मैं कौन हूँ ? भाग -1
वो काली अँधेरी, बरसाती तूफानी रात, गरजते - बरसते बादल, बड़ी तेज़ी से चलती हवाएँ, जैसे सब को अपने साथ उड़ाए जा रही थी। वो जंगल में इतने बड़े-बड़े पेड़ और उन सबकी इतनी बड़ी-बड़ी और लम्बी-लम्बी शाखाए होने की वजह से एक दूसरे से जैसे लिपटी हुई थी। एक दूसरे से जैसे बाते कर रही हो और तूफानी बारिश की वजह से उनको भी डर था, कि कही एक दूसरे से अलग होके हम आज कही गिर ना जाए, इसलिए अपनी शाखाओ के सहारे गले मिल के एकदूसरे को ज़ोर से पकड़ के रखा था। आगे जाने के लिए भी कोई रास्ता नज़र ही नहीं आ सके, ऐसे विशाल पेड़ और शाखाओ से भरा घना काला जंगल था। उसी जंगल के एक ओर एक लम्बी झील थी, जहाँ से बड़ी ज़ोरो से पानी बेह रहा था, वो झील के पानी की आवाज़ इतनी तेज़ थी की जैसे कोई संगीत बज रहा हो, वैसे एक धार से झील से पानी बड़ी ज़ोरो से निचे गिरते हुए समंदर के साथ मिलके लेहरों से जुड़के बड़ी ज़ोरो से आवाज़ कर रहा था। जो आवाज़ आज बड़ी ही डरावनी और भयावह सी लग रही थी। कुदरत को भी ना जाने आज क्या मंज़ूर था, लड़ रहे थे खुदा से जैसे की आज में नहीं या तो तुम नहीं। जैसे कोई धरती और आसमान के बिच युद्ध हो रहा हो और दोनों झुकने को तैयार नहीं थे। बस ज़िद्द पकड़कर बैठे थे, कि आज तू नहीं या तो हम नहीं ! तेज़ बारिश की वजह से मिट्टी गीली हो रही थी। जंगल की झील के साथ एक बहोत बड़ी और गेहरी खाई भी थी।
अब हुआ यूँ, कि झील के ऊपर परबत से एक लड़के का पाँव फिसल जाता है और वो धड़ाम से उस झील के पानी से टकराता हुआ, नीचे खाई में से होते हुए, समंदर की लेहरो से टकराते हुए, समंदर के किनारे तक पहुँच जाता है, इतनी लम्बी छलाँग के बाद इतना पथ्थरों से टकराने के बाद कोई कैसे ज़िंदा रह सकता है ? यही सोचने की बात है।
दूसरे दिन सुबह से शाम होने को थी, मगर तूफ़ान थम ने का नाम ही नहीं ले रहा था। पता नहीं आज क्या गजब ठाने को था। देखते ही देखते रात भी बित गई, तिसरे दिन की सुबह होते-होते हवाओ ने अपना थोड़ा सा रुख बदला और बारिश भी थोड़ी देर के लिए थमने लगी, मगर अब भी काळे घने बादल आसमान से गुज़र रहे थे, जैसे की फिर से तूफ़ान आने को है।
मछुआरा : ( वैद जी के सामने उस लड़के को सुलाते हुए ) देखो ज़रा वैदजी, इस लड़के को कितनी चोट लगी है, ये बच तो जाएगा ना ? ये मुझे समुन्दर के पास किनारे पे पड़ा मिला था, मैंने देखा तो इस के दिल की धड़कन सुनाई देती थी, इसलिए मैं इसे आपके पास लेके चला आया, आप ज़रा ठीक से इसका इलाज करिए ना, शायद ये ठीक हो जाए, इस की जान बच जाए, अगर इस धरती पर इसकी कुछ सांँसे और लिखी होगी तो ये बच भी जाएगा, और तो क्या ! देखिऐ ना वैद जी ज़रा इसे।
वैदजी : ( उसकी मरहम पट्टी करते हुए ) अच्छा ठीक है, मैं इसे देखता हूँ, मगर देखने से तो मालूम पड़ता है, कि अभी ये ज़िंदा है, और इसे किसी ने बहुत बुरी तरह से मारा भी है, कितना खून बह गया है इसका तो, इसके पैरो की हड्डियाँ भी टूट गइ है, इसके सिर पे भी बहुत गेहरी चौट लगी है, तुम भी ज़रा मेरी मदद कर लो।
मछुआरा : हा, हा क्यों नहीं ! बताइए क्या करना होगा मुझे ?
वैदजी : तुम इसके कपडे उतार के इसका खून साफ करने में मेरी मदद करो, तब तक मैं इसे मरहम पट्टी लगाकर इसको औषधि भी पीला देता हूँ।
( दोनों साथ मिलकर उसकी मरहम पट्टी करने लगे, वैद जी ने देखा की उसके सिर पे भी बहुत बड़ी चोट लगी है, बहुत खून निकल चूका है । )
ज़रुर इसके किसी अपने की दुवाओ का असर है, जो अब तक इसे बचाए रखा है।
मछुआरा : ( ऊपर भगवान से हाथ जोड़कर कहता है ) हे, भगवान ! इसे हो सके तो आप ठीक कर देना और इसे इसके अपनों से मिला देना, जिसके लिए शायद अब भी ये ज़िंदा है।
वैदजी : ठीक कहा तुमने। हम तो सिर्फ़ औषधि दे सकते है, सांँसे देना या ना देना, ये तो ऊपर वाले के हाथो में है।
मछुआरा : अच्छा, वैदजी मैं चलता हूँ, मैं कल इसे देखने आ जाऊंँगा। फिर से अगर आज तूफ़ान आ गया, तो मेरा घर जाना मुश्किल हो जाएगा। बच्चे घर पे मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे।
वैदजी : अच्छा ठीक है, तुम जाओ, मैं इस का ध्यान रखूँगा।
( मछुआरा वहांँ से अपने घर चला जाता है। )
तो दोस्तों, क्या वैदजी की मरहम पट्टी और औषधि से वो लड़का ठीक हो पाएगा या नहीं ?
आगे क्रमशः।
Bela...
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