माँ का सफ़र
जब से एक औरत गर्भवती होती है, तब से एक औरत का माँ बनने का सफ़र शुरू होता है।
नौ महीने हर तकलीफ़ सह कर, जो हमें जन्म देती है,
हमारा हर दर्द बिना बताए, जो महसूस कर सकती है,
हमारे बिन बताए हमारी हर बात, जो समझ जाती है,
हमारे आने की आहट से ही, जो घर का दरवाज़ा खोल देती है,
खुद आधी रोटी खा कर हमारी थाली में, जो दो रोटी हँसते हुए रख देती है,
हमें घर में पापा की डाँट-फटकार और मार से जो बचाती है,
हमें स्कूल में टीचर की मार से जो बचाती है,
हमारे स्कूल में पहला नंबर आने पर, जो हम से भी ज़्यादा खुश होती है,
हमारे घर से निकलते वक़्त भगवान् से हमारे सही-सलामत वापस घर लौटने की प्रार्थना, जो करती है,
हमारा शरीर जब बुख़ार से तप रहा होता है, तब जो पूरी रात जगके हमारे शरीर पर ठन्डे पानी की पट्टी रखती है,
एक बार हमें थप्पड़ मारने के बाद, चुपके से अपना हाथ चिमटे से जलाकर, जो खुद पूरी रात रोती है,
हम चाहे उनसे कितने भी दूर हो, मगर जिसकी प्रार्थना में हम हमेशा ही रहते है,
हमारी हर छोटी-बड़ी गलती को मुस्कुराकर आसानी से जो माफ़ कर जाती है,
हमारी शादी के बाद, हम को और हमारे प्यार को, किसी और के साथ जो बाँटती है,
हमारे बच्चों को अपना बच्चा मान हम से भी ज़्यादा, जो उन्हें प्यार करती है, उनकी परवाह करती है,
जिसका पूरा जीवन हमारे लिए प्रार्थना और हमारी परवाह करने में गुज़र जाता है,
" वो है माँ ! "
ज़माना चाहे जितना भी बदल जाए,
मगर माँ और माँ का प्यार कभी नहीं बदलता,
माँ बनने का सफ़र जो शुरू तो एक दिन होता है,
मगर कभी ख़त्म नहीं होता।
बस ऐसा ही होता है, माँ और माँ का प्यार।
Bela...
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