MEIN KAUN HU ? PART - 8

                           मैं कौन हूँ ? भाग - 8 

          तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि अनाम अपने आप को आईने में देख के खुद को ही पहचानने की कोशिश करता है और अपने बारे में कुछ याद करने की कोशिश में लगा हुआ है, मगर उसे कुछ याद नहीं आ रहा। फिर बिस्तर पे जाके तकिये में अपना मुँह छुपाए सो जाता है, मगर उसे नींद नहीं आती। डॉ.सुमन के पापा आज अपने दोस्त के वहां पूरा दिन रुकने वाले है, डॉ. सुमन अस्पताल जाके नर्स से पूछती है, की आज अनाम ने फिर से कोई उधम तो नहीं मचाया ना ? नर्स कहती है, नहीं डॉ.सुमन। अब आगे... 

        थोड़ी देर में डॉ.सुमन अस्पताल पहुंँचकर सब से पहले सीधे अपने कंसल्टिंग रूम में जाती है, अपना सफ़ेद कोट और पर्स वही टेबल पे रखती है। डॉ.सुमन टेबल पे सारी फाइल उलट-सुलट करते हुए नर्स को आवाज़ लगाकर बुलाती है और उसे पूछती है, कि   

नर्स : यहाँ पर एक फाइल रखी थी, वह कहा है ?

नर्स : वही तो है, कहते हुए नर्स फाइल ढूंढ के डॉ.सुमन के हाथों में  दे देती है। 

डॉ.सुमन : और कुछ ?

नर्स : हाँ. डॉ.सुमन आज सुबह-सुबह एक औरत अस्पताल आई हुई है, उसे सिर पे बहुत चोट लगी है, खून भी बह रहा था। डॉ.अजित  उसे देख रहे है और उसकी मरहम पट्टी कर रहे है। डॉ.अजित आप को भी बुला रहे थे, कि डॉ.सुमन आ जाए तो जल्दी से उसे यहाँ भेज देना। वो औरत बहुत रो भी रही थी। 

डॉ.सुमन : ठीक है, तुम जाओ  मैं अभी जाके मिलती हूँ उनसे। 

नर्स : जी, डॉ.सुमन। 

        कहते हुए नर्स वहां से चली जाती है। डॉ.सुमन दो पल के लिए फिर से अनाम के बारे में सोचने लगती है, और डॉ.सुमन मन ही मन बड़बड़ाती है,

डॉ.सुमन : अनाम के बारे में तो नर्स से पूछना रह ही गया। आज अनाम ठीक तो होगा ना !!! 

      सोचते-सोचते डॉ.सुमन डॉ.अजित के पास जाने लगी, जहाँ उन्होंने उसे बुलाया था। डॉ.सुमन ने देखा, कि उस  औरत को सच में बहुत चोट लगी थी और वह दर्द के मारे ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला भी रही थी। उसके साथ कोई नहीं आया था, वह औरत शायद अकेली ही आई थी। ये देख डॉ.सुमन से रहा नहीं गया, वह भागी-भागी सी उस औरत के पास जाती है और 

डॉ.सुमन : ( डॉ.अजित की मदद करते हुए ) डॉ.अजय कैसे है आप ? आपने मुझे पहले क्यों नहीं बुला लिया। मैं घर से ओर जल्दी निकल जाती ना !!

डॉ.अजित : ( उस औरत की मरहम पट्टी करते हुए ) मैं तो ठीक हूँ। पहले मुझे लगा की मैं सब सँभाल लुँगा। मगर ये औरत बहुत दर्द में है, इस से बातो में रखने की ज़्यादा ज़रूरत है और वो काम आप से अच्छा भला कौन कर सकता है ? अब आप ही समजाए इसे। सब ठीक हो जाएगा। 

डॉ.सुमन : हहममम!! ( हस्ते हुए ) 

      वो औरत उम्र में डॉ. सुमन से बड़ी थी।

अरे दीदी, आप कितनी strong हो, फिर क्यों इतना चिल्ला कर हमारे डॉ.अजित को डरा रहे हो आप ? 

     ये सुनते ही डॉ.अजित और वह औरत डॉ.सुमन को एक नज़र देखने लगे। 

डॉ.सुमन : ( बात को घूमाते हुए ) वैसे दीदी आपका नाम क्या है ? और ये सब कैसे और किसने किया ? कहीं रात को सपनो में चलते-चलते सीढ़ियों से गिर तो नहीं गए। 

     ( वो औरत थोड़ी हसने लगी )

औरत : अरे नहीं डॉक्टरजी, मेरा नाम सुरेखा है और मुझे कोई रात को सपनो में चलने की बीमारी नहीं है। वो तो आज सुबह-सुबह मेरा मेरे पति के साथ झगड़ा हो गया, फिर हाथापाई भी थोड़ी हो गई, फिर उन्होंने आज तो गुस्से में मुझे सीढ़ियों से धक्का ही दे दिया। 

   डॉ.अजित और डॉ.सुमन ने सुरेखा की बाते सुनते-सुनते उसकी मरहम पट्टी की और बातो-बातो में उसके पैर में टंका भी लगा दिया। सुरेखा जो थोड़ी देर पहले चिल्ला रही थी, उसे पता भी नहीं लगा, कि उसके सिर में और हाथों में पट्टी लगा दी गई और पैर में टंका भी लगा दिया। )

डॉ.सुमन : ओह्ह ! तो ऐसी बात है। लेकिन सुबह-सुबह इतना झगड़ा किया क्यों और किस बात पे। 

सुरेखा : अब क्या बताए डॉ. जी आपको।  ये तो रोज़ का चक्कर है हमारा। लेकिन आज कुछ ज़्यादा ही हो गया। मेरे पति पूरी रात बाहर अपने दोस्तों के साथ शराब पीके आते है, जुए में सारे पैसे भी हार गए, तो घर आकर मुझ से ओर पैसा मांगते है। अब मैं उस शराबी को पैसा दूँ या अपने बच्चो के लिए स्कूल की फीस का बचाया हुआ पैसा उसे दे दूँ ? अब आप ही बताओ डॉ. जी मैंने ठीक किया या नहीं। 

           डॉ.सुमन पल भर के लिए सुरेखा की बाते सुनती ही रह गई, डॉ. सुमन से ये सब देखा सुना नहीं जाता। डॉ.सुमन बाहर सी जितनी strong दिखती है, अंदर से उतनी ही नरम है। छोटी-छोटी बात डॉ.सुमन के दिल को छू जाती है। 

डॉ.सुमन : तो फिर तुम ऐसे आदमी के साथ कैसे रह पाति हो, पुलिस में रपट करवा दो या फिर छोड़ दो उसे। ऐसे आदमी से रोज़ मार खाने से बेहतर है, उस से अलग ही हो जाए। 

सुरेखा : कई बार ऐसा सोचा डॉ. जी ! एक बार तो हिम्मत कर के घर से निकलकर अपने मायके भी चली गई थी मगर उन्होंने कहा, " अब जैसा भी है वही तुम्हारा घर है, जो भी हो जाऐ अब वही तुम को रहना है। हम जमाई  बाबू से बात करेंगे, दूसरी बार ऐसा नहीं होगा। तेरी भी तो गलती होगी ना, तुने भी तो कुछ ना कुछ किया होगा, वार्ना कोई बिना वजह किसी पे थोड़ा गुस्सा होता है। "  ऐसा समझा-बुझाकर मुझे वापस भेज दिया, अब आप ही बातइऐ डॉ. जी अपने दो छोटे बच्चो को लेकर हम कहाँ जाऐ और अब इतना दर्द नहीं होता, जितना पहले होता था। अब तो आदत सी हो गई है, हमें रोज़ लड़ने-झगड़ने की। अपने दो बच्चो का चेहरा देख जी रही हूँ, वार्ना कब की ज़हर पीकर मर गई होती। 

डॉ.सुमन : अरे, ऐसा क्यों कहती हो भला ? सब ठीक हो जाएगा। एक दिन तुम्हारा पति ज़रूर सुधर जाऐगा, देख लेना और ये तुम्हारी चोट भी ठीक हो जाएगी। डॉ.अजित  आप दवाई लिख के मँगवालो। दवाई के पैसे सुरेखा से मत लेना, मैं  देख लूँगी। 

डॉ.अजित : अभी आप कितना तो करते हो सब के लिए, अपने लिए भी कभी कुछ बचाते हो या नहीं ? ऐसे तो आप कितनो की मदद करते हो, मगर ये भी सच है, की उनकी दुवा भी आपको ज़रूर मिलेगी। 

डॉ.सुमन : बस तो मुझे ज़िंदगी से और कुछ चाहिए भी तो नहीं, अगर मेरी वजह से किसी के होठों पे मुस्कान आती हो, किसी की जान बच जाए, कोई अपने घर अपनों के पास जा सके, बस इसी में मेरी ख़ुशी है। 

      कहते-कहते डॉ.सुमन की आँखें भर आती है। 

डॉ.अजित : अच्छा ! जैसा आप को ठीक लगे। शायद आप के जैसा हर कोई बन सके। 

   डॉ.अजित की बात बिच में काटते हुए 

सुरेखा : डॉ. जी अब सब हो गया हो तो मैं जाऊ ? घर पे मेरे बच्चे भूखे होंगे। पता नहीं, उस पियक्कड़ ने उनको कुछ दिया भी होगा या फिर से दारू पीके सो गया होगा ? 

डॉ.सुमन : हाँ, जा सकती हो। मगर साथ में अपना भी ख्याल रखना और वक़्त पे दवाई लेती रहना। दो दिन बाद फिर से दिखाने अस्पताल आ जाना। ठीक है ?

सुरेखा : जी, जरूर ( हाथ जोड़ते हुए ) आपकी बहुत-बहुत महेरबानी। भगवान् आपको बहुत खुश रखे और आपकी हर इच्छा पूरी करे। 

     कहते हुए सुरेखा वहां से चली जाती है। 

डॉ.अजित : डॉ.सुमन आप ये सब कैसे कर जाती है ? मैंने भी सुरेखा से पूछा क्या और कैसे हुआ ? उससे बात करने की कोशिश की, मगर तब वो सिर्फ़ चिल्लाए ही जा रही थी और आपने पूछा तो सब बता दिया। 

डॉ.सुमन : ( हस्ते हुए ) क्योंकि शायद आज अभी तक आपने मेरे साथ कॉफ़ी नहीं पी, इसलिए !

    दोनों हस पड़ते है। 

     चलो, हम साथ में कॉफ़ी पिते है, कुछ बात भी करनी है आप से, तो वो भी हो जाएगी। 

डॉ.अजित : जैसा आप कहे। 

    दोनों साथ में डॉ.सुमन के कंसल्टिंग रूम में जाते है। डॉ.सुमन रामुकका को आवाज़ देते हुए 

डॉ.सुमन : रामुकाका दो कॉफ़ी लाना, please. 

        उतनी देर में डॉ.अजित टेबल पे रखी हुई दो-तीन नॉवेल और डॉ.सुमन की डायरी देखते है।  

डॉ.अजित : डॉ.सुमन आप सच में नॉवेल पढ़ती भी है ? अगर हाँ, तो आप को वक़्त कैसे मिल जाता है इन सब के लिए। 

डॉ.सुमन : ( अपनी नॉवेल ठीक करते हुए ) वक़्त मिलता नहीं, वक़्त निकालना पड़ता है और मुझे नॉवेल पढ़ना-लिखना अच्छा लगता है। उनके बिना मेरा दिन नहीं जाता। एक बार मैं नास्ता नहीं करू तो चलेगा मगर नॉवेल के बिना नहीं। आप मेरे घर पे कभी आना। मेरे पास बहुत सी नॉवेल है, मैं आपको दिखाऊँगी मेरे पास अच्छे से अच्ची नॉवेल है। मुझे बचपन से ही बहुत शौक है पढ़ने का, अब अगर आदत अच्छी है तो फिर उसे बदलना जरूरी नहीं लगता। इधर-उधर की बाते करे इस से तो अच्छा है, की हम कुछ अपने बारे में सोचे, लिखे और पढ़े। 

डॉ.अजित : व्वाहहह, क्या खूब कहीं। बहुत अच्छे विचार है आपके। एक दिन जरूर आप के घर आना है और मुझे आप अच्छी से अच्छी किताब भी देना पढ़ने के लिए, वैसे तो मुझे पढ़ने का इतना शौक नहीं, मगर देखता हूँ,  कुछ पढ़ पाता हूँ, या नहीं ? आपके साथ रहकर आपके पास से मुझे बहुत कुछ सीखना भी तो है। 

डॉ.सुमन : जी जरूर, क्यों नहीं।  

      रामुकका कॉफ़ी लाके टेबल पे रखते है। 

डॉ.अजित : मगर आप शायद मुझे और कुछ कहने वाली थी, वो क्या ?

             ( कॉफ़ी पिते-पीते ) 

डॉ.सुमन : हाँ, जो जरूरी बात थी, वो तो रह ही गई। वो बात अनाम के बारे में है, आप तो जानते ही है, कि  अनाम को होश आ गया है, मगर उसे अपने बारे में कुछ याद नहीं  और कब याद आएगा, कुछ बता नहीं सकते, तो हम उनके घरवालों का पता कैसे लगाए, ताकि वह अपने घर वापस जा सके। उसके अपनों के पास जा सके।  अब शायद वह कुछ ही दिनों में एकदम से ठीक हो जाऐगा।  फिर क्या ?

डॉ.अजित : हाँ, मुझे भी ऐसा ख्याल तो आया था, मगर अब क्या कर सकते है, देखते है। 

      ऐसे में नर्स आके कहती है, 

नर्स : अनाम फिर से दवाई के लिए मना कर रहा है और उसे अस्पताल से बाहर जाना है, बस एक ही रट लगाए जा रहा है, अब आप ही देखे। 

     अनाम के बारे में सुन दो पल के लिए डॉ.सुमन का दिल ज़ोरो से धड़कने लगता है। 

डॉ.सुमन : अच्छा ठीक है,  तुम जाओ,  मैं उसे देख लुंगी।

नर्स : जी, 

   कहते हुए नर्स वहां से चली जाती है। 

डॉ.अजित : 

( कुर्सी पे से खड़े होते हुए ) चलो अब इस मुसीबत को भी आप ही सँभालो।  मैं तो चला। 

                ( मज़ाक  करते हुए )  

     डॉ.अजित के जाते ही डॉ.सुमन भी अनाम के पास जाती है।  

     तो दोस्तों, डॉ.सुमन एक डॉक्टर  होने के साथ-साथ एक अच्छी psychiartist doctor भी है, इसलिए वह सब लोगो को समझते हुए उनके हिसाब से उन से बाते करती है और उनका इलाज भी करती है। डॉ.सुमन की ज़िंदगी ही सेवा है। लोगों का इलाज कर सब को खुश करना और जहाँ तक हो सके अपनी ओर से सबकी मदद करना। शायद ही कोई ऐसी ज़िंदगी जीता होगा, जो अपनों से पहले दुसरो के बारे में सोचता हो। तो,

           अब आगे क्रमशः। 

                                                                Bela... 





Comments