कांँच के शीशे
हमने अपनी आँखों में बसा लिए थे बहुत से सपने,
सोचा था तेरे साथ ज़िंदगी बड़ी ख़ूबसूरत होगी,
लेकिन चलते-चलते ज़िंदगी कभी-कभी हमें,
कुछ ऐसी राह पे लेके चली आती है, कि
जहाँ से आगे बढ़ पाना या, वापस लौट पाना,
दोनों ही हमारे लिए मुश्किल हो जाता है,
हमने बहुत सोचा, हमें तो चलना था तेरे साथ,
उम्र भर, मगर हालत हुए कुछ ऐसे, कि
अब हम तुम्हें चाह कर भी, अपना नहीं सकते,
तुम्हारे ज़िंदगी जीने के सलीके,
हमें राज़ नहीं आए, तुम कहते हो, कि
" तू चल बस मेरे साथ, सब ठीक हो जाएगा, "
तुम्हारे साथ चलने के लिए हमने भी,
अपने ज़िंदगी के सलीके बदले, पर तुम ना बदले,
हमने फ़िर से बहुत सोचा,
मगर अब शायद हमारे ज़िंदगी जीने के सलीके,
तुमको राज़ नहीं आएँगे, माना की ये मुश्किल है,
माना की ये मुश्किल है, मगर अच्छा ही होगा, कि
अब ये ज़िद्द तुम छोड़ दो, कि जैसे हम तुमसे कभी,
मिले ही ना हो, हमने तुम्हें आज़ाद किया सारे बंधनो से,
हो सके तो तुम भी हमें आज़ाद कर दो,
अपने सारे उसूल और बंधनो से....
कयोंकि दिल कांँच के शीशे की तरह होता है,
जो एक बार टूट जाए, फिर जोड़ पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है, हमारा रिश्ता भी उसी टूटे हुए,
कांँच के शीशे की तरह, ज़मीन पे ऐसे बिखरा पड़ा है,
कि जिसे हम चाहकर भी जोड़ नहीं सकते,
समझ सको तो समझ लो मेरी बात,
तुम्हारे साथ तुम्हारे, उसूलो के साथ रहनेवाली, शायद तुम्हें मिल ही जाएगी,
मगर ये अब हम से नहीं होगा, हो सके तो हमें,
एक सपना समझकर भूल जाना।
Thank you
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