RIT-RIVAZ

                                          रीत-रिवाज़ 

          वक़्त को शायद कुछ और ही मंज़ूर है, वक़्त के आगे भला किसका ज़ोर चलता है, समाज के सामने हर इंसान आखिर झुक ही जाता है, या तो फिर उसे झुकना ही पड़ता है, बहोत कम लोग ऐसे होते है, इस दुनिया में जो समाज के बंधन को तोड़ के अपने मुताबिक ज़िंदगी जीते है और जिसने आवाज़ उठाई, उस पे पहले हर ऊँगली उठी, मतलब पहले सब ने उनका विरोध किया, लेकिन जब वो आदमी कामियाब होता है, तब उन्ही सब लोगो ने अपने ही हाथों से उसे शाबाशी दी। 

          कैसी है ये दुनिया, कैसे है ये लोग ?

हाँ, दोस्तों लोगो का तो काम है कहना। उनका मुँह कभी बंद नहीं होनेवाला। उनको तो सिर्फ़ बात करने के लिए  ताज़ा खबर चाहिए, जिस पे मिर्च-मसाला लगाकर वो बात को ओर बढ़ा सके। लेकिन हमें उनकी बातों को नज़र अंदाज़ करके जो सही है, उसका साथ देना चाहिए और उस के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। तभी हम पुराने रस्मों-रिवाज़ और अन्धविश्वास से सब को बाहर निकाल पाएँगे। जैसे की बड़ी हवेली, महँगी कार, क़ीमती से क़ीमती कपड़े और आभूषण, व्यापारीओ का अनाज का संग्रह करना और उसे महँगे दामों में गरीब को बेचना, बाल विवाह, विवाह में दहेज़ लेना और देना, विवाह में बैंड-बाजे और डी.जे बजाना, घुड़चढ़ी के समय पुरे परिवार का बेशर्मो की तरह नाचना, पति के मर जाने पर विधवा औरत को उसके साथ जलाना या तो उस के बाल काट के उसका मुंडन कर देना, मौलकी प्रथा, लड़की को बेचना, उसको मारना, दादा की उम्र के लड़के से लड़की का विवाह पैसो के लिए कर देना, महावारी के समय में लड़की को कुछ भी छूने की इजाज़त नहीं देना, यहाँ तक की उसे एक अलग कमरे में रखा जाता है, उसे छूते भी नहीं, बल्कि मेरे मुताबिक अगर ये महावारी लड़की को ना आए तो दुनिया आगे ही नहीं बढ़ पाएगी। कोई लड़की माँ ही नहीं बन सकती। तो फिर इसे बुरा क्यूँ माना जाता है ? इन दिनों में लड़की को इतनी शर्म और बेइज़्ज़ती क्यूँ  सहनी पड़ती है ? शादी के बाद आज भी लड़की को घूँघट में क्यूँ रहना है ? छोटी, जवान या बड़ी उम्र की औरत के  साथ बलात्कार, छोटे लड़के का भी बलात्कार, छोटे से लड़के और लड़की का जातीय शोषण, अपने ही घर के लोगों या बाहर के लोगों से हो रहा है। और भी बहोत कुछ जो शायद हमें पता भी नहीं, ऐसे और भी शर्मनाक हादसे और रिवाज़ आज भी इस दुनिया में चल रहे है, जिसे रोकने की ज़रूरत है।

        एक सुंदर औरत को जब देख रावण की नियत बिगड़ जाती है, उस में दोष किसका ? सीताजी  की सुंदरता का या रावण की नियत का ? एक तो सीताजी जिसने लक्ष्मण की बात ना मानकर लक्ष्मण रेखा पार कर ली, जो उसे नहीं करनी चाहिए थी।  इस में पहला दोष रावण का जो शिवजी का भक़्त होकर भी दूसरी औरत को पाने के बारे में उसने सोचा और दोष सीताजी का भी जो खुद का बचाव करने में सक्षम नहीं थी और वो राम का इंतज़ार कर रही थी। इसलिए हर लड़की और हर औरत को भी अपना बचाव खुद करना चाहिए, राम के आने तक का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, क्यूंँकि हर एक में राम नहीं बसता और हर एक में रावण भी नहीं है, जो सीताजी  की हांँ का इंतज़ार करे।अब शायद आप लोग सोच रहे होंगे, कि रावण की मृत्यु राम के हाथों ही लिखी थी, इसीलिए तो सीताजी का हरण रावण ने किया। लेकिन मेरा कहना ये है, कि राम किसी भी युद्ध में रावण को मार सकते थे, उस में सीताजी का हरण करवाना ज़रूरी नहीं था, क्यूंँकि फिर इसी बजह से सीताजी को राम से अलग ही होना पड़ा, फिर क्या मिला उनको रावण का वध करके। सीताजी को उस के बाद सिर्फ और सिर्फ बदनामी ही तो मिली है, पहले जो लोग सीताजी की पूजा करते थे, बाद में वही लोग उन पे उँगलियाँ उठाने लगे। ये कहा का न्याय है ? और खुद उनके पति श्री राम ने भी अपनी पत्नी सीता पे भरोसा नहीं किया।  स्त्री के साथ ये अन्याय आज की बात नहीं, बरसो से चली आ रही ये रीत है।  जिसे अब बदलना है।और साथ में हमें अपने ही बच्चों  और उनके  दोस्तों को भी ये सीखाना चाहिए, की ये सब गलत है, ऐसा नहीं करना चाहिए और ऐसे होते हुए देखे तो उसे रोकना भी चाहिए।  

       और अगर कही हमारे घर में शादी हो, तो हम एक हफ्ते तक वो शादी celebrate करते है।  जैसे कि नाच गाना, शॉपिंग, फोटोग्राफी, हल्दी, मेहँदी, खाना, पीना, और हाँ, खाने में कितने सारे पकवान होते है, जैसे कि  " दो तरह के सूप, ५ तरह की चाट, ३ सब्जियाँ, ५ स्लाड्स, २ तरह की दाल और राइस, रोटी, चपाती, पूरी अलग से, २ तरह के फरसाण, २ तरह के आइस-क्रीम, बहोत सारे मुखवास, इस से अगर मन नहीं भरे तो केक, और बच्चो के लिए बुद्धि का बाल। " इतना सारा खाना एक ही वक़्त पे एक ही आदमी कैसे खा सकता है ? लेकिन वो " चलो थोड़ा टेस्ट कर लेते है, की चक्कर में सब कुछ खाए जाता है, और बाद में इतना खाना हज़म ना होने पर घर जाते-जाते सोडा भी पी जाता है। " अब ये सब फ़िज़ूल खर्च नहीं हुआ, तो और क्या हुआ ? आपके ये सब मेहमान तो घर में भी ये सब खाना खाते ही होंगे। अगर ये खाना आप किसी गरीब को दो, जिसने इतना खाना कभी देखा ही नहीं, तो उनकी कितनी दुवाएँ आपको और आपके बच्चों को मिलेगी ! सोच के देखना कभी। अब शायद आप में से कई लोग कहेंगे, की बचा हुआ खाना बाद में सब गरीब को ही जाता है, लेकिन आप किसी को बचा हुआ खाना खिलाओ और किसी को पहले से ही अच्छावाला खाना खिलाओ, उस में बहोत फर्क होता है।और भी बहोत सारे फ़िज़ूल के खर्च शादी में कर डालते है। 

      तो दोस्तों, मेरा तो ये मानना है. कि इन सब से हमें अपने आप को और समाज को बचाना है। किसी को तो आवाज़ उठानी ही होगी, तो शुरुआत हम से ही क्यूँ ना की जाए ? 

       हमारे अपने ही घरो में ये सब रिवाज़ आज भी चल रहे होंगे, या तो हमारे आस-पास के घरो में। इस डर से, की " अगर ऐसा नहीं करेंगे, तो कैसा लगेगा, लोग क्या कहेंगे। " " बस ये लोग क्या सोचेंगे ? और लोग क्या कहेंगे ? " ये सोचकर हमे जो नहीं करना होता है, वो सब करते जाते है।  मगर अब बस, अब और नहीं, अब वक़्त बदल चूका है, अब वक़्त को हमें बदलना ही होगा और शुरुआत हम से करनी है, हमारे ही घरो से। 

      और सुनाऊँ, तो मेरा भारत देश महान कहनेवाले लोग, आज कल ना जाने क्यूँ हमारा भारत देश छोड़ पैसा कमाने के लिए विदेश जाके बस जाते है और वापिस लौट के आने का नाम ही नहीं लेते। मुझे आज ये ख़याल आता है, कि भगवान ने हमें भारत देश में जन्म दिया है, तो कुछ सोच समझकर ही तो दिया होगा ना ! तो क्या हमे अपने देश में पढ़कर और अच्छा काम कर अपने ही देश को आगे बढ़ाने के बारे में क्यूँ नहीं सोचना चाहिए  ? 

      तो क्या दोस्तों, इन सब रिवाज़ो को बदलने में आप सब मेरा साथ देंगे ?

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                                                               Bela... 

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