डर भाग-13
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि माया अभी भी कभी-कभी पागलो सा बर्ताव करती। रमेश माया से मिलने उसके घर आ जाता है, वहांँ अजय ने रमेश से एक नर्सरी स्कूल खोलके माया का साथ देने की बात कही, मगर रमेश की बहन प्रिया का भी नर्सरी स्कूल था और उसे भी एक हेल्पर की ज़रूरत थी, तो प्रिया ने ये बात जान तुरंत माया को अपनी स्कूल पे मिलने को बुला लिया। अब आगे...
( रमेश माया को लेकर अपनी बहन प्रिया के नर्सरी स्कूल जाता है और माया को प्रिया से मिलवाता है। प्रिया को भी माया के बारे में सब पता था, रमेश ने ही उसे बताया था, इसलिए प्रिया ने उसके हिसाब से ही बात करनी शुरू की। प्रिया भी माया की तरह बहुत प्यारी थी, देखते ही देखते दोनों में अच्छी दोस्ती होने लगी थी, अब माया पहले सी पागलो जैसी हरकत बहुत कम करती थी, बच्चों के साथ वह खुश रहती थी, उसके पास कुछ और सोचने का वक़्त ही कहाँ था ? अजय को भी ये देख़ ख़ुशी हुई कि अब माया का सपना सच भी हुआ और माया अब पहले की तरह हसी-खुशी अपनी ज़िंदगी जी रही है। अजय भी अब अपने काम में व्यस्त रहने लगा।
रमेश भी माया से थोड़ा घुल-मिल गया था। रमेश माया को रोज़ लेने और उसको वापस घर छोड़ने भी आता था, कभी-कभी रमेश माया को अपने घर खाने पे भी ले जाता था। दोनों कभी-कभी घूमने भी जाते थे। रमेश की company उसे अच्छी लगने लगी थी। अजयने भी ये सब नोटिस किया, कि माया और रमेश एक दूसरे के करीब आ रहे थे। रमेश एक अच्छा लड़का था, इसलिए अजय दोनों के बीच नहीं आना चाहता था, क्योंकि इस वक़्त माया को अपने भाई के प्यार के साथ-साथ एक हमदर्द की भी ज़रूरत थी, जिसके साथ माया अपना दर्द बाँट सके और शायद वह अजय नहीं कर पाता, जो कमाल रमेश ने किया। अजय बस अपनी बहन को खुश देखना चाहता था और वैसे भी अजय को भी तो अपना काम संँभालना था, रमेश और प्रिया के साथ होने से अजय की आधी परेशानी दूर हो गई थी, क्योंकि उस वक़्त माया को संँभालना, कोर्ट का वक़्त भी संँभालना, घर पे भी ध्यान रखना, ये सब अजय के अकेले की बस की बात नहीं थी।)
( एक दिन अजय, माया, रमेश और प्रिया सबने कहीं दूर घूमने जाने का प्लान बनाया। तब रमेशने कहा )
रमेश : मेरे पापा का घर गाँव में ही है, वहाँ की हवा बहुत अच्छी होती है, वहाँ बहुत सी देखने लायक चीज़े है, मैं और प्रिया भी वहाँ बहुत सालो से गए नहीं। तो क्या हम सब वहीं चले ? मेरे पापा वहांँ पे रहने और खाने का सारा इंतेज़ाम करवा देंगे। सो हमें कोई परेशानी भी नहीं होगी।
( सब ने हाँ कहा, वैसे भी गाँव के रस्मो-रिवाज़ जानना माया को अच्छा लगता था, मगर कभी गाँव जाने का मौका नहीं मिला। इस बार माया की ज़िद्द की वजह से अजय ने एक हफ्ते के लिए छुट्टी लेली और सब साथ में अपना-अपना सामान पैक कर सुबह जल्दी ही निकल पड़े। )
( रास्ता थोड़ा लम्बा था, रास्ते में बड़े-बड़े पहाड़ चट्टान की तरह खड़े दिखाई दे रहे थे, गौर से देखने पे पता चलता था, कि इनको अब भी किसी के आने का इंतज़ार है, ऐसे ज़िद्द पकड़े खड़े हो। आगे जाके रास्ते में कहीं दूर झील के पास water fall दिखाई दे रहा था, बाकि लोग भी अपनी गाड़ी रोक के थोड़ी देर मौसम का और water fall का मज़ा लेकर ही जाते थे। वहाँ पे सब ने फोटो भी खींची और हाँ, पानी की छींटे एक दूसरे पे नहीं उडाएँगे, तो फ़िर water fall के पास जाने का मतलब ही क्या ? लगातार पानी गिरने की वजह से वहांँ की मिट्टी गीली हो गई थी तो माया का पैर उधर से फ़िसला ही था, की माया धड़ाम से गिरने ही वाली थी, कि रमेश ने उसका हाथ पकड़कर उसे गिरने से बचा लिया, थोड़ी देर के लिए दोनों की नज़रें एक हो जाती है। ये देख )
अजय : आगे जाना भी है, या यहीं रुकने का इरादा है, अभी गाँव आने में तीन-चार घंटे ओर लग जाएँगे। मुझे तो यारों बहुत भूख लगी है, मैं तो चला यारों, जिसे भी भूख लगे जल्दी से आ जाऐ, पास में बहुत अच्छा रेस्टोरेंट है, वहाँ आराम से बैठ के खाना खाएँगे।
( सब साथ में कहते है, मुझे भी भूख लगी है और सब ज़ोर से हस पड़ते है। और फ़िर से गाड़ी में बैठ के गाना गाते हुए मस्ती में जाते है। अजय की नज़र गाड़ी चलाते-चलाते बार-बार अपने पीछे बैठी हुई माया पे पड़ती थी, माया खिड़की से बाहर एक नज़र देखे जा रही थी, बिच-बिच में पता चलता था, जैसे बीते हुए उन लम्हों ने आज भी उसका पीछा करना नहीं छोड़ा था, चाहे कुछ भी कर लो, एक धुँधली सी याद जो मन के तार को हिलाकर रख देती है, मगर कभी-कभी माया अपनी झूठी मुस्कान के पीछे अपना वो दर्द छुपाना जान चुकी थी, क्योंकि उसे पता था, कि उसके आँसु, उस से ज़्यादा उसके भाई अजय को तकलीफ देते थे। इसलिए माया ना चाहने पर भी कभी-कभी खुश रहने का दिखावा कर लेती थी, जो अजय को भी पता था।
बिच रास्ते में गाड़ी रोक के सब ने नास्ता किया और गाँव पहुँच गए। गाँव की ताज़ी हवा और वहाँ की हरियाली देख सब का मन खुश हो गया। रमेश के पापा ने वहाँ सब के रहने का और खाने का बंदोबस्त पहले से ही कर रखा था, सो किसी को कोई तकलीफ नहीं हुई। लम्बें सफ़र से सब लोग बहुत ठक चुके थे। )
अजय : आज तो बहुत ठक चुके है, रात भी होने को है, तो हम सब खाना खा के सो जाते है, कल सुबह जल्दी उठके sunrise point देखने जाएँगे।
माया : ( मज़ाक करते हुए )
जो हुकुम हमारे आका।
( सब ये सुन फ़िर से हस पड़ते है। चलो-चलो अब खाना खा के सो जाते है, मुझे भी बहुत नींद आ रही है, सुबह जल्दी भी तो उठना है।
और फ़िर खाना खा कर आराम से सब सो जाते है।
सुबह रमेश और माया sunrise point जाने के लिए जल्दी उठके तैयार हो गए। मगर अजय और प्रिया बड़ी गहरी नींद में थे, दोनों को जगाने की कोशिश की मगर दोनों चद्दर ओठके सोऐ रहे, तब रमेश और माया दोनों साथ में sunrise point देखने चले जाते है। उन दोनों को देख लगता था, दोनों को एक दूसरे से प्यार हो रहा था। )
( रमेश और माया शायद एक जैसे ही थे, दोनों को सुबह जल्दी उठना, रात को जल्दी सो जाना, वक़्त पे खाना, घूमने जाना, बातें करते रहना, अकेले रहना पसंद था, इसीलिए शायद दोनों की बड़ी बनती थी, माया धीरे-धीरे रमेश को अपने मन की बात बताने लगी थी।
रमेश और माया sunrise point पे बड़ी देर तक बैठे रहे, पता ही नहीं चला वक़्त कहाँ बिट गया। फ़िर दोनों चाय-नास्ता लेकर घर की ओर चले। घर जाके देखा तो अजय और प्रिया अब तक अपने-अपने कमरे में सोए हुए थे। माया को आज फ़िर से थोड़ी मस्ती करने का मन हुआ। उसने पहले की तरह सीढ़ियों से गिरने का नाटक करते हुए, रोती हुई आवाज़ में अचानक से भैया-भैया करके ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी। माया की आवाज़ सुनते ही अजय गभराया हुआ, भागा-भागा अपने कमरे से बाहर आ गया, माया को सीढ़ियों पे बैठ के रोते हुए देख़
अजय : क्या हुआ माया ? तुम रो क्यूँ रही हो ? तुम्हें कहीं चोट लगी तो नहीं ? दिखाओ तो ज़रा मुझे !!!
माया : ( अजय को गले मिलकर हस्ते हुए ) आज भी नहीं बदले आप भैया, आज भी आप वैसे के वैसे ही हो। बिलकुल बुद्धू ! मैं बिलकुल ठीक हूँ और मैं मज़ाक कर रही थी।
अजय : फ़िर से ऐसा मज़ाक मत करना, अगर फ़िर से ऐसा मज़ाक किया ना तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। मेरी तो जान ही निकल गई थी।
माया : ( अपने दोनों कान पकड़ते हुए )
सॉरी भैया, अब दूसरी बार ऐसा मज़ाक नहीं करुँगी, अब बस ! अब हस भी दो मेरे प्यारे भैया।
( और अजय माया को फ़िर से हस्ते हुए गले लगा लेता है। ) चलो अब आज और कहीं जाना भी है, या पूरा दिन सोने का इरादा है आप का।
अजय : हाँ, हाँ चलते है, चलते है, मैं अभी फ्रेश होके आता हूँ। दूसरी ओर प्रिया भी उठ के तैयार हो जाती है। सब ने साथ मिलके नास्ता किया और फ़िर से घूमने निकल पड़ते है। पूरा दिन सब ने बड़ी मस्ती की। रात को सोते वक़्त रमेश ने कहा,
रमेश : कल हमारे गाँव में मेरे पापा के दोस्त के वहांँ शादी है। पापा ने बोला है, कि वहांँ जा ही रहे हो तो शादी में भी चले जाना। उनको इतना लम्बा सफ़र करना अब उम्र के हिसाब से पसंद नहीं। तो क्या आप सब भी मेरे साथ शादी में आओगे ? वो चाचा का भी दो बार फ़ोन आ गया है, कि अपने दोस्तों को भी साथ लेके ही आना।
माया : ( तुरंत ही बोल पड़ी ) हाँ, हाँ क्यों नहीं, ज़रूर चलेंगे। वैसे भी मेरा बड़ा मन है, शादी होते हुए देखने का।
रमेश : अच्छा, तो कल सुबह हम नास्ता करके आराम से जाएँगे, मेरे चाचा भी बहुत खुश हो जाएँगे। अब सो जाते है, मुझे तो बड़ी नींद आ रही है।
तो दोस्तों, जैसे हर दर्द का इलाज हो सकता है, वैसे ही हर डर का भी दुनिया में इलाज हो सकता है, ज़रूरत है, तो सिर्फ थोड़ा सा प्यार, साथ और उसे थोड़ा सा वक़्त देने की।
अगला भाग क्रमशः ।।
Bela...
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