मायका
जो, एक औरत के लिए पहले घर था, वही घर उसके लिए शादी के बाद मायका हो जाता है, जहाँ एक ज़माने में वह माँ -पापा की लाड़ली हुआ करती थी, जिसकी एक हसी पे सारा घर मुस्कुराया करता था, जहाँ वह बचपन में घर घर खेली, जहाँ उसे भाई बहन ने झूले में झुलाया, जिसके बगैर आँगन सुना था, वो अपने, जो उसके अपने होते थे, वो अब उसे थोड़े से बेगाने से लगने लगते है, वो खुद भी धीरे धीरे अपने घर को अपना मायका ही मानने लगती है, और अपने ससुराल को अपना घर।
अपने बच्चों के school के vacation में बड़े इतरा कर और खुश होकर छुट्टियाँ मनाने अपने मायके जाती है, ससुराल में सब को शायद बता ही देती है, की 15 दिन के बाद ही में वापिस आउंँगी। उसे बड़ा मन करता है, अपने घरवालों से मिलने का, उन सब को एक नज़र देखने का, उन सब से बातें करने का, आँखों में कई सपने लिए बिना कुछ सोचे समजे वह बड़ी ख़ुशी से, इतरा कर अपने मायके के लिए निकलती है। अपने मायके जाके सब के साथ बड़े मज़े से रहती है, अपनों से मिलकर उसे बड़ा अच्छा लगता है, माँ - पापा के साथ बातें करना, भाई - भाभी के साथ मस्ती करना, घुमने जाना, शॉपिंग करना सब कुछ। मगर ये ख़ुशी बस कुछ दिन की ही होती है, फिर उसका मन फिर से कहीं और भागने लगता है, वही जहाँ से वह आई थी, अपने ससुराल।
अपने बच्चों के school के vacation में बड़े इतरा कर और खुश होकर छुट्टियाँ मनाने अपने मायके जाती है, ससुराल में सब को शायद बता ही देती है, की 15 दिन के बाद ही में वापिस आउंँगी। उसे बड़ा मन करता है, अपने घरवालों से मिलने का, उन सब को एक नज़र देखने का, उन सब से बातें करने का, आँखों में कई सपने लिए बिना कुछ सोचे समजे वह बड़ी ख़ुशी से, इतरा कर अपने मायके के लिए निकलती है। अपने मायके जाके सब के साथ बड़े मज़े से रहती है, अपनों से मिलकर उसे बड़ा अच्छा लगता है, माँ - पापा के साथ बातें करना, भाई - भाभी के साथ मस्ती करना, घुमने जाना, शॉपिंग करना सब कुछ। मगर ये ख़ुशी बस कुछ दिन की ही होती है, फिर उसका मन फिर से कहीं और भागने लगता है, वही जहाँ से वह आई थी, अपने ससुराल।
चाहे जैसा भी हो, वह अपने ससुराल को याद करने लगती है, जिस से वह कुछ दिन छुट्टी समझकर दूर जाना चाहती थी, फिर से वही चली जाती है, चाहे जितनी भी ज़िम्मेदारियाँ हो, या परेशानियाँ हो, मगर उसे अपने ससुराल, या कहु तो अपने घर आकर ही आराम मिलता है।
फिर उसके अंदर ऐसा क्या होता है, उसने क्या महसूस किया की वह 15 दिन के बदले 8 दिन में ही वापिस लौट आती है ? क्यों उसे अपना ही घर पराया सा लगने लगता है ? अपने ही माँ - पापा, भाई - भाभी , बहन, दादा - दादी अपने होते हुए भी अपने नहीं लगते। पहले सा अब वह वहांँ पे कोई हक़ नहीं जता पाती, या वह खुद कोई हक़ जताना भी नहीं चाहती।
तो दोस्तों, आखिर क्यूँ ऐसा होता है औरत के साथ ? औरत क्यूँ अपने ही घर में पराया सा महसूस करने लगती है ? उनके अपने अपने होकर भी कुछ ही दिनों में क्यूँ पराए लगते है ? अपने ससुराल में चाहे जैसा भी हो, बिना किसी फरियाद के वहांँ वह सब को अपना बनाके सब के साथ ख़ुशी से रहती है, आख़िर औरत ऐसा क्यूँ करती है ? क्या किसी के पास इसका कोई जवाब है ?
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Bela...
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