कि
ज़िंदगी में दर्द
सहने की आदत
कुछ इस कदर
हो गई है,
कि अब आँखों से
आँसू भी बहते नहीं।
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