PATI-PATNI KAA ALGAV

                                       पति-पत्नी का अलगाव 

       मुझे आज भी याद है, मेरी सहेली सारिका की शादी १ साल पहले आज ही के दिन हुई थी, और आज ही के दिन उनका तलाक भी। मानव आज ही के दिन 1 साल पहले घोड़ी पे बैठ के, अपने प्यार के बंधन में बंध कर दुल्हन के लाल जोड़े में सजी, मेरी सहेली सारिका को अपने साथ ले जाने आया था। सारिका भी अपने दिल में कई अरमान और आँखों में कई सपने साथ लेकर, उसके साथ शादी के सात वचन निभाने का वादा करके, डोली में बैठ कर जा रही थी। 

       मगर किसे पता था, मगर किसे पता था, कि " वो जो सपने दोनों ने साथ मिलके देखे थे, वो सपने कुछ ही महीनो में टूट के बिखर जाएँगे।" 

      हाँ, दोस्तों आप सोच रहे होंगे, कि " ऐसा क्या हुआ होगा ? दोनों की ज़िंदगी में कि दोनों को एक ही साल में एकदूसरे से जुदा होना पड़ा। " 

       बात थी सिर्फ़ मान और सम्मान की। जो शायद मानव सारिका को नहीं दे पाया। सारिका पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की है, सारिका बचपन से ही किसी के साथ अन्याय होते हुए देख नहीं सकती थी। उसने बचपन से ही सोच रखा था, कि वो बड़ी होकर वकील ही बनेगी, और देश की हर औरत को न्याय देने के लिए सब से पेहली खड़ी रहेगी। सारिका ने शादी से पहले ही मानव को ये सब बता दिया था, कि वो शादी के बाद भी अपनी वकालत नहीं छोड़ेगी। और मानव ने भी उसे हाँ कह दिया था, कि " वैसे तो मेरा बहुत बड़ा बिज़नेस है, तुम्हें सारी उम्र कुछ करने की ज़रूरत नहीं है, मगर तुम्हारी यही मर्ज़ी है, तो यही सही। मुझे तुम्हारे काम करने से कोई परेशानी नहीं।" 

     पहले तो सब कुछ ठीक-ठाक चला, सारिका अपना घर का काम और अपनी वकालत दोनों अच्छे से सम्भाल  रही थी, मगर जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे दोनों के बिच फासले भी बढ़ते गए। क्योंकि दोनों जहाँ भी साथ में जाते, हर जग़ह सारिका की, सब लोग बहुत तारीफ़ करते रहते, पहले तो मानव को अच्छा लगा, लेकिन बाद में उसका ईगो हर्ट होने लगा। मानव हर छोटी से छोटी बात को लेकर सारिका से झगड़ा करने लगा। धीरे धीरे मानव ने सारिका के साथ पार्टी में जाना, घूमने जाना और शॉपिंग पे जाना बंद कर दिया। तब सारिका अकेली भी चली जाती थी, फिर एक दिन मानव से सहा नहीं गया, उसने छोटी सी बात को बड़ा बनाकर सारिका को बहुत बुरा भला सुनाया, और उसे अपनी वकालत छोड़ने को भी कह दिया। सारिका से अपना ऐसा अपमान सहा नहीं गया, और वो उसी रात अपना सामान लेकर मेरे घर आ गई। 

         उसने मुझे सारी बात बताई, मुझे भी सारिका की बात सुनकर लगा, कि इस में गलती मानव की ही है, कोई भी लड़की अपने बारे में ऐसा सुनकर उसके साथ नहीं रुक पाती। फिर भी मैंने सारिका को समझाने की कोशिश की, कि " ऐसे घर छोड़ने में कोई समझदारी नहीं है, झगड़े तो हर घर में होते है, कुछ दिनों के बाद सब ठीक हो जाएगा। और मानव को भी अपनी गलती का एहसास हो जाएगा। तुम अपने घर वापस चली जाओ। 

       मगर सारिका इस बार ठान के घर से निकली थी, कि उसे अब मानव के साथ नहीं रहना है, रोज़ रोज़ के ताने और झगड़ो से वो तंग आ चुकी थी। उसने मानव को  तलाक़ देने का फैसला कर लिया। सारिका तो खुद वकील थी, इसलिए उसने जल्दी से तलाक के कागज़ तैयार कर दिए। तलाक के नियम के मुताबिक तीन महीने तक courat ने फिर से दोनों को साथ रहने का हुकुम सुनाया। 

        तब सारिका और मानव दोनों ने अपनी शादी शुदा ज़िंदगी को एक और मौका देने की कोशिश की। इसलिए सारिका फिर से मानव के साथ रहने लगी, सारिका और मानव ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की, रिश्ता बनाए ऱखने की मगर तब भी कोई फ़र्क ना पड़ा। मानव को अपना ईगो प्यारा था, तो सारिका को अपना सम्मान। आखिर में दोनों अलग हो ही गए। 

       २० दिसंबर उनकी शादी की सालगिरह के दिन ही दोनों का तलाक मंज़ूर किया गया। सारिका ने अपनी कमाई के पैसे जमा कर रखे थे, इसलिए उसने अपने मायके ना जाकर अपने लिए एक छोटा सा फ्लैट खरीद लिया। सारिका एक अच्छी वकील थी, तो उसे काम मिलता ही जा रहा था, तो वो उसी में ज़्यादा अपना वक़्त गुज़ारती, और मानव अच्छा बिजनेसमैन था, तो वो भी अपने काम में व्यस्त रहता। 

       मगर ये बात भी सच है, कि " दोनों ने एकदूसरे से बहुत प्यार किया था, वही उन दोनों का पहला और आख़री प्यार था।

      मगर क्या करे, मानव के उसूलों के साथ जीना सारिका को कतई मंज़ूर नहीं था, और मानव ने भी सारिका को बहुत प्यार किया था, मगर वो भी अपने ईगो को छोड़ नहीं सकता था। इसलिए दोनों अलग तो हो गए लेकिन प्यार तो शायद एकदूसरे से आज भी करते ही है।          

        उन दोनों की ज़िंदगी को देख मुझे ख़याल आता है, कि " कभी कभी हम जिसे चाहते है, वो हमारी हर बात माने या हमारी तरह ही उनकी सोच हो, ऐसा ज़रूरी भी नहीं। "

      अब सच कहुँ तो सारिका और मानव दोनों के हालात कुछ ऐसे थे, कि " दोनों ने साथ निभाने का वादा किया, दोनों को चलना था उम्रभर एकदूजे के साथ, मगर हालत हुए कुछ ऐसे, कि अब वो दोनों चाहकर भी एकदूसरे को अपना नहीं सकते, दोनों के ज़िंदगी जीने के सलीके, दोनों को राज़ नहीं आऐ। " 

         " टूटे हुए रिश्तों को जोड़ पाना उतना ही मुश्किल है, जितना की तुटे हुए काँच के शीशे को जोड़ना। " 

     तो दोस्तों, ज़िंदगी हम से वही करवाती है, जो हम कभी करना नहीं चाहते, मगर कभी-कभी हालत ही कुछ ऐसे हो जाते है, जिसको ठीक करना हमारे बस में भी नहीं होता। हम चाहकर भी उसे ठीक नहीं कर पाते। जब साथ रह पाना इतना मुश्किल हो जाता है, तब पति-पत्नी का अलग हो जाना ही बेहतर है। 

                                                            Bela... 

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