RAJKUMARI

                                                     
                             राजकुमारी 

         एक राजा और एक रानी। उनकी  एक खूबसूरत राजकुमारी। जो राजा और रानी को जान से भी प्यारी। राजा-रानी और राजकुमारी सब महल में बहोत खुश थे, मगर एक दिन राजकुमारी सीढ़ियों से गिर गई थी।  गिरने के बाद राजकुमारी चल नहीं पाती थी, कितने वैध्य और हकीमों को उन्होंने दिखाया, मगर राजकुमारी की हालत में कुछ फर्क ना पड़ा। अब तो धीरे - धीरे राजकुमारी की शादी की उम्र हो रही थी, तो राजा और रानी को राजकुमारीकी शादी की चिंता सताए जा रही थी, की ऐसे हालात में राजकुमारी के साथ शादी कौन करेगा ?
         तब एक दिन राजा ने अपने राज्य में ये घोषणा करवा दी की, " जो भी नौजवान राजकुमारी के पाँव ठीक कर देगा, उसी के साथ राजकुमारी की शादी करवा दी जाएगी। और उस नौजवान को इस राज्य का राजा भी बनाया जाएगा।"        
        ये बात सुनकर राज्य में बड़ी चहल -पहल मच गई।  सब को राजकुमारी से शादी जो करनी थी, इसलिए एक के बाद एक सब लोग आकर राजकुमारी के पाँव का इलाज करते, मगर राजकुमारी के पाँव में कुछ फर्क नहीं  पड़ा। 
       एक दिन राजाने देखा, की राजकुमारी चुपके से अपने कमरे की खिड़की से किसी लड़के से बातें कर रही है। राजा को बड़ा ताजुब हुआ, की " राजकुमारी, किस के साथ बातें कर रही है और क्यों ? " 
       राजा ने अपने मंत्री से उस लड़के के बारे में जाँच करने को कहाँ, जो राजकुमारी से चुपके से बातें कर रहा था। तो मंत्री के जाँच पड़ताल के बाद पता चला की वो एक चित्रकार ही था, जिसने पहले भी महल में आकर राजकुमारी की दो, तीन बार तस्वीरें बनाई थी।             
       राजाने पहले राजकुमारी से इस बारे में पूछा, तब राजकुमारी ने बताया की, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते है। राजाने राजकुमारी को उस वक़्त कोई जवाब नहीं दिया। फिर राजाने दूसरे ही दिन उस चित्रकार को दरबार में आने का फरमान भेज दिया। दूसरे दिन वो चित्रकार दरबार में अपने दोनों हाथ जोड़े और अपना सिर झुकाए, दरबार में हाज़िर हुआ। 
           राजाने उस चित्रकार से पूछा, की " तुम एक चित्रकार हो, क्या तुम फिर से एकबार मेरी राजकुमारी का चित्र बनाओगे ? "
           चित्रकारने कहा, " जी राजाजी, क्यों नहीं ? ज़रूर बनाऊँगा। कब और कहाँ तस्वीर बनानी है, मुझे बस इतना बता दीजिये। "
           राजाने कहा, की " इस बार तुम्हारे लिए राजकुमारी का चित्र बनाना आसान नहीं होगा, क्यूंँकि इस बार तुम राजकुमारी का ऐसा चित्र बनाओगे, जिसमें राजकुमारी बैठी हुई नहीं मगर खुले मैदान में दौड़ती हुई, फूलो के साथ बात करते मुस्कुराती हुई, आसमान में पंछी बन उड रही हो, ऐसी तस्वीर बनानी है, क्या तुम बना पाओगे ऐसी तस्वीर राजकुमारी की ? "
           चित्रकार ने कहा, " क्यों नहीं राजा जी, अपनी ओर से में पूरी कोशिश करूँगा, ऐसी ही तस्वीर बनाने की जैसा आपने कहाँ है। मगर इसके लिए मुझे राजकुमारी को कहीं बाहर ले जाना होगा। 
          चित्रकार की बात सुन राजा को थोड़ा आश्चर्य हुआ, लेकिन वो चित्रकार की परीक्षा लेना चाहता था, इसीलिए उसने चित्रकार को राजकुमारी की ऐसी तस्वीर बनाने को कहा। राजकुमारी को उसके साथ बाहर जाने की अनुमति देदी।  
          चित्रकार ने कहा," कल सुबह में राजकुमारीजी को लेने आ जाऊँगा। कल ही राजकुमारीजी की तस्वीर बना दूंँगा। मुझे आज्ञा दीजिए राजाजी।" ऐसा कहते हुए चित्रकार वहांँ से चला गया। 
         दूसरे दिन सुबह चित्रकार वक़्त पे राजकुमारीजी को लेने आ गया। राजा की आज्ञा लेकर चित्रकार राजकुमारी को लेकर वहांँ से निकलता है, राजने उनके साथ कुछ सिपाहीयों को भी भेज दिया। 
             चित्रकार राजकुमारी को रथ में बैठाकर कहीं दूर लेके जाता है, जहाँ से एक नदी बह रही थी, पर्वत के ऊपर से एक झरना भी बह रहा था, जिसका पानी नदी में जाके मिलता था, सुबह का वक़्त था, सूरज की किरणों से पर्वत जगमगा रहा था। बड़ा ही सुंदर द्रश्य दिखाई दे रहा था, राजकुमारी ऐसा द्रश्य देखते ही खुश हो गई, उसने ऐसा मनमोहक द्रश्य कभी नहीं देखा था। 
        राजकुमारी ने चित्रकार से कहा, की " ये तो बहोत ही सुंदर द्रश्य है, क्या तुम मेरा चित्र यही पे बनाने वाले हो?"
          चित्रकार ने कहा, की "जी नहीं राजकुमारीजी, हमें अभी और आगे जाना है, उस पर्वत की चोटी तक, वहाँ से ये द्रश्य बहोत ही खूबसूरत लगेगा। और वहांँ पे मैं  आपकी तस्वीर बनाऊँगा, और हांँ वहाँ पर बहुत सारे फूल भी है, जैसा राजाजी ने बताया था।  लेकिन इसके आगे हम को पैदल ही जाना पड़ेगा।  वहांँ आगे हम रथ नहीं ले जा सकते।"
           राजकुमारी ने कहा, की " मगर कैसे ? तुमको तो पता है, की मैं तो चल भी नहीं सकती।"
           चित्रकार ने कहा, की " जी राजकुमारी, आप फिक्र मत करो, अगर आपकी आज्ञा रही तो मैं आपको उठाकर वहाँ तक ले जाऊंँगा।"
         राजकुमारी को पर्वत के उस पार का रमणीय द्रश्य देखना ही था, इसलिए राजकुमारी ने हांँ कह दी। चित्रकार ने सिपाही को कुछ देर वही रुकने को कहा। 
        चित्रकार राजकुमारी को अपने हाथों में उठाकर पर्वत की और बढ़ने लगा, रास्ता थोड़ा टेढ़ा - मेढा भी था, इसलिए दो बार वो दोनों गिरते गिरते बच गए, चित्रकार ने बिच में राजकुमारी को थोड़ी देर वहांँ रुकने को कहा।  वो दोनों थोड़ी देर वहांँ रुकते है, राजकुमारी को उतने में प्यास लग रही थी, मगर वहांँ आसपास कहीं पानी नहीं था, चित्रकार ने राजकुमारी की आज्ञा ली और पानी लेने झरने जाता है, वही पे चित्रकार का पैर फिसलता है और वह  फिसलकर पर्वत की एक तरफ़ गिरने ही वाला था, कि उसके मुँह से चीख़ निकली जिसे सुनते राजकुमारी घबरा जाती है और चित्र को बचाने के लिए खड़ी होकर दौड़ते हुए चित्रकार का हाथ थामकर उसे ऊपर की तरफ़ खींचकर चित्रकार की जान बचाती है। चित्रकार ने राजकुमारी का बहोत - बहोत धन्यवाद किया। फिर अचानक चित्रकार का ध्यान राजकुमारीजी के पैरो की और गया और खुश होते हुए कहता है, की " वाह्ह राजकुमारीजी आप तो अपने पैरो पर खड़ी है, अब आप चल सकती है और आपने मेरी जान भी बचाई।" 
          राजकुमारी को भी इस बात का होंश ना रहा, की वो खुद अपने पैरो पे खड़ी है। राजकुमारी ख़ुश होते हुए  चित्रकार का हाथ पकड़कर, खुद चलके चित्रकार के साथ पर्वत की चोटी तक पहोची, जहाँ से सच में बड़ा मनमोहक  द्रश्य दीखाई दे रहा था, वहांँ पूरा दिन बातें करते करते चित्रकार ने राजकुमारीजी की तस्वीर बनाई। रात होने तक तस्वीर बन चुकी थी। दोनों फिर से महल की ओर जाने लगे। राजाजी के सिपाही भी पीछे - पीछे आ ही रहे थे।
      राजकुमारी का पैर ठीक होने की वजह से वो आज बहोत ख़ुश थी और वो खुद दौड़ती हुई अपने पिताजी के  गले लग जाती है, और कहती है, की " पिताजी मेरे पाँव ठीक हो गए है, देखिये अब मैं चल सकती हूँ, दौड़ भी सकती हूँ। आज मैं बहोत खुश हूँ।" राजकुमारी को अपने पैरो पे खड़ा देख राजा और रानी की आँखों में ख़ुशी के आँसू आने लगे।
        राजा ने चित्रकार से पूछा, कि तुमने यह चमत्कार  कैसे किया ?
       चित्रकार ने बताया की जी मैंने कुछ नहीं किया, उल्टा आज तो राजकुमारीजी ने ही मेरी जान बचाई है, अगर आज वो हिम्मत करके खड़ी नहीं होती और मुझे नहीं बचाती, तो शायद आज मैं यहाँ नहीं होता। इसलिए मैं  राजकुमारीजी का बहुत-बहुत आभारी हूँ और उसने वहांँ पर्वत पर  हुइ सारी बात राजाजी को बताई।
       चित्रकार ने राजा को ये भी कहा, की " राजकुमारी शायद बहोत सालों से घर से बाहर भी कभी कहीं नहीं गई थी, और उसने अपने मन में भी यही सोच लिया था कि वो चल नहीं सकती, इसलिए उन्होंने कभी अपने आप चलने की कोशिश भी नहीं की, और आज मुझे पर्वत से गिरता देख राजकुमारी भूल ही गई, कि वो चल नहीं सकती। जब मैं पहली बार उनसे मिला तब ही भाँप गया था, कि उनके पैर बिलकुल ठीक है सिर्फ़ अपने मन के वहम के कारण वह चल नहीं रही थी,  इसलिए मैं जानबूझकर वहांँ  से गिरा ताकि राजकुमारी डर के मारे शायद वहाँ से खड़ी हो जाए, और चलने लगे। मेरा शक सही निकला और वह मुझे बचाने दौड़ पड़ी। सिर्फ राजकुमारी के मन का  डर दूर करना था जो, अब हो गया। 
      फिर चित्रकार ने चित्र दिखाते हुए कहा, की " उस दिन जब आपने मुझसे कहा था की राजकुमारी की दौड़ती हुई तस्वीर बनानी है, तब में समज गया था की,आप चाहते है, की राजकुमारी फिर से चलने लगे, फूलो के साथ बातें करना मतलब फूलो की तरह हर पल मुस्कुराती रहे, आसमान में पंछी बनकर उडे, मतलब की वो भी अपना हर सपना पूरा कर सके और उसका भी आसमान को छूने का खवाब पूरा हो सके। "


        राजा चित्रकार की बात सुन बड़े खुश हुए, और बोले की तुम मेरी परीक्षा में पास हुए, मैं भी तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता था, इसीलिए मैंने तुम्हे ऐसा चित्र बनाने को कहा और तुम सफल रहे, इसलिए आज मैं  ये घोषणा करता हूँ, की " तुम ही मेरी बेटी से शादी करोगे और मेरा  राज्य भी तुम ही सँभालोगे।" पुरे राज्य में राजा और चित्रकार की जय जयकार होने लगी। राजा ने ख़ुशी - ख़ुशी अपनी बेटी की शादी  उस चित्रकार से करवा दी और उसे अपना राज्य देकर राजा भी बना लिया।  राजकुमारी भी चित्रकार से शादी कर बहुत खुश थी।               

        तो दोस्तों, ये थी एक राजकुमारी की कहानी, जिसके डर की वजह से वो कुछ सालों तक चल नहीं पा रही थी, इसलिए चाहे कुछ भी हो जाए, कैसी भी विपत्ति आ जाऐ अगर आप उनका सामना हिम्मत से करेंगे तो आप हर तक़लीफ़ से बाहर निकल सकते है। शायद दुनिया में ऐसा कोई रोग नहीं जिसका इलाज नहीं, हमें सिर्फ उसको पहले अपने मन से निकालना होगा, तभी हम उसको हमारे शरीर में से निकाल सकते है।        
                                                               Bela... 










   

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