KITAB

                          क़िताब

        दोस्तों, जब भी में सुपरफास्ट ट्रैन में सूरत से मुंबई और मुंबई से सूरत जाती हूँ, उतनी बार मेरे मन में यही  ख्याल आता है, की सुपर फ़ास्ट ट्रैन की तरह हम सब की ज़िंदगी ने भी बड़ी तेज़ रफ़्तार पकड़ रखी है, और ये ट्रैन तभी रुकेगी जब इसका लास्ट स्टेशन आएगा। उसी तरह हम सब भी ज़िंदगी में सुपरफास्ट ट्रैन की तरह दौड़ते रहते है। किसी को रोटी की भूख दौड़ाती है, तो किसी को कुछ बनना है, सब की अपनी अपनी खवाईश है, उसे पूरी करने में लगे हुए है, इसलिए ये सब तभी रुकेंगे, जब इन सब का आखरी वक़्त आएगा, तब तक हम ज़िंदगी में दौड़ते और भागते ही रहेंगे या फिर कहु तो भागना ही पड़ेगा, वार्ना ज़िंदगी की रेस में हम  पीछे रह जाओगे, और हमारे दोस्त हम से आगे निकल जाएँगे।
      मैंने बचपन में सोच था, की जवानी बड़े आराम से बिताएँगे, मौज - मस्ती करेंगे, मगर किस को पता था, की ज़िम्मेदारियों का बोज़ ऐसा सिर पे आ जाएगा, उस में हम ने क्या सोचा था ये भी भूल जाएँगे। 
          आजकल यहाँ किसी के पास किसी के लिए वक़्त ही नहीं। दुनिया की भीड़ में हम सब चलते तो साथ में है, मगर सच कहु तो हर कोई अकेला है,  एक बस किताब है, जो हमें कभी अकेला नहीं छोड़ती, जिसके साथ हम जब चाहे वक़्त बीता सकते है, या फिर कहूँ, तो " हमारे अकेलेपन का साथी क़िताब " 
        मैंने बहोत सोचा की ऐसा कौन जो हमारा साथ कभी नहीं छोड़े ? वैसे तो सब है, मम्मी - पापा भाई - बहिन, पति - पत्नी, बेटा - बेटी, सास - बहु, दोस्त, मोबाइल, लैपटॉप, फ़िल्मी गाने, वाटस अप, फेसबुक, इंस्टा, टवीटर, ऐमेज़ॉन, स्नैपडील, जोमेटो, कभी तो ख़तम होगा ये सब... ये सब कुछ हमारे साथ और हमारे पास ही है मगर फिर भी कभी तो ख़तम होगा ये सब... कभी तो हम इन सब से दूर हो जाएँगे। तब हमारे अंदर का खालीपन दूर करना होता है, तो वो है क़िताब। अगर कोई एक बार क़िताब से प्यार करना सिख ले, तो सच में ज़िंदगी आसान हो जाएगी। 

    
  तो दोस्तों, मेरे अकेलापन का साथी तो मैंने ढूँढ लिया है, तो क्या आप बताना चाहेंगे की आपके अकेलेपन का साथी कौन होगा ? कोई भी हो सकता है, ऐसा ज़रूरी नहीं किताब ही हो। 
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