DARR PART- 11

                      डर भाग-11

          तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, की पुलिस और अजय को पता चलता है, कि शबाना के साथ इसी 5 लड़कों ने क्या किया होगा और इस बात का सबूत भी अजय के पास था, मगर फ़िर भी अजय के कुछ सवाल थे, जो उसे परेशान कर रहे थे, अब आगे.... 

        ( अजय फ़िर से ऑफिस जाके उन लड़को के बारे में जानने की कोशिश में लग गया, जिसने उसकी बहन माया और शबाना की ऐसी हालत की थी। जिसकी वजह से माया इतना डरी-डरी सी रहनी लगी थी।

        फ़िर अचानक उसे ख़्याल आया, कि आख़िर इस बात का कैसे पता करूँ ? की वह लड़के वहीं थे, या कोई और ? मेरी तो कुछ समज में नहीं आ रहा। अजय इसी कसमकस में था और उसी वक़्त फ़ोन  की घंटी बजती है। घर से बाई का ही फ़ोन था। )

बाई : ( थोड़ी गभराई हुई सी ) साहब-साहब आप जल्दी से घर वापस आ जाइए, वो माया दीदी ने अपने आप को कमरे में बंद  कर दिया है और दरवाज़ा नहीं खोल रही है, मैंने बाहर से दीदी को बहुत आवाज़ लगाई, मगर अंदर से कोई ज़वाब नहीं आ रहा। मुझे बड़ी गभराहट सी हो रही है, कहीं वो कुछ गलत ना कर बैठे। आप बस जल्दी से घर आ जाइए। 

अजय : तुम फ़ोन रखो मैं अभी आता हूँ। तब तक तुम दरवाज़े से उसे आवाज़ लगाती रहना। 

बाई : जी साहब। 

        ( कहकर बाई फ़ोन रख देती है, और फ़िर  से माया के कमरें के बाहर से उसे आवाज़ लगाती रहती है। )

         (  कुछ ही देर में अजय वहाँ आ जाता है। उसने भी माया के कमरे का दरवाज़ा खटखटा के माया को बहुत आवाज़ लगाई, मगर माया के दरवाज़ा ना खोल ने पर अजय ने धक्का लगा के माया के कमरे का दरवाज़ा तोड़ दिया। अजय ने अंदर देखा तो माया अपने आप को पंखें से बांध कर मरने की कोशिश में थी। वो तो अच्छा हुआ, की अजय ने वक़्त पे आकर उसे बचा लिया। 

       ( अजय को देखते ही माया इधर-उधर कमरे में फ़िर से भागने लगती है, चिल्लाने लगती है। )

माया : मैं अब इस डर के साथ नहीं रह सकती, मुझे मर जाना है। मैं अब जीना नहीं चाहती। मुझे जाने दो भैया, मुझे जाने दो। वो लड़के फ़िर से मुझे और शबाना को परेशान करेंगे। इस डर के साथ रहुँ, इस से अच्छा है, की मैं अब मर ही जाऊँ। थोड़ी सी भी किसी की आहत मुझे डरा देती है, शबाना पता नहीं कैसी होगी, मेरी उस से मिलने की या बात करने की हिम्मत ही नहीं हो रही।  अगर मेरा ये हाल है, तो उसका क्या हाल हुआ होगा। ये सोच मेरा दिल काँप उठता है।  

       ( अजय उसे प्यार से समजाने की बड़ी कोशिश करता है, मगर वो उसकी एक भी बात सुनना नहीं चाहती थी, बस रोए जा रही थी, रोए जा रही थी। माया बहुत ही छटपटा रही थी, उस को काबू में करना अजय के लिए मुश्किल हो रहा था।   

        ( माया के ना समजने पे अजय ने एक थप्पड़ उसके गाल पे लगा दिया। ) 

        ( फ़िर भी माया बस रोए ही जा रही थी। )

        माया का हाथ पकड़के अजय ने माया को बिस्तर पे बैठाया, फ़िर उसे समजाते हुए कहने लगा,

अजय : अपने आप को सँभालो माया, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ, फ़िर कैसा डर। जो हुआ सो हो गया, सब भूल जाओ। अब तुम्हें किसी से भी डर ने की कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि वो जो लड़के थे, जिस से तुम आज भी डर रही हो, वो सारे लड़के उसी रात एक एक्सीडेंट में मर गए थे। शबाना से अगर तुम बात करना या मिलना नहीं चाहती, तो नहीं सही, क्योंकि उस रात के बाद शबाना ने नाहीं किसी के साथ बात की और नाहीं वो किसी से मिल पाई। वो ये सब शायद सेह नहीं पाई, इसीलिए उस हादसे के दूसरे ही दिन उसने अपनी साँसे छोड़ दी थी। डॉक्टर्स भी उसे बचा नहीं पाए। अब तुम्हें हमारे लिए जीना है। क्या तुम मेरे लिए इतना नहीं कर सकती ? अपने आप को सँभालो, मेरे सामने देखो

        ( अजय माया का चेहरा अपनी ओर करते हुए ) 

     क्या तुम्हें अपने इस भाई पे थोड़ा सा भी भरोसा नहीं रहा ? क्या तुम मेरे लिए नहीं जीना चाहोगी ? बताओ माया, बताओ। 

       ( अजय की बात सुनकर माया थोड़ा शांत हो जाती है। शबाना के बारे में सुनकर उसका मन और भी भर आता है। बाई दोनों को पानी पिलाती है। उसकी आँखों में भी ये सब देख आँसु आने लगे। )

अजय : मगर मेरी समज में ये नहीं आ रहा, कि तुम उस रात यहाँ हमारे घर के दरवाज़े तक कैसे आई ? तुम्हें ऐसी हालत में यहाँ कौन छोड़ के चला गया ?

माया : ( कुछ याद करने की कोशिश में ) 

क्या ? मुझे यहाँ अपने घर के दरवाज़े तक कोई छोड़ गया था ? 

     ( माया अपने दिमाग पर ज़ोर लगाते हुए )

         मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है। 

अजय : अच्छा, कोई बात नहीं, अपने दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर मत लगाओ।  तुम्हें जब भी याद आए तो बता देना, मुझे कोई जल्दी नहीं है।   

       ( माया का ध्यान दूसरी तरफ़ ले जाने के लिए, बात को घुमाते हुए, माया को फ़िर से समजाते हुए )

अजय : माया, अब तुम्हें बीते हुए कल के साथ नहीं, मगर आनेवाले कल के साथ जीना है, जो तुम्हारा अपना है। अपनी आँखों में एक नई आशा की किरण भरो, एक नया  सपना देखना शुरू करो, उन सारे सपनों को पूरा करो, रास्ता तुम्हें अपने आप मिल जाएगा। मंज़िल तुम्हारे सामने होगी। पीछे मुड़ कर मत देखो, बस आगे कदम बढ़ाती चलो, मैं हूँ ना तुम्हारे संग। तुम हर पल एक साए की तरह मुझे अपने पास पाओगी, तुम्हारी हिम्मत बनकर।  

        ( माया अपने भाई अजय की बात सुनकर चुप रह जाती है और अजय को गले लगाते हुए उसे सिमटकर उस के और करीब बैठती है। माया में अपने भाई अजय की बात सुनकर थोड़ी हिम्मत आ जाती है। माया अजय को इतना कहती है, कि )

माया : मुझे लगता है, की मुझे बड़ी थकान सी महसूस हो रही है, और मुझे नींद भी बहुत आ रही है, मुझे सो जाना है। 

     ( कहते कहते माया अपनी आँखें बंद कर देती है। )

     ( इतना सब होने के बाद माया बहुत थकी हुई सी लग रही थी। इसलिए अजय ने माया को दवाई पिलाकर सुला दिया। 

     अजय ने माया को समजा तो दिया, मगर उसके अंदर भी एक बहुत बड़ा तूफ़ान चल रहा था। 

       थोड़ी देर तक अजय माया के करीब बैठ उसे एकनजर देखे जाता है। थोड़ी देर बाद अजय की नज़र अलमारी के पास गिरी हुई उस डायरी पे पड़ी, जिसमें माया के सारे दोस्त के नंबर्स थे। अजयने वह डायरी उठाके देखा तो उस डायरी में माया के सभी दोस्त के नंबर्स थे, जिस को अजय जानता था। )

अजय : ( मन ही मन अपने आप से बात करता है। ) 

   " माया के इन सभी दोस्तों को तो मैंने पूछ लिया था, मगर किसी ने कुछ नहीं बताया। मगर इस डायरी में एक और नंबर भी था, वह नंबर था रमेश का। जिस से मैंने अभी तक बात नहीं की और जिस के बारें में मुझे कुछ पता भी नहीं। नाहीं कभी माया ने मुझे रमेश के बारे में कुछ बताया। अब इस रमेश से भी मुझे बात करनी ही पड़ेगी, शायद इसे कुछ पता हो माया के बारे में या फ़िर उन लड़कों के बारे में । "

      (  माया को आराम से सुलाकर अजय धीऱे से माया के कमरे से बाहर निकलता है। अजय  कमरे में जाकर फ़िर से अपने काम में लग गया। 

        अजय चाहता तो उसे फ़ोन करके सीधा सब कुछ पूछ सकता था, मगर अब अजय को पता चल गया था, कि अगर उसे कुछ पता भी होगा तब भी वह भी दूसरों की तरह शायद कुछ ना बताए।  इसलिए उस से बात निकलवाने के लिए कोई दूसरा तरीका अपनाना होगा। इसलिए दूसरे दिन अजयने सब से पहले माया से रमेश के बारे में पूछा। )

अजय : माया, क्या तुम किसी रमेश नाम के लड़के को जानती हो ? क्या वो तुम्हारे साथ कॉलेज में पढ़ता था ?

माया : ( कुछ देर सोचने के बाद ) हाँ, याद आया, रमेश  नाम का लड़का मेरे साथ, मेरी ही क्लास में पढ़ता था, रमेश पढ़ाई में अच्छा था, मगर वह बहुत शरमाता था, इसलिए बातें बहुत कम करता था।  मगर आज आप अचनाक उसके बारे में क्यों पूछ रहे हो, कुछ हुआ क्या ?

 अजय : नहीं, कुछ भी तो नहीं, बस ऐसे ही। तुम अब बस आराम करो। मैं अभी ऑफिस जाके आता हूँ। मैंने बाई को बोल दिया है, वो तुम्हारा ख्याल रखेगी।

       ( कहकर अजय वहांँ से अपनी बैग और काला कोट लेकर घर से बाहर जाने के लिए आगे बढ़ता है तभी पीछे से माया उसे आवाज़ लगाकर कहती है।)

माया : भैया, सुनो तो, जितना हो सके उतना जल्दी वापस घर आ जाना। 

      ( माया के चेहरे की मासूमियत देखकर अजय को एक पल के लिए तो वहांँ से जाने का मन नहीं किया। मगर जाना तो था, उसी के लिए ) 

अजय : जैसे ही मेरा काम ख़तम होगा, मैं जल्द से जल्द वापस लौट आऊँगा। मैं बस यूँ गया और यूँ आया।  तुम बस अपना ख्याल ऱखना। 

     ( कहते हुए अजय घर से निकल जाता है और माया उसे दूर तक जाते हुए देखती रहती है, अजय के जाते ही, बाई ने आगे आकर धीरे से घर का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और माया को नास्ता करने को कहा )

        ( अजय ने पूरी रात में उस रमेश के बारे में पता लगा लिया था, रमेश अब एक बड़ा बिज़नेस मेन बन चूका था, तो उस से मिलने अजय खुद ही उसकी ऑफिस चला जाता है। )

अजय : ( रमेश अपनी ऑफिस में ही था और कुछ काम में लगा हुआ था, अजय रमेश दरवाज़ा खटखटाते हुए ) 

               क्या में अंदर आ सकता हूँ ? 

        ( रमेश ने सिर उठाकर देखा, तो पहले तो वो पहचान नहीं पाया, की वह कौन है ? फ़िर भी रमेशने )

रमेश : जी जरूर। आइए, बैठिए। मगर क्या मैं आपको जानता हूँ ? क्या हम पहले कहीं मिले है ? 

अजय : जी, वैसे तो नहीं। मगर मेरी बहन माया से शायद आप मिले होंगे। 

        ( अजयने सीधे ही माया का नाम ले लिया, ताकि उसके चेहरे से पता चल सके, कि वो माया के बारे में कुछ जानता भी है या नहीं ? )

        ( माया नाम सुनते ही रमेश के चेहरे का रंग ही उड़ गया।  उसकी आँखों के सामने वो सब कुछ आने लगा जो उसने उस रात देखा था। मगर वह अब भी चुप रहा, जैसे कुछ छुपाने की कोशिश में हो। )

रमेश : ( थोड़ा याद करने का दिखावा करने के बाद ) 

       जी माया ! मैं जानता तो हूँ, मगर आप कौन ? और माया के बारे में आप मुझ से क्यों पूछ रहे हो ?

अजय : जी, मैं माया का बड़ा भाई, एडवोकेट अजय प्रताप।

 रमेश : ओह्ह ! sorry, मैंने आपको पहचाना नहीं। बताइए, आपका यहाँ  कैसे आना हुआ ? क्या कुछ काम था आपको मुझ से ?

अजय : हाँ, माया की फ़ोन डायरी में आपका नाम था, मगर उसने कभी कुछ आपके बारे में बताया नहीं और  शायद मुझे लगा, वह आप को जानती हो, आप से कुछ बात करना चाहती हो, वैसे आप शबाना और माया के साथ जो हुआ वो तो जानते ही होंगे। इतने वक़्त के बाद अब जाके माया ने होश संँभाला है और मैं उसे ख़ुश देखना चाहता हूँ और माया अपने बीते हुए कल को भुल जाए। इसीलिए आप को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मैं यहाँ तक आ पहुँचा। क्या आप माया की ख़ुशी के लिए और उसके बीते हुए कल को भुलाने में मेरी मदद करेंगे ? और क्या आप थोड़ी देर के लिए मेरे घर माया को मिलने आ सकते हो क्या ? 

       ( पहले तो रमेश को अजय की बातें बड़ी अजीब लगी, आख़िर आज भी वो माया को प्यार करता था, मगर उस हादसे ने रमेश को भी हिला के रख दिया था, उस हादसे के बाद रमेश की कभी हिम्मत ही नहीं हुई, माया  से मिलने की या उसका सामना करने की। मगर कुछ पल सोचने  के बाद ) 

  रमेश : जी ज़रूर, क्यों नहीं। मगर माया अब ठीक तो है ना ? 

 ( रमेश ने अपने मन में उठे सवाल को बोल ही दिया। ) 

अजय : हाँ, अब तो माया थोड़ी ठीक हुई है, मगर उसकी अलमारी में से उसे कुछ दोस्तों की तस्वीर और फ़ोन नंबर मिले तो वह सब को याद कर रही थी और तो कुछ नहीं बस ! तो सोचा आप को बुला लूँ  ? अगर आप के पास थोड़ा वक़्त हो तो ?

रमेश : हाँ, हाँ, ज़रूर क्यों नहीं ? आज तो शायद वक़्त नहीं, मगर मैं माया से मिलने कल आ जाऊँगा। आप  अपने घर का पता बता दीजिए। 

 ( वैसे रमेश को माया के घर का पता मालूम था, मगर फ़िर भी उसने कहा )

अजय : ( अपने  घर का पता और अपना फ़ोन नंबर देते हुए ) 

     अच्छा तो, कल सुबह 10 बजे आप ज़रूर आ जाना। तो अब मैं चलता हूँ। 

       ( कहते हुए अजय वहाँ से चला जाता है। मगर रमेश  सोच में पड जाता है, की इतने सालों बाद आज अचनाक माया !! उसकी नज़रों के सामने वह दर्दनाक हादसा फ़िर से आने लगा। थोड़ी देर बाद रमेश ने अपने आपको अपने काम में फ़िर से लगा लिया। मगर फ़िर भी उसके मन में एक ही सवाल उठता था, आज अचानक मुझे क्यों बुलाया होगा ? ) 

         तो दोस्तों, क्या रमेश को उस हादसे के बारे में क्या कुछ पता होगा भी या नहीं ? अब अजय रमेश के पास से सारी बात जान पाएगा या नहीं ? और कैसे ? 

     अगला भाग क्रमशः  ।।

                                                               Bela... 

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