मेरा कान्हा
जो मेरे दिल के सबसे करीब है, जिसमें मेरी जान बस्ती है, जिसे मैंने जन्म दिया, जिसके लिए मैंने कान्हाजी से बड़ी मन्नते की, मैंने हर मंदिर, हर गिरजाधर में जाके शीश नमाया, आखिर एक दिन कान्हाजी ने मेरी बात सुन ही ली, उस दिन valantine day था, मैंने सोचा नहीं था की आज ही के दिन वो आएगा।
मेरी preganancy के आखरी दिन चल रहे थे, अचानक से दर्द शुरु हुआ, मुझे अस्पताल ले जाया गया। उसके जन्म के बाद मुझे लगा की उसे भी उतनी ही जल्दी थी, इस दुनिया में आने की, जितनी मुझे उसे देखने की, बस थोड़ी ही देर में बच्चे की रोने की आवाज़ सुनाई दी, नर्स ने मुझे बताया की लड़का हुआ है, तब मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ना रहा, में अपना सारा दर्द भी भूल गइ, उसे एक नज़र देखकर मेरी पलकों से ख़ुशी के आँसू बहने लगे, मुझे मेरे जीने की एक नइ उम्मीद मिल गइ, उस पल माँ बनने का एहसास ही कुछ और होता है, जिसे एक माँ ही समज सकती है, उसे मैंने दो पल अपने सिने से लगाए रखा, वो मेरे ही शरीर का अंश था।
उसके वो नाज़ुक से, मुलायम से नन्हे से पाँव,उसके छोटे छोटे हाथ और उँगलियाँ, वो भूरी सी आँखें, वो काळा घने बाल, वो नरम मुलायम से उसके गाल, मनमोह लेनेवाली उसकी वो हसी, जैसे कुदरत का करिश्मा हो, जिसे मैंने कान्हा का आशीर्वाद मान लिया।
उसके साथ दिन कैसे बीतने लगे, मुझे पता ही नहीं चला, उसे झूला झुलाना, उसे लॉरी सुनाना, उसके साथ खेलना, उसके साथ अकेले में बाते करना, उसके हर इशारा समजना, उसकी नादानी पे मुस्कुराना, मुझे आज भी याद है।
माना की वो दो साल तक कुछ बोल नहीं पता था, मगर उसके इशारे में समज जाती थी, उसका वो मुस्कुराके मेरी और देखना, उसे किसी की बुरी नज़र ना लगे, इसलिए में रोज़ उसकी नज़र उतारा करती थी, थोड़ी देर मेरे ना दिखने पर वो रोने लगता था, में उस से छुपते छुपाते अपना कोई काम निपटने जाया करती थी, और फिर घर लौट ने पर तुरंत उसे गले लगाया करती थी।
आखिर में कब तक उसे यु सीने से लगाके रखती, आखिर उसे भी तो स्कूल जाना था, उसके स्कूल का वो पहला दिन मुझे आज भी याद है, स्कूल जाने के बाद वो धीरे धीरे बोलने लगा, उसकी वो उनकही सी ज़ुबान अब मुझ से बातें करने लगी थी, वो मुझे स्कूल से लौटकर माँ - माँ कहकर गले लगाया करता था, जैसे की बहोत दिनों के बाद हम मिले हो, वो अपनी स्कूल की सारी बातें करता था, में उसकी बातें सुन कर मन ही मन मुस्कुराया करती थी, स्कूल के टीचर से उसकी शैतानी सुन मन ही मन खुश भी हुआ करती थी, और टीचर के सामने उसे डांटती भी थी, की फिर से ऐसे गलती मत करना।
उसे हर खिलोने में बस बॉल से ही बहोत प्यार था, अगर किसी दिन उसका कोई दोस्त नहीं आता तो में ही उसके साथ बॉल खेलती, उसे अपने फुटबॉल के साथ इतना लगाव था की वो फुटबॉल को अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए स्कूल भी ले जाया करता था, तब मुझे उस पे हसी आती थी, एक तो भारी सी स्कूल बैग और ऊपर से दूसरे हाथ में उसका फुटबॉल, मन ही मन ये देख में मुस्कुराया करती थी।
अब वो बड़ा होने लगा है, मगर मेरे तजुर्बे के मुताबिक वो अब भी नादाँ सा cute सा लड़का है, जिसे फुटबॉल से बहोत प्यार है, जिसे शायद मुझ से भी बहोत प्यार है, मुझे दर्द में देख वो मेरी तुरंत help करता है, मेरी आँखों में आंँसू वो देख नहीं पता, आज भी वो मुझ से अपनी सारी बातें share करता है, वो अपनी ही दुनिया में खुश रहनेवालो में से है, ना ही उसकी कोई ज़्यादा माँग है, ना तो बड़ी फरमाइश है, ना ही उसके कोई बुरे दोस्त, अपने दोस्तों में भी वो सब से चहीता है, वो अगर किसी दिन खेलने ना जाए, तो उसके दोस्त भी उस दिन फुटबॉल नहीं खेलते, उसे gifts बहोत अच्छे लगते थे, आज भी बहार से आती हूँ, उसका एक ही सवाल होता है, मेरी लिए क्या लाई माँ ?
इसलिए में जब भी बहार जाती हूँ, उसके लिए कुछ ना कुछ तो लेकर ही आती हूँ, और वो उस छोटी सी चीज़ से भी बहोत खुश हो जाता है,
उसे अपने से दूर करना या दूर रखना, कोई माँ नहीं चाहेगी, मगर उसे भी तो एक दिन अपने पापा की तरह बड़ा आदमी बनना है, तो उसे पढ़ने के लिए hostel जाना है, मुझ से दूर, शायद उसके लिए भी मुझ से दूर जाना इतना आसान नहीं होगा, मगर लाइफ में कुछ बनना है, तो जाना भी होगा, उसे अपनी जिम्मेदारी का एहसास है, यही मेरे लिए सब से बड़ी बात है, उसके बचपन से लेकर आज तक की और भी बहोत सी बातें, जो मुझे आज भी अच्छे से याद है, वो मेरे लिए कान्हा का आशीर्वाद है, इसलिए में उसे प्यार से " मेरा कान्हा " कहकर ही बुलाती हूँ।
में बस कान्हाजी से यही दुआ करती हूँ की, " तू जहाँ भी रहे खुश रहे, तुज पे मुसीबतों का साया भी ना आ पाए, अगर ज़िंदगी में कभी कोई मुसीबत आए तो वो तुझे छूने से पहले मुझ पे आ जाए, कामियाबी तेरे कदम चूमे, ग़म तेरे दरवाज़े पे कभी दस्तक ना दे और खुशियांँ तुझ से कभी रूढे नहीं। "
Bela...
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