EK AJNABI

                            एक अजनबी 

       राह चलते, जाने अनजाने एक अजनबीने हमारी ज़िंदगी ही बदल दी। दर्द हम को इस बात का नहीं की उसने हमें छोड़ दिया, दर्द इस बात का है, की बिना किसी वज़ह और बिना बताए उसने हमें छोड़ दिया और  उनके यूँ  चले जाने से बेवफ़ा हम ने उनको समज लिया, शायद हमें कुछ बता के जाते तो हम उन पर यूँ बेवफ़ा होने का इलज़ाम तो ना लगाते। मगर आज दिल को इतनी तसल्ली है, की वो बेवफ़ा नहीं। 

         हाँ, मेरा नाम निकिता, मैं आज आपको सुनाती हूँ, " एक अजनबी के साथ अजीब सी दास्ताँ।"

          " कॉलेज का पहला साल, ऊपर से मेरी १८  साल की उम्र, इस उम्र में,आप जो नहीं करना चाहते वो सब हो जाता है और शायद जो आप करना चाहते है, वो नहीं हो पाता है, इस में आपका या मेरा कोई दोष नहीं है, ये उम्र ही ऐसी होती है, ना जाने क्यूँ ?  सब कुछ जानते हुए भी मन कहीं और भागता रहता है। ? "

        " एक तो १८ साल की बाली उम्र, उस पे पढाई, कभी कभी तो मानो नाही पढ़ने में मन लगता है और नाही कही और। ऊपर से ये मोबाइल और social networking ने  इतना ज़ोर पकड़ के रखा है, की किसीके ना चाहने पर भी वो इस का शिकार हो ही जाता है, मानो जैसे हमारे आस-पास लोग नहीं, wats up, facebook, instagram, google, snapchat, twitter, amezon, flipcart, zometo, you tube, और भी बहोत से app जिसके नाम भी हमें पता नहीं, वो सब हमारे इर्द -गिर्द घूमते रहते है।" 

      एक दिन मैं  facebook पे अपने friend  के साथ chating  कर रही थी, तभी एक नई friend request आई।  निमेष नाम का एक लड़का था, तो request except  करने से पहले मैंने उसका profile चेक किया, मुझे उसका profile तो ठीक लगा इसलिए  मैंने उसकी friend request accept कर ली। उसे शायरी लिखना बहोत पसंद था, तो वो मुझे कई बार अपनी लिखी हुई शायरी मुझे भेजा करता था, बातो - बातों में उसने मुझे बताया था, की वो भी कॉलेज में  पढ़ता है। धीरे धीरे बात बढ़ने लगी, हम को कब उस अनजान लड़के से इश्क़ हो गया, हमें इस बात का पता ही ना चला, रोज़ सुबह, शाम और रात को उसके साथ बाते होती रहती, कभी मैं  उसे अपनी सुनाती, तो कभी वो मुझे अपनी सुनाता, और अगर कभी किसी दिन उस से बात ना हो पाती, उस दिन मेरा कहीं मन भी ना लगता, उस दिन मैं बस उसी के खयालो में रहती, की कब वो ऑनलाइन आए और मैं उस से बात करु। 

          इन्ही सब चक्कर में देखते ही देखते कब कॉलेज  की exam नज़दीक आ गई, पता ही नहीं चला। फिर एक दिन मैंने निमेष से कहा, की "अब हमारी exam  भी नज़दीक आ रही है, तो हमें अब उस पे भी ध्यान देना चाहिए, ताकि हम दोनों का साल बर्बाद ना हो।" निमेष को भी मेरी बात सही लगी, उस ने कहा की " ठीक है, शायद तुम सही कह रही हो, तो हम अब exam  के बाद ही बात करेंगे, और exam के बाद कुछ मिलने का भी प्लान करते है, कब तक युही chating करते रहेगे।" मुझे भी उसकी बात सही लगी, और मैंने भी exam के बाद उसे  मिलने के लिए हांँ कर दी।  एक दूसरे को exam के लिए best of luck बोल के कुछ दिन fb का account भी close कर दिया। 

         मैंने यहांँ exam की तैयारी शुरू तो कर दी, मगर बिच-बिच में निमेष की याद भी बहोत आती रहती, सोचा एक बार देख ही लूँ, की निमेष का कोई मैसेज आया भी है या नहीं। मगर फिर से मैंने अपने मन को समजाया, की अभी नहीं, exam के बाद तो हम मिलनेवाले ही है ना, ये सोच में फिर से पढाई में अपना मन लगा लेती, देखते ही देखते exam ख़तम हो गई, और मेँ बहोत खुश थी, क्यूंँकि मेरी सारी exam भी बहोत अच्छी गई थी, और अब मैं  निमेष से बातें भी कर पाऊँगी और उस से मिलना भी होगा, इन्ही सपनो में मैं खोई रहती।   

             मैंने घर जाते ही तुरंत अपना fb account खोला, सब से पहले मैंने निमेष को connect  करने की कोशिष की। लेकिन surprise की बात ये थी की इतने दिनों में उसका भी ना कोई मैसेज था और अब नाही उसका  fb account मुझे fb पे दिखा। मतलब की शायद उसने अभी तक उसका fb account खोला नहीं था, या फिर वो मुझे भूल गया होगा,  ऐसे कई सारे सवाल मेरे मन में आने लगे, फिर मैंने सोचा शायद कल उसका मैसेज आएगा, बार-बार मैं घडी की ओर देखती रहती और मेरे fb messanger पे उसका मैसेज ढूंँढती रही, मगर उसका account ही शायद बंद था, तो मैसेज कहाँ से आता ? पता नहीं क्या हुआ होगा ? ऐसे बहोत से सवाल मेरे मन के अंदर तूफ़ान मचाए रखे थे, जिसका जवाब में ढूँढ नहीं पा रही थी। देखते ही देखते दो दिन बीत गए लेकिन उसका कोई मैसेज नहीं था। 

       फिर अचानक से मुझे याद आया, की निमेष ने मुझ से एक बार बताया था, की वो अपनी पापा और माँ के साथ राजस्थान में रहता था, और उसने मुझे address भी  शेयर किया था, अपने messanger पे मैंने उसका address ढूँढ लिया और अपने दोस्त के साथ घूमने जाने का बहाना बनाकर मैं अपनी दोस्त के साथ राजस्थान पहोच गई।  

       जो address मुझे निमेष ने बताया था, उस address पे जाके देखा तो वहाँ तो एक बुज़ुर्ग रहते थे, पुराना सा एक मकान था जिस में सिर्फ दो कमरे थे, और एक रसोई घर। उस बुजुर्ग से मैंने पूछा, की  " आपके यहाँ कोई निमेष नाम का लड़का रहता है ?" 

      पहले तो ये सुनकर वो बुज़ुर्ग सकपका गए और  उन्होंने कहा, की बेटा,

 " रहता है नहीं, लेकिन रहता था।"  

    निमेष, मेरा  एक लौटा बेटा, जो २०  साल पहले हमें छोड़ के पता नहीं कहा चला गया। 

    ये सुनके मेरे तो पैरो के निचे से ज़मीन खिसक गई। 

   फिर उन्होंने कहा, की " निमेष  हम दोनों से बहोत प्यार करता है, एक दिन निमेषने कहा, की " मैं कुछ ज़रूरी काम से ५ दिन के लिए राजस्थान से दूर जा रहा हूँ, हमने सोचा, की ऑफिस का  कुछ ज़रूरी काम होगा। जाने के बाद वो हमें रोज़ दो बार फ़ोन करके बताता था, की " मैं  जल्दी ही वापिस आ जाऊँगा, आप फ़िक्र मत करना। " लेकिन ३ दिन बाद उसका फ़ोन आना भी बंद हो गया।

      लोग कहते है, की " निमेष की accident में मौत हो गई है, और अब वो वापिस लौट के नहीं आएगा।" लेकिन हमारा दिल ये बात मानने को तैयार ही नहीं।   हम आज तक उसका इंतज़ार कर रहे है, की वो भी आएगा, और उसका फ़ोन भी आएगा। पता नहीं क्या हुआ होगा उस के साथ ? हमें कुछ भी पता नहीं। अब तो ये आँखें भी बूढी हो गई, उसका इंतज़ार करते-करते।    

     वो  बुज़ुर्ग बातें कर रहे थे और उनकी बातें सुनते-सुनते मेरी नज़र वहांँ  टेबल पे रखी तस्वीर पे पड़ी, ये तस्वीर भी वही थी, जो निमेष ने अपने  fb account पे रखी थी, वो बुज़ुर्ग बोलते-बोलते रो पड़े, मैंने उनको  दिलासा दीया, की " सब ठीक हो जाएगा।" मगर मेरी भी समज में कुछ नहीं आया। 

       फिर उस बुज़ुर्ग ने थोड़ा संभलते हुए मुझ से पूछा, की "तुम कौन हो बेटी ? और तुम निमेष को कैसे जानती हो ? क्या तुम उस से पहले कभी मिली हो ?"

     एक तो वो बुज़ुर्ग पहले से ही परेशान थे, मेरे पास उनका कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैंने झूठ ही बोल दिया, की " वो निमेष के कुछ पैसे उसके ऑफिस में जमा थे, तो बॉस ने मुझे कहा, कि आपको दे दूँ। इसीलिए मैं यहाँ आई थी, और मेरी जॉब अभी-अभी ही वहांँ लगी है, उस बुज़ुर्ग के हाथो में कुछ पैसे देते हुए कहा। अच्छा ठीक है, अब मैं चलती हूँ, आप अपना ख्याल रखना।"       

        कहते हुए मैं घर से बहार निकल गई।  मुझे बहोत बड़ा झटका लगा, की ऐसा कैसे हो सकता है, की " जिसके साथ  मैंने इतनी बातें की उसका कोई अतापता  ही नहीं, और उसके माँ और पापा कई सालो से वहांँ रहते उसका इंतज़ार कर रहे थे।

      मैंने घर से बहार निकलकर आसपास के पडोसी से  पूछा, की " यहाँ जो निमेष नाम का लड़का रहता था, वो कहाँ है ?" मगर सब ने यही बताया की, " शायद उसकी  accident  में मौत हो गइ  है, मगर उनके माँ और पापा  को इस बात पे अब भी यकींन नहीं हो रहा, इसलिए वे सब को यही बता रहे है, की उनका लड़का वापिस आएगा। मगर जो एकबार चला जाता है, वो कहाँ फिर से वापस आ सकता है भला !"

     ये सब कुछ मेरी समज से परे था, मैं  दूसरे ही दिन मुंबई की ट्रैन पकड़कर अपनी दोस्त के साथ वापिस घर लौट आई, मेरी मम्मी ने मुझ से पूछा भी, की " क्या हुआ ? इतनी जल्दी क्यों लौट आई ?" मैंने कहा, की "मेरी दोस्त की तबियत ठीक नहीं थी, इसलिए जल्दी लौट आए।" 

    मैंने तुरंत ही मेरा fb account चेक करके देखा तो फिर से वहांँ पे निमेष का कोई account  ना था, मैं सोचती ही रह  गई, कुछ दिनों तक मुझे यकींन ही नहीं हो रहा था, की " जिस के साथ मैं बातें करती थी, वो अजनबी जिस से मैंने पहला प्यार किया वो इस दुनिया में था ही नहीं, तो वो था कौन जिस से मैं बातें करती थी ? तो फिर उसने मुझे ही क्यों चुना बात करने के लिए ? वो मुझ से क्या चाहता था ? क्या जिस से मैं बात करती थी, वो निमेष की आत्मा थी ? क्या किसी जन्म में मेरा उसके साथ कोई रिस्ता था ? जो मुझे उसके बुज़ुर्ग माँ- पापा की तरफ ले गया ? क्या वो मुझे कुछ बताना चाहता था ? या वो मेरे ज़रिए अपने माँ - पापा को कुछ बताना चाहता था ? ऐसे कई सवाल मेरे अंदर तूफ़ान मचाए हुए थे।  जिसके जवाब मेरे पास नहीं थे। इतना सब कुछ जानने के बाद भी  मैं उसके मैसेज का इंतज़ार करती रही। 

        वो अजनबी मेरे लिए अजनबी होकर भी अजनबी ना रहा, उस अजनबी को मैं भूल नहीं सकती थी, उसके साथ एक अजीब सा लगाव हो चूका था, मैंने सोचा की " शायद वो यही चाहता था, की मैं उसके माँ और पापा  से एकबार जाके मिलुँ, तभी वो मुझे chating में  अपने माँ और पापा  के बारे में बार-बार बता रहा था। 

       मैंने अपना graduation complete किया, और  राजस्थान में मेरी जॉब लग गई, मैं वहांँ शिफ्ट हो गई और निमेष के माँ और पापा का भी ख्याल रखती रही, अब  मैं निमेष से fb पे नहीं बल्की उसकी तस्वीर से बातें करती हूँ, और वो मेरे सामने मुस्कुराया करता है।  कभी-कभी निमेष के पापा और माँ  के लिए खाना लेकर जाती, तो कभी मार्केट से उनका कुछ सामान लाना हो तो वो भी मैं ला कर देती उनको, तो कभी-कभी उनके साथ बैठ घंटो बातें भी कर लेती, तब उनको बड़ा अच्छा लगता और वो दोनों मुझे ढेर सारा आशीर्वाद भी देते। शायद निमेष मुझ से यही चाहता था। एक अज़नबी माँ और पापा के साथ मुझको एक अजीब सा अपनापन महसूस होता है। 

       कभी कभी मुझे ख़याल आता है, की ना जाने कौन से जन्म का क़र्ज़ मेरा निमेष के माँ और पापा को चुकाना  बाकि रह गया होगा, तभी आज मुझे  एक अजनबी बुज़ुर्ग की  सेवा करने का  मन करता है, वो भी बिना किसी निः स्वार्थ भाव से।  

         तो दोस्तों, कभी कभी किसी अज़नबी के साथ कोई  रिश्ता ना होने पर भी एक अतूट रिश्ता  बन जाता है, वो है दिल का रिश्ता।  

                                                        Bela...   

             https://www.instagram.com/bela.puniwala/

       

      

       


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