BECHARA SUMEET PART - 3

                        बेचारा सुमीत भाग- 3

        तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि सुमीत ने मोना और मम्मीजी को बहाना बनाते हुए कहा, कि " कल रात उसके दोस्त का एक्सीडेंट हो गया था और उसे वहांँ अस्पताल में ही रुकना पड़ा और इसी वजह से वह मम्मीजी को स्टेशन पे लेने भी नहीं जा पाया। " मगर अब मम्मीजी ने कहा, कि तुम आज रात मोना को लेकर अपने दोस्त से मिलने चले जाना। मगर जब अस्पताल में कोई दोस्त उसका है ही नहीं, तो वो माया को किसे मिलाने ले जाऐगा ? ये सोच सुमीत परेशान है, अब आगे... 


       सुमित की कोई बात यहाँ मानने वालो में से नहीं था, मगर सुमीत ने सोचा " कुछ तो करना ही पड़ेगा, " सोचते-सोचते सुमीत ऑफिस जाने के लिए तैयार हो जाता है। ऑफिस जाते वक़्त सुमीत नास्ता करने टेबल पे बैठता है। माया सुमीत को नास्ता देते-देते 

मोना : अच्छा तो सुमीत, शाम को तुम्हारे दोस्त से मिलने  कितने बजे अस्पताल जाना है ? मुझे बता देना ज़रा, मैं तैयार हो जाऊँगी। 

सुमीत : ( बात को टालते हुए ) अरे, मोना तुम क्यों इतनी तकलीफ ले रही हो ? मैंने कहा ना, कि अब वो ठीक है ! मिलने जाने की कोई ज़रूरत नहीं, मैं फ़ोन पे तुम्हारी बात करा दूंँगा उससे। वैसे भी मम्मीजी बड़े दिनों के बाद हमारे घर पे आए है, तुम उनके साथ थोड़ा वक़्त बिताओ, उनके साथ बातें करो, घुमने जाओ। ये क्या तुम दोनों ने अस्पताल जाने की रट लगाए रखी है। ( सुमीत थोड़ा चिढ़ते हुए ) 

        ( पीछे से मम्मीजी ने आवाज़ लगाई )

मम्मीजी : नहीं मोना, तुम मेरी फिक्र मत करो। मैं ठीक हूँ। मेरे ख़याल से तुम्हें जाना ही चाहिए। पता नहीं बेचारे का क्या हाल होगा। तुम दोनों को साथ में देख के उन को भी थोड़ा अच्छा लगेगा। ठीक है ? 

माया : जी मम्मीजी,  ज़रूर। 

   ( सुमीत थोड़ा फ़िर से चिढ़ते हुए )

सुमीत : जी मम्मीजी, ज़रूर। 

       और सुमीत अपनी बैग लेकर जल्दी से घर से निकल जाता है। घर से निकलकर सुमीत मन ही मन कहता है, 

सुमीत : है भगवान्, आप कभी मेरी मदद क्यों नहीं करते ? मेरी परेशानी कम करने की वजह हर पल मेरी परेशानी  बढ़ा क्यों देते हो ? अब आप को ही कुछ करना पड़ेगा भगवान्।  

      ( सुमीत को अचनाक से आसमान से एक अजीब सी आवाज़ सुनाई देती है, जैसे कि 

भगवान : बिना कुछ सोचे-समजे झूठ तुमने बोला, तो  उस में मैं क्या कर सकता हूँ ? क्या तुमने अपनी बीवी को झूठ बोलने से पहले मुझ से पूछा था क्या ? तो अब मैं भी इस में कुछ नहीं कर सकता। अब जो भी करना है, तूझे ही करना होगा, समजे ? 

      ( सुमीत को लगा जैसे ऊपर से  भगवान् ने ये सब कहा और सुमीत  ऊपर की ओर आसमान की तरफ़ थोड़ी देर देखता रहा, मगर उसे  कुछ समज नहीं आया, फ़िर अपने ही सिर पे तपली लगा के ऑफिस की ओर जाने लगता है। ऑफिस पहुँच कर भी यही बात सताए जाती थी, कि अब वो शाम को क्या करेगा ? फ़िर उसने सुमितने अपने उस दोस्त को फ़ोन किया, जिसके घर उसने पूरी रात बिताई थी और जो सारी परेशानियों से वह गुज़र रहा है, उन सब के बारे में उसने अपने दोस्त को बता दिया। पहले तो सुमीत का दोस्त सुमीत की बात सुनकर ज़ोर-ज़ोर से हसने लगा। तब सुमीत चिढ़ते हुए अपने दोस्त से  ) 

सुमीत : एक तो तेरी वजह से मैं  इतनी बड़ी मुसीबत में फसा हुआ हूँ और तुझे हसी आ रही है ? 

दोस्त : तो और क्या करू मैं ?

सुमीत : मेरी मदद कर। 

दोस्त : ओके, क्या करना होगा मुझे, तू ही बता। 

सुमीत : सोचने दे ज़रा। 

       सुमीत की समज में अब भी कुछ नहीं आ रहा था। जल्दी-जल्दी में सुमीत फ़ोन रख के कुर्सी से खड़ा होकर सीढ़ियों से चढ़ के ऊपर के कमरे में जा रहा था, जहाँ सारी  फाइल रखी हुई होती है, फाइल लेकर सुमीत फ़िर से निचे आ रहा था, तभी किसी की टक्कर सुमीत को लगती है, सुमीत फाइल लेके सीढ़ियों से गिर जाता है। उसके कम्मर में और पैरो में बड़ी ज़ोरो की चोट लग जाती है।  बेचारा सुमीत हंमेशा कुछ ना कुछ उसके साथ गलत होता ही रहता है। ऑफिस के लोगों ने आकर उसे उठाया और उसे कुर्सी पे बिठाया, उसे दवाई भी पिलाई, मगर उसका दर्द कम नहीं हुआ इसलिए सुमीत ऑफिस से जल्दी छुट्टी लेकर घर चला जाता है। मगर उसके घर पे भी तो एक आफत थी, अभी तो उस से भी लड़ना है। सुमीत को ख़याल आया ,कि इस बात का क्यों ना फायदा उठाया जाए, उसने तरकीब लगाई, रास्ते में से ही अपने दोस्त को फ़ोन लगाकर बता दिया, कि अब वो जैसा कहे वैसा ही तुम करना। उसका दोस्त सुमीत की बात मान जाता है। घर जाते ही सुमीत दर्द से ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगता है।  

सुमीत : मोना, मोना, मम्मीजी कहाँ हो आप सब ? जल्दी आओ इधर। 

   मोना सुमीत की आवाज़ सुनकर भागी-भागी सी उसके पास आती है। 

मोना :  ( सुमीत को देखकर ) अरे, ये क्या हुआ आपको ? इतनी सारी चोट कैसे लगी आपको ? सुमीत ने अपने सिर पे, अपने पैरो पे और हाथों में पट्टियाँ लगा रखी थी। ताकि माया को लगे, कि सुमीत को बहुत चोट लगी है। 

सुमीत : ( सुमीत थोड़ा रोते हुए, ) अरे पहले मुझे बैठने तो दो, बहुत दर्द हो रहा है। हाय रे मैं मर गया भगवान्, मेरा अब क्या होगा ?

मम्मीजी : अरे, मगर ये सब हुआ कैसे, ये तो बता ?

सुमीत : बताता हूँ, सब बताता हूँ। मोना ज़रा मेरे लिए हल्दीवाला दूध लाएगी क्या ?

मोना : जी लाती हूँ ना।  आप आराम करो बस। 

    ( मोना थोड़ी देर में दूध लेके आती है। दूध पिते  हुए )

सुमीत : अब अच्छा लग रहा है कुछ।  हाँ तो बात ये है, कि मैं ऑफिस में सीढ़ियों से गिर गया और मेरी कम्मर में मोच आ गई और ये घुटनों में भी चोट लगी, दीवार से टकराने में मेरे चेहरे और हाथों पे भी चोट लग गई, वो तो अच्छा हुआ, कि ऑफिस के लोगों  ने मुझे उठाके दवाई दे दी है और साथ में ये इतनी सारी पट्टी भी लगा ली है, देखो तो ज़रा !! मगर माया सच कहुँ, तो अब भी बहुत दर्द हो रहा है।  

 मोना : कोई बात नहीं, आप आराम करो, सब ठीक हो जायेगा, दवाई तो ले ली ना आपने, तो बस।

    ( मोना जैसी भी थी पर उसे सुमीत की बड़ी परवाह भी रहती थी )

सुमीत : हाँ, वो तो ठीक है, मगर आज शाम को मेरे दोस्त से मिलने अस्पताल भी तो जाना था।  अब कैसे जाऊंँगा। 

मोना : अब जाने भी दो, पहले आप अपनी फ़िक्र करो, मुझे नहीं मिलना आपके किसी दोस्त से। 

सुमीत : मगर ऐसे कैसे ? फ़िर तुम मुझ पे फ़िर से शक करोगी, कि मैंने झूठ बोला। 

    सुमीत ऐसे कहता हुआ अपने दोस्त को फ़ोन लगता है। तुम उस से फ़ोन पे ही बात कर लो, मेरे ठीक होने के बाद उस से मिलने जाऐगे। 

    सुमीत फ़ोन पे ही माया की बात अपने दोस्त से करवा देता है, सुमीत का दोस्त उसे जैसा बताया गया था, वैसे ही बात करता है और माया मान भी जाती है। 

     इस के बाद सुमीत को भी ऑफिस से चोट लगने की वजह से ५ दिन की छुट्टी मिल जाती है। अब माया उसकी अच्छे से देखरेख करती है, उस रात की बात भी भूल जाती है और मम्मीजी भी उसे कुछ नहीं कहते। कुछ दिनों बाद मम्मीजी भी वापस चले जाते है, साथ-साथ सुमीत की परेशानी भी चली जाती है। 

  सुमीत ऊपर आसमान में देख भगवान् से बातें करता है, " मैं जानता हूँ, तू  जो भी करता है, अच्छे के लिए ही करता है। इसी बहाने सुमीत को ऑफिस से छुट्टी भी मिल जाती है और उसका झूठ भी किसी के सामने नहीं आया। 

       मगर इस बार सुमितने थान लिया कि अब कभी भी झूठ नहीं बोलूंँगा। क्योंकि एक झूठ छुपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते है और इस बात का डर हर वक़्त रहता ही है, कि कहीं किसी दिन सच सामने आ गया तो मोना को मनाना और भी भारी पड  सकता है।  इसलिए मम्मी जी के जाने के बाद सुमीत ने माया को सब सच-सच बता दिया। पहले तो माया ने अपना मुँह फुलाया, मगर बाद में ज़ोर- ज़ोर से हसने लगी, उसे हस्ता हुआ देख सुमीत भी ज़ोरो से हसने लगा। 

       तो दोस्तों, बेचारा सुमीत जैसे-तैसे कर के अपनी मोना को मना ही लेता है। आखिर में सुमितने मोना को सब कुछ सच बता के अच्छा किया की नहीं ? 

                                                              Bela... 

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