तेरी मेरी कहानी Part- 7
तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि राघव और अभिषेक इशिका को ढूंँढने कलकत्ता चले जाते है, वहांँ अभिषेक का दोस्त मोहन स्टेशन पे ही उसे मिल जाता है, सब साथ में चाय नास्ते के लिए नजदीकी होटल में जाते है, मोहन ने वही पे सुखीलाल को बुला लिया था, जो इशिका को ढूंँढने में मदद करनेवाला था। इशिका की फोटो देख सुखीलाल उसे पहचान जाता है और कहता है, कि रसीला बाई के कोठे पे रात को भेष बदलकर ले जाऐगा। अब आगे...
अभिषेक और राघव को इशिका की बड़ी फ़िक्र हो रही थी। दोनों रात होने के इंतज़ार में थे। शाम होते ही दोनों ने अपना भेस बदल लिया। सुखी लाल और मोहन दोनों सामने से आ ही रहे थे।
सुखीलाला : चलो तैयार हो ?
दोनों साथ में : हाँ, हाँ, चलो चलो।
सुखीलाल : लेकिन एक बात मेरी गौर से सुन लो, आप में से कोई भी रसिया बाई से कुछ बात नहीं करेगा, लड़की के बारे में बात में ही करुँगा। क्योंकि रसिया बाई बहुत चालक है, वो अपनी पारखी नज़रो से सबको पहचान लेती है, अगर उसने तुम सब को पहचान लिया की तुम किस वजह से वहाँ आए हो, तो बात बनने की जगह बिगड़ भी सकती है। समज गए ना तुम ?
मोहन : हाँ, समज गए सब, चलो चलो अब !
टैक्सी बुलाकर सब साथ में कोठे पे पहुँचते है, कोठा आते-आते रास्ते में से ही दिखाई दे रही थी वहाँ की रोशनी, जैसे वहाँ का माहौल कुछ ऐसा था की, " रात, रात ना होकर रोशनी से ज़गमगाता आसमान हो, चारों और रोशनी ही रोशनी थी। यहाँ पे तो बिजली और फूलों से सारे कोठे सजे हुए थे, सब लड़कियांँ भी सजसवर कर कोठे के बाहर या तो खिड़की पे खड़ी थी और अपने खरीदार को जैसे अपने पास बुला रही थी।"
अभिषेक और राघव के लिए ये सब कुछ बिलकुल नया था। उन्होंने ऐसी गलियांँ पहले कभी नहीं देखी थी।
सुखीलाल ने राघव को समजाते हुए कोठे के बाहर ही रुकने को कहा, क्योंकि राघव उम्र में भी थोड़ा छोटा था।
अभिषेक : ( ने भी उसे बाहर रुके रहने को समजाया, ) की तुम फ़िक्र मत करो, हम लोग तुम्हारी दीदी को छुड़ा लेंगे यहाँ से।
राघव कोठे के थोड़े दूर ही रुक गया और अभिषेक, मोहन और सुखी लाल तीनो कोठे के अंदर जाते है। कोठे के अंदर का माहौल तो उससे भी रंगीन था। " कमरे के चारों और रोशनी और फूलों की सजावट थी। सब के बैठ ने के लिए आरामदायक गद्दे और तकिये बिछा रखे थे। कुछ लोग भी आने शूरु हो गए थे। सब के बिचोबीच एक बड़ी कुर्सी पे एक औरत सजधज़ कर अपने मुँह में पान चबाते हुए बड़े ठाठ-माठ से बैठी थी। उसका रुआब बड़ा ही आशिकाना था। " सुखीलाल रसीलाबाई के पास जाते हुए,
सुखीलाल : इस नाचीज़ का सलाम कबूल कीजिए, रसीला बाई। आज तो आप क्या गजब ढा रही हो, माशा अल्लाह, किसी की बुरी नज़र ना लगे आपको।
( कहते हुए सुखीलाल रसीला बाई के सामने ज़ुकता है। )
रसीला बाई : क्या बात है सुखीलाल ? आज कुछ ज़्यादा ही तारीफ कर रहे हो हमारी ? कही कुछ हमसे छुपा तो नहीं रहे हो ना !
सुखीलाल : ( हस्ते हुए ) अरे, नहीं नहीं ! आपसे भला क्या छुपाना ? उल्टा आज तो मैं आपके लिए नए मेहमान लाया हूँ, उसे आप ज़रा खुश कर दो तो मेहरबानी,
( सुखीलाला अपनी मुछो पर ताव देते हुए )
रकम भी अच्छी खासी मिलेगी आपको ।
रसीला बाई : अच्छा ये बात है तो, मगर ये दोनों पहले तो कभी दिखे नहीं यहाँ पर, कहीं कुछ दाल में काला तो नहीं सुखीलाल।
सुखीलाल : अरे, नहीं नहीं ! कैसी बात कर रही है आप। मेंने आज तक ऐसा कभी आपके साथ किया है क्या ? ये तो मेरे एक पुराने दोस्त के रिश्तेदार है जो दो दिन के लिए कलकत्ता घूमने आए है, तो मैंने सोचा रसीला बाई से एक बार मिला देते है, और तो क्या ?
रसीला बाई : अच्छा ठीक है, ठीक है। दोनों को अंदर गद्दे पे बैठा दो। मैं कुछ इंतेज़ाम करती हूँ इनका।
सुखीलाल : जो आपका हुकुम।
कहता हुआ झुकते हुए सुखीलाल अभिषेक और मोहन को अंदर बैठा देता है और इशारे से सब देखते रेहने को कहा। थोड़ी ही देर में तीन, चार लड़कियांँ आने लगी और अपना नाच दिखाने लगी। सब वाह,, वाह,, की आवाज़ लगाते हुए उन सब पे पैसा उड़ा रहे थे, उन लड़कियों में इशिका भी थी, जिसे अभिषेक पहचान गया था, मगर रसीला बाई को शक ना हो इसलिए वो भी चुप बैठा रहा और इशारे से सुखीलाल को बता दिया की यही इशिका है। सुखीलाल समज गया। सुखीलाल और मोहन भी लड़कियों पे पैसा उड़ाने लगे, ताकि रसीला बाई को शक ना हो की वे लोग यहाँ क्यों आए है। सुखीलाल ने एक तरकीब लगाई। वो नाचते नाचते रसीला बाई के पास गया और
सुखीलाल : ( रसीला बाई को इशारे से बताते हुए )
हमारे शेठ को वो लड़की पसंद आ गई है, वो उसको अपने साथ लेके जाना चाहते है, और उसकी मुँह मांँगी किम्मत भी देने को तैयार है, आप बोलो तो में हाँ कर दूँ ? सोने से तोल देंगे वो आपको।
रसीला बाई : इतना आसान होता अगर रसीला बाई के कोठे से किसी लड़की को लेके जाना तो आज मेरा ये कोठा खाली हो चूका होता, मेरे पास एक से एक हूर परी जो है और जिसकी आप बात कर रहे है ना, वो तो अभी कच्ची कली है, अभी तो इससे मुझे बहुत कुछ वसूल करना है, इशिका तो हमारे कोठे का कोहिनूर हिरा है, उसे कैसे भला में एक ही बार में किसी को देदूँ ? कुछ सोच समझकर बोल।
( सुखीलाल की इतनी कोशिश के बाद भी बात नहीं बनी, तो )
सुखीलाल : अरे, आप नाराज़ क्यों हो रही हो, भला। ऐसी बात है तो चलो जाने दो, मगर सरकार उससे अकेले में मिलना चाहते है, अभी आप इतना तो कर ही सकती है ना ! ( बोलते हुए सुखीलाल ने पैसो का बंडल रसीला बाई के हाथों में थमा दिया। ) शायद कल इस से ज़्यादा भी मिल जाए, आप बस आम खाने से मतलब रखिऐ अब पेड़ गिनने से क्या फ़ायदा ?
रसीला बाई : अच्छा, अगर ऐसी बात है तो, सिर्फ़ तेरे भरोसे पे उसे मिलने देती हूँ, मगर सिर्फ़ एक ही घंटा, ज़्यादा नहीं, मेरे आदमी नज़र रखेगे इस पे, समज गए ना !
सुखीलाल : ( खुश होते हुए ) आपकी बहुत-बहुत महेरबानी। ( सुखीलाल अभिषेक और मोहन के पास गया और बताया की ) आप कुछ देर के लिए इशिका से मिल सकते है, मैंने रसीला बाई को मना लिया है। आज आप उनसे बात कर लो, कल देख लेंगे क्या कर सकते है ?
अभिषेक : जी बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।
लड़कियों का नाच ख़तम होने के बाद सारी लड़कियाँ अपने-अपने कमरे में चली गई, इशिका भी उनके साथ अपने कमरे में चली गई। रसीला बाई ने सुखीलाल को इशारा कीया, कि अब आप मिलने जा सकते हो। अभिषेक इशिका के कमरे में जाता है, रसीलाबाई ने कमरे के बाहर अपने आदमी को खड़ा रखा, ताकि कोई गड़बड़ न हो। इशिका आइने में देख अपने बाल बना रही थी। इशिका को लगा की कमरे में कोई आ रहा है, तुरंत ही वो बोली, " वही पे रुक जाना," अभिषेक वही दरवाजे के पास रुक जाता है। बाहर से रसीला बाई के आदमी ने दरवाज़ा बंद कर दिया।
इशिका : आज मेरे लिए क्या तोहफा लेकर आए हो ? मैं भी तो देखु ज़रा, वरना ये चाँद सा चेहरा आपको देखने नहीं मिलेगा।
( अभिषेक उसकी बाते सुनता ही रेह गया। )
अब ऐसे ही गुमसुम खड़े रहोगे या कुछ बोलोगे भी। ( इशिका काे लगा, कि जैसे वो रोज़ जो उसे परेशान करने आता था वही होगा। )
अभिषेक : अअअअ... वो मैं...
( इशिका को उसकी आवाज़ कुछ बदली-बदली सी लगी, तो उसने फौरन मुड के देखा तो... कोई ओर ही था।
तो दोस्तों, क्या आप बता सकते हो, कि इशिका का अंदाज़ क्यों बदला बदला सा है ?
इंतज़ार कीजिए Part- 8 का।
Bela...
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