ANJALI


                               अंजलि

         प्रयाग ने दरवाज़ा खटखटाया, मगर शीला तो अब भी उसकी नन्ही परी की यादों में खोई  हुई थी, उसे कहाँ, किसी के आने का या किसी के होने का होश भी रहा था, हर पल वो गूम रहती है, अपनी ही अंजलि के खयालो में, अकेले में उससे बातें किया करतीउसे लॉरी गाके सुनाती, उसे खाना खिलाती, जैसे उसके सिवा  इस दुनिया  में उसका कोई नहीं है। उसके अपने होने ना होने का भी उसे एहसास कहाँ ! 

           प्रयाग ने देखा की शीला के बाल बिखरे हुए है, अभी भी वह लॉरी ऐसे गाऐ जा रही है, जैसे की सच में अंजलि सो रही हो, और प्रयाग के दरवाज़ा खटखटाने पे शीला ने  इशारा करके शोर ना करने को कहा, " शोर ना करो अंजलि सो रही है।" 

         प्रयाग से शीला की ऐसी हालत देखि नहीं जा रही, मगर वो कर भी क्या सकता, प्रयागने उसे याद कराने की बहोत कोशिश की, की अंजलि अब हमारी ज़िंदगी से बहोत दूर चली गई है, वह अब हमारी ज़िंदगी में वापिस लौट के कभी नहीं आनेवाली, मगर एक माँ का दिल ये बात कैसे मान लेता, जिसकी 6 साल की बेटी सोते - सोते...  

            हाँ, प्रयाग को आज भी याद है की उनकी शादी के दो साल बाद उनकी ज़िंदगी में अंजलि खुशियांँ  बनकर आई थी, शीला के एक मिस कैरिज के बाद डॉक्टर ने शीला को दूसरी बार प्रेग्नेंट ना होने की  सलाह दी थी, वार्ना उसकी जान को खतरा हो सकता था।  ऐसी बात से वह उस समय बहोत दुखी हो गई थी, ना खाने पिने का होश, ना कही आनेजाने का, नाही किसी के साथ बातें करने का, इसलिए उसकी ये हालत देखकर डॉक्टर ने उसे कहीं दूर घूमने ले जाने को कहाँ, इसीलिए प्रयाग उसे लेकर शिमला चला आया, मगर वहांँ भी वह प्रयाग के साथ होते हुए भी नहीं थी, कुछ दिन शिमला में घूमे फीरे, फिर घर जाने का सोचा, टिकट भी निकलवा दी थी, प्रयाग ने  सामान पैक करके शीला को कहाँ, की " तुम थोड़ी देर यहाँ रुको में टैक्सी बुलवाके आता हूँ। "

          प्रयाग टैक्सी बुलाके आया तो उतनी देर में वहांँ पे शीला नहीं थी, प्रयागने  होटल के मैनेजर से पूछा, की "मेरी wife शीला जो अभी यहाँ थी, वो कहाँ गइ ? में सिर्फ टैक्सी बुलाने गया था। "

           मैनेजर ने कहाँ, जी हाँ, जिसने पिंक कलर की साडी पहनी हुई है ? प्रयाग ने कहा हांँ वही, कहाँ है वो ?  

     मैनेजर ने कहाँ,  " उनको मैंने अभी - अभी   वहांँ सामने वो मंदिर दिख रहा है आपको, वहांँ जाते हुए देखा। " मैंने सोचा की आपने ही उनको वहांँ बुलाया होगा ! प्रयाग ने कहा जी बहोत बहोत शुक्रिया आपका।  कहकर प्रयाग भागा - भागा उस मंदिर की ओर चला, प्रयाग शीला को बहोत प्यार करता था, और वह शीला को  खोना नहीं चाहता था, प्रयाग ने मंदिर की सीढ़ी चढ़ते - चढ़ते देखा की शीला किसी छोटी सी लड़की के साथ मुस्कुराके बात कर रही थी, ये देख प्रयाग को बड़ा अजीब लगा, 6 महीने बाद आज शीला किसी के साथ बात कर रही थी, हंस रही थी। 

        प्रयागने  पास जाकर देखा तो सच में एक 5 या 6 साल की प्यारी सी बच्ची थी, जिसकी आंँखें भूरी सी, गुलाबी से गाल, काले घने घुंघराले बाल, प्यारी सी होठों पे मुस्कान, किसी का भी दिल आ जाता उसपे।

            फिर प्रयाग को ख्याल आया की शीलाने इसे कहाँ देखा, और वो इस मंदिर तक कैसे आई ?

         प्रयाग ने मंदिर के पुजारी से उस लड़की के बारे में पूछा, तो पुजारी जी ने बताया की, ये लड़की तो मानो भगवान् की ही देन है, कहाँ से आई है ? किस की बेटी है? कुछ पता नहीं। एक तूफानी रात में  ४ साल पहले  मैंने सुबह मंदिर का दरवाज़ा खोला तो ये लड़की अकेली बाहर रो रही थी, हम लोगो ने बहोत पता लगाने की कोशिश की, की उसके माँ - बाप कौन है ? मगर कुछ पता नहीं चला, शायद अपने माँ - बाप से बिछड़ गई है, इसलिए भगवान् की देन समझकर में ही इसे सम्भाल रहा हूँ, बड़ी प्यारी बच्ची है ये, पता नहीं भगवानने इसके नसीब में क्या लिखा है ? 

               प्रयाग पुजारीजी की बातें सुनते सुनते शीला को देखे जा रहा था, जो उस लड़की को बड़े प्यार से देखे जा रही थी और उसके बालों को सेहला रही थी। प्रयाग को दूसरे ही पल जैसे ही ख्याल आया उसने तुरंत ही पुजारी जी से शीला के बारे में सब बातें की, और उस लड़की को वहांँ  से अपने साथ ले जाने की अनुमति माँगी। 

         पुजारीजी ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, की शायद भगवानजी की भी यही मर्ज़ी होगी, तभी तो आपकी पत्नी इसे  दूर से खेलते देख यहाँ तक आई, उसकी मर्ज़ी के आगे हम कभी कुछ  कर सकते है क्या ? शायद उपरवाले की भी यही मर्ज़ी होगी।  वैसे भी हम ठहरे पुजारी, हमारे साथ रहकर ये क्या सिख पाएगी ? इसे आप अच्छे से पढ़ाना - लिखाना। जाओ, ले जाओ इसे अपने साथ, और अच्छे से ख्याल रखना  इसका।  ये समज लेना की भगवान् का ही आशीर्वाद है ये। 

      ( प्रयाग खुश होते  हुए, ) जी आपकी बहोत बहोत मेहरबानी कहते हुए प्रयाग और शीला ने पुजारीजी का आशीर्वाद लिया और उस छोटी सी लड़की को लेकर  वहांँ  से अपने घर के लिए निकल पड़े, पुरे रास्ते में शीला उस बच्ची के साथ खेल रही थी, उसे इतना खुश प्रयाग ने आज तक कभी नहीं देखा। शीला ने बड़े प्यार से उसका नाम अंजलि रखा।  

               घर जाकर शीला ने अंजलि का कमरा सजा दिया, उसके लिए ढेर सारे खिलोने और कपडे भी ला दिए, शीला को अंजलि के साथ खुश देख प्रयाग को भी अच्छा लगा की चलो, इसी बहाने शीला खुश तो है। 

              देखते ही देखते एक  साल अंजलि के साथ कैसे बित गया, पता ही नहीं चला। मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था, पिछले कुछ दिनों से अंजलि को खाँसी शुरू हो गई, कितने डॉक्टर और वैद की दवाई की, मगर कुछ फर्क नहीं पड़ा, उसकी खाँसी जैसे रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, शीला भी बहोत परेशांन रहने लगी थी, फिर एक दिन खासते - खासते उसके मुँह से खून निकलने लगा, शीला और प्रयाग दोनों गभरा गए, अंजलि को  फिर से तुरंत डॉक्टर के पास लेकर गए, डॉक्टर ने रिपोर्ट कराने को बोला, रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने बताया की,  "अंजलि को गले का कैंसर है, और अब वो उसके शरीर के अंदर तक बढ़ रहा है, इसलिए अब शायद वो कुछ ही दिन की मेहमान है।" 

           डॉक्टर की ऐसी बाते सुन प्रयाग और शीला दोनों के तो होश ही उड गए। शीला को संभालना प्रयाग के लिए और भी मुश्किल हो गया था, क्यूंँकि अब तो प्रयाग को भी उससे बहोत लगाव हो चूका था, फिर भी प्रयागने हिम्मत ना हारी, प्रयागने अंजलि को अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया, मगर सब का जवाब एक ही था की अब कुछ नहीं हो सकता। 

        एक दिन सुबह शीला ने अंजलि को दूध पिलाने के लिए जगाया, तो वो जगी ही नहीं, में समज गया की अंजलि खासते - खासते  इतनी गहरी नींद में चली गई है, की वहांँ  से उसका वापिस आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, प्रयाग ने अंजलि को समजाने की बहोत कोशिश की, की अंजलि  हमारे बीच नहीं रही, मगर वो ये बात मानने को तैयार ही नहीं। 

         शीला आज भी अंजलि के कमरे में बैठी रहती है, जैसे की अंजलि आज भी  उस कमरे में उसके साथ हो, उसके होने का एहसास उसे आज भी है, जैसे की, अंजलि शीला के  आस -पास हर पल है, उसके कपड़ो में खुशबु बनकर, उसके खिलोने में उसकी मुस्कान बनकर, उसकी गुड़ियाँ में उसका मासूम सा चेहरा, जाने कहाँ खो गई है शीला की वह नन्ही सी परी, जिसके साथ शीला बातें करती थी, खेलती थी, उसके बाल बनाती थी, उसे  कहानी सुनाया करती थी, उसे लॉरी गाके सुलाया करती थी, उसके दिल की हर धड़कन में अंजलि बस चुकी थी, शीला प्रयाग के साथ होकर भी उसके साथ नहीं थी। प्रयाग से शीला की ऐसी हालत देखि नहीं जाती थी   

               प्रयाग की भगवान् से एक ही फरियाद है की अगर अंजलि को हम से छीनना ही था, तो फ़िर हम से मिलाया ही  क्यूँ ? इससे अच्छा तो आप हमको अंजलि को नहीं मिलाते, तो जैसे - तैसे करके हम ज़िंदगी गुज़ार ही लेते। हमारी आँखों में ढेर सारे सपने देकर और हमारे साथ  इतनी प्रीत लगा के यूँ अचानक से हमको फिर से बेसहारा कर दिया। आखिर क्यूँ किया तुमने हमारे साथ ऐसा ? 

        तो दोस्तों, ये सब उपरवाले की मर्ज़ी का लेखाझोका है, कोई उस में कुछ नहीं कर सकता, शीला का एक बार माँ बनना, फिर उसका मिस कैरिज होना, फिर से उसकी ज़िंदगी में अंजलि  को भेजना, ये सब उपरवाले का लेखाजोखा है,ये सब नियति का खेल है, प्रयाग और शीला उनके कौन सी करनी का फल भोग रहे है, वह तो सिर्फ ऊपरवाला ही जाने। हम तो सिर्फ़ दुवा कर सकते है, की भगवान् उन दोनों को  इस  मुसीबत से बाहर निकलने की हिम्मत दे।                                          

                                                               Bela... 


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