नौजवान की दास्ताँ
हाँ, तो चलो दोस्तों,
चाहे किस्मत में जो भी लिखा हो, मगर आपकी ईमानदारी, सच्चाई और सच्चे मन से की गई मेहनत कभी भी फ़िज़ूल नहीं जाती। इसलिए दोस्तों, अपने आप को कभी भी दूसरे से कम मत समजो, अगर आपका मन सच्चा और मेहनत दोगुनी होगी, तो तुम अपनी किस्मत को भी बदल सकते हो।
आज में आपको सुनाऊ, एक नौजवान की दास्ताँ,
जनकपुर नाम के एक छोटे से गाव में एक पति पत्नी रहते थे, पति का नाम श्यामल और पत्नी का सुशीला था। श्यामल खेतिबाड़ी संभालता था, सुशीला अपना घर संभालती थी, दोनो की शादी को 5 साल हो गए थे, लेकिन बच्चा नहीं हुआ था, फिर एक वैदजी की औषधि और कितनी मन्नतो के बाद उनके घर में खुशियाँ आई, सुशीला गर्भवती हुई, दोनों बहोत खुश थे, श्यामल भी अपनी पत्नी का बहोत ख़याल रखता था, सुशीला का महीना चढ़ने लगा, देखते ही देखते नौ महीने बित गए, फिर सुशीला ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। श्यामल और सुशीला मुन्ने को देख बहोत ही खुश थे, श्यामल की तो जैसे ख़ुशी का कोई ठिकाना ना रहा।
दोनों ने अपने मुन्ने का नाम अविनाश रखा था। श्यामल ने पुरे गांव में मिठाइयाँ बाँटनी शुरु की, सब श्यामल को बच्चा होने की ख़ुशी में बधाइयाँ दे रहे थे। श्यामल और भी ख़ुश होकर सब का धन्यवाद करता था। रात होने को थी, मिठाइयाँ देने के बाद श्यामल अपने मुन्ने के लिए खिलौने और कपडे लेकर अपनी साइकिल से अपने घर जा रहा था, तब रास्ते में बड़ी तेज़ी से पीछे से आ रही ट्रक से उसकी साइकिल टकराई, तो श्यामल उछलकर दूर जाके गिरा। पास खड़े लोगो ने ये देखा तो भागते हुए वह लोग श्यामल को बचाने उसके पास गए, मगर एक पत्थर से टकराने की वजह से उसके सिर से बहोत खून बह चूका था। उसे अस्पताल लेके जाए उस से पहले ही उसने अपनी साँसे छोड़ दी थी। सुशीला की तो जैसे ज़िंदगी ही बिख़र गई थी। एक तरफ मुन्ने की आने की ख़ुशी तो दूसरी तरफ़ अपने पति के मरने का ग़म। वह बिचारी क्या करती ? अपनी ही किस्मत पे रोती थी।
" वक़्त ने किया क्या हसी सितम, तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम "
सुशीला का इस दुनिया में उसके पति के आलावा और कोई नहीं था, वह एक अनाथालय में पली बड़ी हुई थी, और उन्होंने ही उसकी शादी श्यामल से करवाई थी, उसके पति के जाने के बाद अकेले में वह बार बार मरने के बारे में सोचती रहती, फ़िर अपने मुन्ने का चेहरा देख उसने अपनी ज़िंदगी शुरू की, यह सोच की अपने मुन्ने के लिए तो उसे जीना ही पड़ेगा। जैसे तैसे कुछ छोटा मोटा काम करके अपने मुन्ने के साथ अपनी ज़िंदगी
गुज़ारने लगी।
" दुनिया में हम आऐ है तो जीना ही पड़ेगा,
जीवन है अगर ज़हेर तो पीना ही पड़ेगा "
मगर पता नहीं उसकी और उसके बेटे की किस्मत में क्या लिखा था ? उसका बेटा अविनाश धीरे धीरे बड़ा हो रहा था और वह जहाँ भी जाता था या कुछ भी करता था, उसके साथ कुछ ना कुछ गड़बड़ हो ही जातीथी। सुशीला उस से बहोत परेशान हो गइ थी, मगर वह एक माँ भी तो थी, कैसे छोड़ देती अपने अविनाश को भला ?
जैसे की अविनाश खिलौने के साथ खेलता, तो हर बार उसका खिलौना टूट ही जाता था, उसके दोस्त के घर जाता तो भी कुछ ना कुछ तोड़ के ही आता था, स्कूल जाने लगा तो, पहले ही दिन उसके टीचर बीमार हो गए, दूसरे दिन से १५ दिन की छुट्टी मिल गई, जिस दिन सुशीला अविनाश को साथ लेके सब्जी बेचने जाती, उस दिन उसकी सब्जी बिकती ही नहीं थी, अविनाश को लेकर सुशीला किसी की शाद्दी में जाती, या तो वहांँ रौशनी चली जाती, या तो शादी ही टूट जाती, किसी के घर साफ, सफाई के लिए जाती तो, उस घर की छत ही टूट जाती, और भी बहोत कुछ... हर बार काम बनने की बजाय बिगड़ता ही जाता था। इसलिए कभी कभी सुशीला अविनाश को घर में अकेला छोड़ के भी काम पे जाया करती थी। गांव में सब लोग अविनाश को मनहूस, आफत और पनौती कह कर बुलाते थे, बच्चे भी उसे बहोत चिढ़ाते थे, सुशीला भी कभी कभी तो उस से तंग आकर उसे पनौती कह कर रोते हुए घर के बाहर धक्का दे देती थी। एक दिन अविनाश को धक्का लगाते वक़्त सुशीला का पैर फिसल जाता है, वह गिर जाती है, उसके पैर में मोच आ जाती है, फ़िर सुशीला अपने ही सिर पे हाथ रख अपनी किस्मत को और जिस दिन अविनाश इस दुनिया में आया उस दिन को याद कर रोए जाती थी, अविनाश अपनी माँ को प्यार से गले लगा लेता, और कहता की में ये सब जान बुजकर नहीं करता, तेरी कसम माँ !
जैसे तैसे दिन बीतते गए, अविनाश जवान होता चला गया और उसके साथ उसकी पनौती भी बढ़ती गई। जैसे तैसे करके उसने अपनी पढाई पूरी कर ली थी, माँ की सिफारिश से एक मिठाई वाले के वहांँ उसे काम पे लगाया था, मिठाई वाले की सारी मिठाई बिगड़ जाती थी, उसकी मिठाई बिकती नहीं थी, शेठ ने अविनाश को पनोती समझकर उसे काम पे से निकाल दिया। फिर वह बगीचे में माली के तौर पे काम पे लगा तो, उसी दिन पानी की पाइप फट जाने की वजह से सारा बगीचा पानी से भर जाता है। सारे फूल ख़राब हो गए, वहाँ से भी शेठ ने काम से निकाल दिया। इस तरह वह जहाँ भी जाता कुछ ना कुछ उल्टा हो ही जाता। कभी वह सीढ़ियों से फिसल जाता तो कभी किसी को गिरा देता। जहां भी जाता विनाश ही होता, जिसके नाम में ही विनाश हो उसके साथ कैसे अच्छा होता भला ! सब उसे चिढ़ाते जैसा नाम वैसा काम।
" तुझ से नाराज़ नहीं ज़िंदगी,
हैरान हूँ में, परेशान हूँ में। "
वह खुद अपनी ज़िंदगी से और अपनी नाकामियाबी से तंग आ चूका था, वह मंदिर जाके भगवान् से पूछता रहता, की तूने मुझे ऐसा क्यूँ बनाया ? मुझ से कोई काम ठीक से होता क्यूँ नहीं है ? क्या में सच में सब के लिए एक पनौती हूँ ? अगर हां तो अब आप ही बताइए अब में क्या करू ? मेरी वजह से माँ भी कितनी परेशान रहती है, उसे मेरी वजह से सबकी खरी खोटी सुननी पड़ती है। अविनाश की पनौती की वजह से उसका कोई दोस्त भी नहीं था।
मगर एक लड़की थी, जिसका नाम निशा था, वह दोनों साथ स्कूल में पढ़ते थे, निशा अविनाश को बहोत पसंद करती थी, दिखने में भी वह सुंदर, मासूम और भोला भाला था। माना वह सब के लिए पनौती था, मगर दिल का वह बहोत ही अच्छा था, उसके अंदर ईमानदारी और कुछ करने का जुनून था। सब की मदद करना उसे अच्छा लगता था, मगर अपनी पनौती की बजह से हर बार कुछ उल्टा हो ही जाता और फिर से उसे गाली पड़ती, निशा उसे समजाया करती, की तू उदास मत हो, एक दिन सब ठीक हो जाएगा, और तू बड़ा आदमी भी बनेगा। अविनाश उसे कहता, मेरी इस पनौती के साथ भला में कैसे बड़ा आदमी बनुँगा। तू मुझे ओर परेशान मत कर और जा यहाँ से।
निशा गांव के जमींदार की एक लौती बेटी थी, वह ज़िद्द पकडे बैठी थी की उसे अविनाश से शादी करनी है, मगर अविनाश उसे मना कर देता, कहते हुए की मेरे पास तुझे देने के लिए कुछ नहीं है, तू किसी और से शादी कर ले, लेकिन निशा मानने वालो में से नहीं थी, उसने अपने बाबा से जाकर अविनाश के साथ शादी की बात की, उसके बाबा ने पहले तो उसे फौरन मना कर दिया, उस पनौती के साथ शादी करने से। तो निशा ने अपने आप को कमरे में बंध कर दिया और अपनी जान लेने की कोशिश की, उसके बाबा ने उसे बचा लिया, और उसकी शादी के लिए राज़ी हो गए। और उसे अपने ही घर में मैनेजर का काम दे दिया, अविनाश ने कहा में बड़ी मेहनत और लगन से काम करूँगा। सब अच्छा होगा। जमींदार ने दोनों की शाद्दी करवा दी। अविनाश बड़ी मेहनत और वफ़ादारी से जमींदार के यहाँ काम करने लगा। निशा पढ़ी लिखी थी तो वह भी उसकी मदद किया करती थी, धीरे धीरे गलतियांँ कम होती गई, सुशीला को भी ये देख बड़ा अच्छा लगता, वह दोनों को दिल से आशीर्वाद देती। निशा के बाबा ने भी खुश होकर अविनाश को ज़मींदारी का सारा काम सौंप दिया। अब वह झोपड़े में से पक्केवाले मकान में रहने लगे। देखते ही देखते उनकी शादी को एक साल हो गया, और निशा ने भी एक लड़के को जन्म दिया। जिसका नाम रखा विकास। सब हसी ख़ुशी साथ मिलकर ज़िंदगी बिताने लगे।
" ज़िंदगी की यही रीत है,
हार के बाद ही जीत है,
थोड़े आँसु है, थोड़ी हसी,
आज गम है
तो कल है ख़ुशी। "
तो दोस्तों, अविनाश ने अपनी मेहनत और लगन से निशा की मदद से अपनी पनौती को झुका ही दिया, और नए विकास का जन्म हुआ।
ye bahut umda story thi jisey hame sikh bhi leni chahiye,,🌷🌿👌
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