डर भाग-14
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि माया अब प्रिया के नर्सिंग स्कूल जाने लगी है। रमेश और माया के बीच की दूरियांँ भी कम होती जा रही है। अब अजय, माया, रमेश और प्रिया सब मिलके गर्मियों की छुट्टी में कुछ दिन गाँव पिकनिक मनाने जा रहे है और अब वो सब रमेश के पापा के दोस्त के वहाँ शादी में भी जानेवाले है, अब आगे...
( आज पूरा दिन घूमते-फ़िरते सब बहुत ठक चुके थे, इसलिए सब जाके सो जाते है। प्रिया और माया एक ही कमरे में रहते है और रमेश और अजय दूसरे कमरे में।
रात के अभी तो तक़रीबन १२ ही बजनेवाले होंगे, माया को किताब पढ़के सोने की आदत थी, माया की आँखें अभी-अभी तो किताब पढ़ते-पढ़ते ज़रा सी बंद ही हुई, कि उसके कानो में किसी औरत के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देती है। वो थोड़ी सी डर जाती है, तब तक तो प्रिया थकान की वजह से एक गहरी नींद में चली जाती है, इसलिए उसे किसी के चीख़ने-चिल्लाने की आवाज़ सुनाई नहीं देती है, मगर माया के कानो में अब भी वो आवाज़ गूंँज रही होती है। पहले तो उसे लगा की जैसे, ये उसका वहम है, इसलिए माया अपने हाथों से अपने कान ज़ोर से बंद कर देती है, मगर अब भी आवाज़ सुनाई दे रही थी। कुछ पल बाद उसे लगा, कि वो आवाज़ शायद बाहर से ही आ रही थी। माया ने खिड़की से बाहर देखा तो, सामने वाले के घर की खिड़की खुली हुई थी और सब कुछ दिख रहा था, एक आदमी किसी औरत को मार रहा था, और शायद ज़बरदस्ती भी करने जा रहा था। ये देख़ माया को शबाना के साथ हुए हादसे के बारे में फ़िर से सब कुछ याद आ रहा था, उस रात भी ऐसे ही शबाना ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी और कुछ लड़के उसे मार रहे थे और उसके साथ ज़बरदस्ती भी किऐ जा रहे थे। माया ओर भी डरने लगी, और अचानक से ज़ोर- ज़ोर से चिल्लाने लगी,
माया : " शबाना को छोड़ दो, शबाना को छोड़ दो। उसे जाने दो, उसने कुछ नहीं किया। "
माया के ज़ोर से चिल्लाने से प्रिया की नींद खुल गई और वह भी एक पल के लिए डर गई, उसकी आवाज़ सुनकर रमेश और अजय भी दौड़ते हुए उसके कमरे तक आ गए, दोनों ने देखा, कि माया डरी हुई खिड़की के पास खड़ी होकर )
माया : " शबाना को छोड़ दो, शाबान को छोड़ दो।"
( की आवाज़ लगाए जा रही थी। अजय और रमेश दोनों ने माया के गाल को थपथपाया, और कहा, )
माया : " होश में आओ माया, यहाँ कोई नहीं है। माया माया !!!"
( माया ने अपनी ऊँगली के इशारे से खिड़की के बाहर सामने वाले घर में जो हो रहा था, वह दिखाया। )
( अजय ने देखा, कि सच में कोई आदमी औरत के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था, उसे ये देखके बड़ा गुस्सा आया। अजय ने रमेश को माया को सँभालने के लिए कहा, )
अजय : तुम दोनों माया का ख्याल रखो, मैं अभी सामने जाकर आता हूँ।
( कहते हुए अजय वहांँ से चला जाता है। )
( लेकिन अब भी माया डरी हुई थी और शबाना, शबाना बोले जा रही थी, रमेश माया को बिस्तर पे ले जाता है और प्रिया को उसकी दवाई लाने को कहता है, प्रिया दवाई लेने किचन में जाती है। अजयने रमेश और प्रिया को माया की सब दवाई के बारें में बता दिया था, ताकी जब भी ज़रूरत पड़े, वो दोनों उसको दे सके, क्योंकि अब माया उन दोनों के साथ ज़्यादा रहती थी। रमेश माया को अपनी बाहो में पकड़े रखा था और बड़े प्यार से समजा रहा था, मगर उस वक़्त माया को कुछ होश नहीं था, कि रमेश क्या कह रहा था। )
रमेश : माया तुम डरो मत। मैं हूँ ना तुम्हारे साथ, अब मैं तुम्हें अकेला छोड़ के कहीं नहीं जानेवाला, उस दिन तो मैंने पुलिस की साइरन बजाके सब लड़को को वहांँ से भगा दिया। पुलिस के डर की वजह से उन लड़कों ने तुम को छोड़ दिया। मगर अब ऐसा कुछ भी नहीं होगा, अब मैं ऐसा तुम्हारे साथ कुछ नहीं होने दूंँगा। तुम मेरी हो और सिर्फ मेरी ही हो, अब मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंँगा।
( उस तरफ़ अजय भागा-भागा सा सामने के घर में उस औरत को बचाने जाता है। जिसके साथ कोई आदमी बदतमीज़ी कर रहा था। घर का दरवाज़ा अंदर से बंद था, दरवाज़े के बाहर कोई डोरबेल भी नहीं थी, बाहर से दिखने में कोई पुराना सा घर दिख़ रहा था। अजयने दरवाज़ा ज़ोर-ज़ोर से खटखटाया। थोड़ी देर में एक छोटी सी लड़कीने दरवाज़ा खोला। वो भी थोड़ी डरी हुई सी लग रही थी। उस लड़की पर ज़्यादा गौर ना कर के अजय ऊपर की और सीढ़ियों से जाता है, जहाँ से अब भी उस औरत की आवाज़ आ रही थी। उस कमरे का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था, अजयने देखा, कि कमरे में औरत अपनी साडी को संँभाले इधर-उधर भाग रही थी और उस आदमी से कह रही थी, आज नहीं आज मेरी तबियत ठीक नहीं, मुझे जाने दो, मेरे पास जितने पैसे थे, वो भी मैंने तुम्हें दे दिए। अब आज मुझे छोड़ दो। आदमी उस औरत की कोई बात नहीं सुनता और नशे में उसकी साडी खींचे जा रहा था, अजय से ये सब देखा नहीं गया। अजय उस आदमी के सामने आकर उस औरत को बचाने लगा, अजयने उस आदमी को धक्का देते हुए कहा, )
अजय : अगर ये औरत मना कर रही है, तो छोड़ दो इसे, क्यों इसके पीछे पड़े हो ?
आदमी : ( नशे की हालत में ) तू कौन है बे ? और यहाँ क्या कर रहा है ? इसका नया यार है क्या ? कितने पैसे देते हो तुम इसको एक रात के ? बताओ मुझे ?
अजय : ( गुस्से से ) ज़बान सँभाल के बात करो, तुम अभी नशे में हो। मैं चाहे जो भी हूँ, मगर औरत अगर एक बार मना करे तो तुम उसे छू भी नहीं सकते। अगर ऐसा किया, तो तुम्हें जेल में दाल दूँगा अभी, समजे ?
औरत : ( अजय के आगे हाथ जोड़कर )
नहीं, नहीं, साहब !! ऐसा गज़ब मत करना, ये मेरा पति है, और पिने की लिए रोज़ इसको पैसा चाहिए, आज पैसे भी मेरे पास कम है और मेरा महावारी का समय चल रहा है, इसलिए मैं इसको साथ सोने में मना कर रही थी, मगर ये समझता ही नहीं है और ये तो वैसे भी हमारा रोज़ का है। मगर आप इसे जेल मैं मत भेज देना। वार्ना लोग क्या कहेंगे। आप जाइए साहब में इसे संँभाल लूँगी।
अजय : तुम्हारे जैसी औरत की वजह से ही इन लोगों की हिम्मत और बढ़ती है, ये लोग तुम पे जुल्म करते रहेंगे और तुम जुल्म सेहती रहना। पता नहीं तुम लोग ऐसे लोगों के साथ कैसे अपनी ज़िंदगी बिता सकते हो ? तुम लोग ज़ुल्म सहने की वजह आवाज़ क्यों नहीं उठाते ?
( अजय और उस औरत दोनों की बातें एक तरफ़ और दूसरी तरफ़ वो आदमी नशे में ऐसे ही बिस्तर पे गिर के सो जाता है। )
औरत : ( अजय को समजाते हुए )
देखो, साहब ! ये तो सो गया ना ! अब सीधा ये कल दोपहर को ही जगेगा। तब तक तो मैं अपने घर का सारा काम निपटाके काम पे चली जाऊँगी। अब आप फ़िक्र मत करो, आप जाओ। मुझे आज की रात इस से बचाने के लिए शुक्रिया। वैसे साहब ! आप हो कौन ? और यहाँ कैसे ? मैंने आप को पहले कभी यहाँ इस गाँव में तो नहीं देखा।
( अजय क्या करता, जब ये औरत ही रोज़ मार खाने को और उसके पति का ज़ुल्म सहने को तैयार थी तो !! अजय वहांँ से जाने लगता है, तभी उसकी नज़र उस छोटी सी लड़की पे पड़ी, जो गौर से ये सब देख-सुन रही थी। )
अजय : मैं वहाँ सामने उस घर में मेरे दोस्त के साथ कुछ दिन रहना आया हूँ और हमने वहांँ उस खिड़की से यहाँ क्या हो रहा वो देखा, मुझ से ऐसा ज़ुल्म देखा नहीं गया, इसलिए तुम को बचाने चला आया। मगर छोड़ो, तुम को इस नशे बाज़ का साथ अच्छा लगता है, तो मैं कर भी क्या सकता हूँ? वैसे मैं एक वकील भी हूँ, कभी अपने पति को सजा दिलानी हो तो, मेरे पास आ जाना, ऐसे लोगों को ठीक करना मुझे अच्छे से आता है और हाँ अपने बारे में नहीं तो अपनी इस छोटी सी बच्ची के बारे में भी तो सोचो, ये भी सब देख़ रही थी, क्या ये भी बड़ी होकर तुम्हारी तरह किसी आदमी का ज़ुल्म सेहती रहेगी ?
( इतना कहकर अजय वहांँ से चला जाता है। मगर अपनी बच्ची के लिए कही गई बात उस औरत के दिल को छू जाती है, वो अपनी बच्ची को गले लगाकर रोती हुई सोने की कोशिश करती है। )
( उस तरफ़ )
( रमेश भी माया को ऐसे डरी हुई देख़ अपने मन की बात बिना कुछ सोचे समजे बोले जा रहा था, जो बात आज तक उसके मन में थी, उसने कभी किसी को कुछ नहीं बताया। )
( तब तक अजय सामने वाले के घर जाकर वापस लौट आया और दरवाज़े पे खड़े रहकर उसने रमेश की सारी बातें सुन ली। वो धीरे से रमेश के करीब जाता है, माया डरी हुई सी रमेश को लिपटकर रो रही थी, माया को दवाई पिलाकर पहले अजय ने उसे सुला दिया। फ़िर वहीं बैठकर रमेश का हाथ माया के सिर पे रखकर उसे कहा, कि " तुम को उस रात के बारे में जो कुछ भी पता है, मुझे प्लीज बता दो। मुझे जानना है, की उस रात क्या हुआ था और माया मेरे घर के दरवाज़े तक कैसे आई, और वो लड़के कौन थे, मुझे पता है, तुम्हें सब कुछ पता है, मगर चुप हो, लेकिन अब बस, अब सब कुछ मुझे जानना है, चाहे कुछ भी हो जाए। "
( रमेश को लगा की अब सब कुछ बता देने में ही समझदारी है, उसके मन का भी बोज कुछ कम हो जाए, ये सोच रमेश अजय को बताता है। )
रमेश : जी हाँ, आप सच कह रहे है, मुझे सब पता है, मगर मैं कुछ ना कर सका और कुछ ना कह सका। आपका अंदाज़ा सही था, कि वो एक्सीडेंट में मारे गए लड़के वही लड़के थे, जिसने माया और शबाना के साथ ऐसा बर्ताव किया था।
शबाना कॉलेज में बार-बार उन लड़कों से भीड़ जाती थी, जबकि सब उन लड़कों से दूर ही रहते थे और शायद इसी वजह से उन लड़को ने शबाना के साथ बदला लेने के लिए ये सब कुछ किया, मगर शायद उनको भी नहीं पता होगा, की नशे में बात इतनी बिगड़ जाएँगी। उनको अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ेगा और शायद वो लड़के ड्रग्स भी लेते थे, इस बात का पता भी मुझे पहले से था।
उस रात मैंने कमरे के बाहर से देखा, तो शबाना उस वक़्त बेहोश लग रही थी, अब उन लोगों ने अपना निशाना माया को बनाया था, मैंने उसी वक़्त तरकीब लगाके पुलिस का साइरन बजाया और उन लड़को को लगा, की सच में पुलिस आई होगी, ये सोच सब के सब पीछे के रास्ते से शबाना और माया को उठाकर वहाँ से भागने लगे। मैंने अपनी कार में उन सब का पीछा किया। थोड़ी दूर जाने के बाद मैंने देखा, कि कार में से उन लड़कों ने कुछ गिराया। मैंने पास जाके देखा तो मुझे लगा शबाना तो मर गइ थी, मगर माया बेहोश हालत में थी। मैं गभराया, मैंने कभी ऐसा कुछ देखा या सुना नहीं था। फ़िर भी मैंने माया को उठाकर अपनी कार में रखा और आपके घर के बाहर उसे लेटा कर घंटी बजा के वहांँ से चला गया। क्योंकि मैं कॉलेज के दिनों से ही माया को प्यार करता था, मगर कभी उस से बात नहीं की। या सच कहूंँ तो मैं बहुत डरपोक था तो इस झमेले में पड़ना मुझे ठीक नहीं लगा। मैं सिर्फ इतना चाहता था, कि माया बच जाए और वो सही सलामत अपने घर तक पहुँच जाए। कॉलेज के दिनों में मैं कभी-कभी उसका पीछा करते-करते आपके घर तक आता था। इसलिए मुझे माया के घर का पता मालूम था। मैं आपके घर का डोरबेल बजाके दूर जाके छुप गया था, दूर से मैंने तब तक उसे देखा जब तक आप बाहर आके माया को घर के अंदर नहीं ले गए।
उसके बाद मैंने तुरंत शबाना के घर पे फ़ोन किया और उसके घरवालों को सब बता दिया, की शबाना बेहोशी की हालत में रास्ते में है, आप आ के उसे ले जाए। वैसे भी मुझे लगा, की वो मर ही गई थी। इस बात का मुझे बाद में पता चला, कि वो ज़िंदा थी, तब मैं अपने आप पे बड़ा शर्मिन्दा हुआ और उस बात का पछतावा मुझे आज तक है, कि शायद मैं शबाना को भी सही वक़्त पे अस्पताल ले गया होता, तो आज शायद वो भी ज़िंदा होती। मगर वक़्त को कुछ और ही मंज़ूर था।
और हाँ, जहाँ तक मुझे उन लड़कों के बारे में पता है, " उन बदमाश लड़कों को हाई वे के रास्ते से शहर के बाहर जाता देख, मुझे लगा, कि अब कुछ दिन ये शहर छोड़ के कहीं ओर चले जाएँगे, ताकि कोई उन्हें पकड़ ना सके। कुछ दिन के बाद वापस आ जाऐंगे, तब तक यहाँ सब मामला निपट जाएगा। " वो सब नशे की हालत में तेज़ गाड़ी चलाकर भाग रहे थे तो रास्ते में ही उनका एक्सीडेंट हो गया। उन में से कोई नहीं बचा और ना ही वो फ़ोटोज़ और वीडियो रेकॉर्डिंग, जो उन्होंने शबाना की बनाई थी। सारे सुबूत भी उन्हीं के साथ मिट गए। जैसे बुराई का अंत बुरा ही होता है।
( अजय को सारी बात बताकर रमेश के मन का बोज भी हल्का हो गया। रमेश की बातें सुनकर अजय की आँखें भर आती है। उसने रमेश को गले लगाते हुए, अपनी बहन को बचाने के लिए रमेश का बहुत-बहुत धन्यवाद किया। )
तो दोस्तों, क्या वो औरत अपने पति को सजा दिलाने के लिए अजय के पास जाएँगी ? क्या उसका पति सुधरेगा ?
अगला भाग क्रमशः ।।
Bela...
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