तेरी मेरी कहानी Part- 8
तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि सुखीलाल अभिषेक, मोहन और राघव को लेकर रात होते ही रसीलाबाई के कोठे तक जाता है। सुखिलालने राघव को कोठे पे आने से मना किया, क्योंकि वो उम्र में छोटा भी था। अभिषेक ने कोठे पे जाके देखा तो वहांँ इशिका भी थी। सुखीलाल ने जैसे-तैसे करके रसीला बाई को मना लिया, अभिषेक को इशिका से मिलने के लिए। अभिषेक इशिका को मिलने अकेले कमरे में जाता है, वहांँ जाके देखा तो, इशिका का अंदाज़ ही कुछ बदला-बदला सा था अब आगे...
एक अज़नबी को अपने कमरे में देख,
इशिका : तुम कौन हो ? और यहाँ कैसे ? मैंने रसीला बाई को कितनी बार बताया, की मेरी इजाज़त के बिना किसी एरेगेरे को मेरे कमरे में ना आने दे।
( बोलते हुए इशिका रसीला बाई को आवाज़ लगाने लगी। अभिषेक ने उसका मुँह दबा दिया और चुप रहने को इशारा किया। अभिषेक ने अपनी दाढ़ी, मूंछ और नकली बाल चेहरे से हटाए, इशिका उसे देख चौक गई, और पहचान भी गई । कुछ देर दोनों एकदूसरे की आँखों में देख जैसे बाते कर रहे हो। थोड़ी देर बाद इशिकाने कहा,
इशिका : आप यहाँ कैसे ? ( और फ़िर पलट कर ) यहाँ क्यों आए हो ? ( उसका अंदाज़ ही जैसे बदल गया। )
अभिषेक : इशिका मैं तुम्हें यहाँ से ले जाने आया हूँ, तुम्हारा भाई राघव भी निचे ही खड़ा है। उस दिन तुम मेरे पास नौकरी के लिए आई थी, मगर उस दिन ना ही तुम ने अपना नाम बताया और ना ही अपना पता। उस दिन के बाद मैंने तुम्हें बहुत ढूंँढा, मगर तुम्हारा कोई अतापता नहीं था। फ़िर तुम्हारे भाई से पता चला की तुम्हारे बाबाने तुमको यहाँ कलकत्ता भेज दिया है, तो मेरे एक दोस्त मोहन की मदद से मैं तुमको ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यहाँ तक आ पहुँचा। तुम किसी भी बहाने से कल सुबह १० बजे कोठे के बाहर निकल जाना, फ़िर हम लोग यहाँ से चले जाएँगे। मैं वहाँ सामने खड़ा रहूँगा।
इशिका : जब मुझे किसी की सच में ज़रूरत थी, तब तो मेरा साथ किसी ने नहीं दिया, बाबा को पैसो की ज़रुरत थी, मुझे बेच के उसे पैसे मिल गए, यहाँ आई तो मेरी वजह से रसीला बाई को पैसे मिल रहे है, मेरी वजह से कोई तो खुश है, वैसे भी रसीला बाई मेरा यहाँ बहुत ख़याल रखती है, मुझे किसी भी बात की कोई कमी नहीं, इन बदनाम गलियों में आकर अब यहाँ से वापस जाना मेरे लिए मुश्किल है, आप भूल जाओ मुझे, यही आप के लिए अच्छा होगा, राघव को भी आप समजा दें की मैं यहाँ खुश हूँ।
( इशिका ने बातो-बातो में खिड़की पे जाकर देख लिया, कि वहाँ सामने थोड़ी दूर उसका भाई राघव भी खड़ा था। )
अभिषेक : ( ने इशिका का हाथ अपने सिर पे रख दिया ) तो फिर खाओ मेरी कसम की तुम यहाँ से सच में निकलना नहीं चाहती।
इशिका : हमें अब कोई कसम या किसी वादे पे भरोसा नहीं रहा, आप ज़िद्द छोड़ दीजिए और यहाँ से चले जाइए। फ़िर कभी ज़रूरत नहीं है यहाँ आने की। यहाँ आपको बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला।
( बहार से दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई, )
पहरेदार : आप का मिलने का वक़्त ख़तम हुआ, अब आप जल्दी से बाहर आ जाइए, रसीला बाई आपको याद कर रही है।
अभिषेक : कल तुम तैयार रेहना मैं तुम्हें यहाँ से लेकर ही जाऊंँगा। मैं तुम्हें इन बदनाम गलियों में यूँ रहने नहीं दे सकता। कहते हुए अभिषेक अपनी नकली दाढ़ी, मुछ और बाल लगाकर बाहर चला जाता है।
( रसीला बाई से इजाज़त लेकर अभिषेक, मोहन और सुखीलाल वहाँ से चले जाते है। अभिषेक राघव और मोहन को सारी बातें बताता है, अभिषेक की बातें सुन राघव और मोहन को भी बड़ा अजीब लगा की कोई लड़की इतना कैसे बदल सकती है। अभिषेक राघव और मोहन से )
अभिषेक : चाहे कुछ भी हो जाए में रसीला बाई के चुंगल से इशिका को छुड़ा कर ही रहूँगा।
सुखीलाल : सुबह होनेवाली है, मैं चलता हूँ, कल रात को फ़िर से यहाँ आना हो तो मुझे बता देना, और पैसो का भी इंतेज़ाम करके रखना। कह कर सुखीलाल वहाँ से चला जाता है।
मोहन : ( बहुत ठक चूका था, ) कल मिलते है, अपना ख्याल रखना। (कह कर चला जाता है। )
अभिषेक और राघव भी सोने लगे, मगर उनकी आँखों में अब नींद कहाँ ? वो पूरी रात सोचता ही रहा इशिका इतनी कैसे बदल गई ? उसे अब कैसे वहाँ से निकाले ?
दूसरे दिन फ़िर से अभिषेक शाम होने के इंतज़ार में था, अब तो शाम होने को थी। अभिषेक ने मोहन और सुखीलाल को वापस कोठे पे जाने के लिए बुला लिया। अपना भेस बदलकर सब कोठे की ओर चले, मगर ये क्या आज रसीला बाई के कोठे के बाहर बड़ी भीड़ जमी हुई थी। कोठे से रोशनी भी बहोत कम आ रही थी। गाने बजाने की आवाज़ भी नहीं सुनाई दे रही थी। एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था।
सुखीलाल : आप लोग यही रुको में ज़रा देख के आता हूँ, की आखिर बात क्या है ?
कोठे के बाहर भीड़ जमी हुई थी। लोग अंदर ही अंदर कुछ बाते कर रहे थे। सुखीलाल को कुछ समज नहीं आया । सुखीलाल कोठे के अंदर जाके देखता है, वो अंदर का दृश्य देखकर चौक जाता है, उसके सामने सफ़ेद चद्दर में एक लाश पड़ी हुई थी,
" अभिषेक के हाथ से चिठ्ठी राघव और मोहन ने लेकर पढी। सबको बड़ा झटका लगा, ये सब क्या हो गया। सुखीलाल सबको वहाँ से लेकर चला गया। क्योंकि अगर रसीला बाई को इसकी थोड़ी सी भी भनक हो गई ना तो वो हम सब को ज़िंदा यहाँ ही गाड़ देगी, खून की नदियाँ बहने लगेगी। सुखीलाल को पता था, की कोठे के चारों ओर भी रसीला बाई के आदमी भेस बदलकर पहरा देते है। सब आते-जाते लोगों पे इनकी कड़ी नज़र रहती है, बाहर की सब बातें रसीला बाई तक ये लोग पहुँचाते रहते है। जो शायद ही किसी को पता होगा। सब मायूस होकर घर की ओर चले। आज की रात मोहन अभिषेक के पास ही सो गया। सुबह होते ही अभिषेक और राघव स्टेशन की ओर चले।
मोहन : ( अभिषेक को गले मिलते हुए ) बस इतना ही कहा की अपना खयाल रखना मेरे दोस्त, घर पहुँचकर मुझे एक बार फ़ोन कर देना।
अभिषेक : अच्छा तो मैं अब चलता हूँ, तू भी अपना ख्याल रखना मेरे दोस्त, पता नहीं अब फ़िर कब मिलना होगा तुमसे।
( अभिषेक और राघव दोनों घर आ गए और अभिषेक ने राघव को अपने पास ही रोक लिया।)
अभिषेक : ( राघव से ) आज से तुम यही रहोगे मेरे पास, तुम्हें कही भी जाने की कोई ज़रूरत नहीं।
( राघव को भी अभिषेक के साथ अच्छा लगता था, उसने अपनी पढाई ख़तम कर ली और वही अभिषेक के काम में हाथ बटाने लगा था। अभिषेक रोज़ एक बार इशिका के हाथो लिखी चिठ्ठी पढ़ा करता था,
" तेरी मेरी कहानी जो शुरु होने से पेहले ही ख़तम हो गई। " हो सके तो मुझे माफ़ कर देना और मुझे भूल जाना। " मगर शायद वो उसे कभी भुला नहीं पाएगा।
"Not every story has an end happily ever after"
Bela...
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