BACHPAN

                               बचपन
 
       इस बार दिवाली पे मैं अपनी बाई के साथ, जब घर की साफ सफ़ाई कर रही थी, तब मैंने अपने बेटे के पुराने कपड़े, किताबें और खिलौने निकाले और वो मैं अपनी बाई को दे रही थी, क्यूंँकि उसका भी मेरे बेटे आकाश की तरह एक १२ साल का छोटा सा बेटा है और वो उसे कभी कभी अपने साथ घर पर लेकर आती है,  मेरा  बेटा आकाश और उसका बेटा छोटु दोनों हमउम्र है, तो वो दोनों साथ में खेलते भी थे।
         तब मैंने सोचा, की अब ये कपडे और किताबें मेरे आकाश को तो काम नहीं आएँगे, तो उस छोटू को काम आ जाऐगे। ये सब मेरा आकाश दूर बैठकर देख़ रहा था। थोड़ी देर बाद वो मेरे पास आया और मुझ से कहने लगा, कि " मम्मी, मम्मी आप ये सब मेरे पुराने कपडे और किताबें उस छोटू को दे रहे हो, उस के साथ-साथ क्या मैं  अपना नया वाला शर्ट और वो मेरी छोटी लाल कलर की मनपसंद कार भी उसको दे दूँ क्या ? वो मेरा दोस्त भी है, और हम दोनों साथ में खेलते भी है, जैसे आप और पापा मुझे हर साल गिफ़्ट देते हो, तो मेरी ओर से मेरे दोस्त छोटू को ये दिवाली गिफ़्ट दे दू, तो वो कितना खुश हो जाएगा ना ! मम्मी " 
      फ़िर मैंने आकाश से कहा, कि " वो तो तुम्हारा मनपसंद शर्ट और कार है ना ! जो तूने ज़िद्द कर के दिवाली पे अपने लिए लिया था। तो फ़िर वही क्यूँ ? कोई और देदे। " 
      तब आकाश ने कहा, कि " नहीं मम्मी,  मुझे जो चीज़ पसंद नहीं, वो चीज़ भला मैं किसी और को कैसे दे सकता हूँ ? मुझे ऐसा अच्छा नहीं लगता। अगर मुझे पसंद आएगा, तभी तो मेरे दोस्त को मेरा दिया हुआ गिफ़्ट पसंद आएगा ना, मम्मी ! "
       आकाश की ऐसी समझदारी भरी बातें सुन मुझे भी लगा, की " हम बड़ो को भी आकाश और उसके नाम की तरह बड़ा और विशाल मन रखना चाहिए। आकाश सच में सही कह रहा है, हम अपने और बच्चो के लिए तो हर साल नए कपडे लेते ही है, मगर हम उन के बारें में ये कभी नहीं सोचते, जो पूरा साल हमारे घर को अपना घर मान कर हमारा सारा काम करते है। तो क्या साल में एक बार हम उन्हें भी अपना मान कर अपने साथ साथ उनके लिए भी नए कपड़े और मिठाई लेकर उनको दे, तो वो भी कितने खुश हो जाएँगे ना ! और  उनकी कितनी दुवाएँ हम को मिलेगी। उनकी दुवाओ से हमारे घर में खुशियाँ बरक़रार रहेगी। 
            अगर हमारे बच्चें अपने मनपसंद कपड़े, किताबें और खिलौने बिना सोचे, अपने दोस्त को देने के लिए तैयार हो जाते है, तो फिर क्या हमें हमारे मन को बड़ा नहीं करना चाहिए ? कभी कभी छोटे से बच्चे हम को बहोत कुछ सीखा जाते है। 
        सच में बच्चे बड़े ही साफ मन के होते है, नाहीं उनके मन में किसी के भी लिए गुस्सा या नफरत है, और नाहीं कोई बैरभाव, नाही कोई जात-पात या ऊंच-नीच का भेदभाव, बच्चे सब को समान नज़र से ही देखते है।           किसी की छोटी सी बात को दिल पे लगाना और उसे उम्र भर तक याद ऱखना, उनसे रिश्ता ही तोड़ लेना, बात बात पे गुस्सा करना। बैर भाव और ऊंच नीच तो हम बड़े लोग ही रखते है।" बच्चे तो सच में मन के सच्चे होते है। "
      और हाँ दोस्तों, यहि बात पे एक और बात याद आती है, कि " हर पल, हर घड़ी जो हस्ते और मुस्कुराते रहे, बस अपनी ही धुन में खोए रहे, आज फिर से मन करता है, कि चलो, वो बचपन को एक बार फिर से जी ले, जहाँ नाहीं कोई भेदभाव और नाहीं कोई ऊंच-नीच, और नाहीं कोई परेशानी या ज़िम्मेदारी हो, 
    " चल मन आज फिर से सयाने से थोड़ा नादान बन जाए। " आज दिन भी है बच्चो का, आज के दिन एक बार चलो फ़िर से, अपना बड़प्पन छोड़, फ़िर से एक बार हम बच्चे बन जाए। "
       तो दोस्तों मेरी और से आप सभी को बाल दिवस की बहोत बहोत शुभकामनाएँ। 

                " HAPPY CHILDREN'S DAY "
                                                         Bela... 

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