DIFFERENT TYPE OF PERSON
ज़िंदगी में आपको हर तरह के इंसान देखने को मिलते है, हर एक की सोच अलग, ज़िंदगी जीने का और देखने का हर एक का तरीका अलग, आदतें अलग, सोच अलग, बहोत कम लोग आपको मिलेंगे जिनकी सोच और आदतें एक दूसरे से मिलती जुलती हो, चाहे वह कोई भी हो।
आप ज़रा देखोगे तो एक ही घर में भी सब की सोच, सब की पसंद, सब का टेस्ट, सब की आदतें, अलग अलग होती है, कितना अजीब लगता है ना, खुदा ने सब को एक दूसरे से कितना अलग बनाया है, किसी को कुछ पसंद है, तो किसी को कुछ ।
जैसे की, एक ही घर में, मम्मी पापा, मैं, भैया, दीदी, दादा दादी, बुआ सब साथ में रहते है, एकदूसरे से कोई शिकवा शिकायत नहीं, कहने को तो सब ख़ुश है अपनी अपनी दुनिया में, लेकिन सब की सोच और पसंद अलग अलग है, जैसे की,
दादा, दादी को सुबह अपनी पूजा पाठ करने के बाद ही चाय, नास्ता करने की आदत है, तो एक तरफ पापा और मम्मी को सुबह जल्दी चाय और नास्ता चाहिए, क्यूंँकि उन्हें दिन भर ढ़ेर सारा काम जो करना होता है, उनके पास सुबह सुबह आराम से बैठने का वक़्त ही कहाँ ? पापा चाय नास्ता करके टिफ़िन लेके ऑफिस चले जाते है, मम्मी घर के कामो में लग जाती है, दादा और दादी को उनकी उम्र के हिसाब से रामायण, महाभारत पढ़ना और पुराने गाने और फिल्में, देखना अच्छा लगता है, कभी कभी शाम को सामने वाले गार्डन में टहलने चले जाते है, तो उनको भी वहांँ यार दोस्त मिल जाते है, तो उनका भी अच्छे से वक़्त गुज़र जाता ही है,
और, बाकि घर में हम सब का तो अंदाज़ ही कुछ और है। बुआ, भैया, दीदी और मैं स्कूल, कॉलेज जाने की जल्दी में चाय नास्ते में ज़्यादा वक़्त नहीं लगाते, या तो कभी कभी स्किप भी कर लेते है, मॉर्निंग ब्रेकफास्ट हमारे लिए इतना matter भी नहीं करता, बस पूरा दिन दौड़ते और भागते रहते है, कभी स्कूल, कभी दोस्त, कभी मूवी, कभी पार्टी, कभी मोबाइल, कभी म्यूजिक, कभी मस्ती, कुछ ना कुछ चलता ही रहता है। फुर्सत ही नहीं किसी के बारे में सोचने की।
मेरी बात करू तो, मुझे पढ़ना अच्छा लगता है, में कभी कभी कविताएँ और स्टोरी लिख भी लेती हूँ, मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है, स्कूल से आते ही बस मैं और मेरी किंताबे, social media से में ज़रा दूर ही रहती हूँ, मेरा ये funda है, की किसी की ज़िंदगी में झाकना नहीं, और किसी को अपनी ज़िंदगी में झाकने देना नहीं।
अब बात करु, मेरे प्यारे भैया की, पढ़ाई में भी नंबर वन और फुटबॉल में भी। हां, उसे फुटबॉल खेलना बहोत पसंद है, जैसे फुटबॉल ही उसकी दुनिया हो, चाहे कुछ भी हो जाए मगर वह कभी भी शाम को अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलने turf पे जाना मिस नहीं करता। उसे भूख बहोत लगती है, और खाना उसको दिन में चार पांच बार चाहिए। कहता है की भूखे पेट मेरी समज में कुछ नहीं आता, मुझे कुछ याद नहीं रहता, चाहे आप उसे खाने में कुछ भी दो वह खा लेगा। मेरे हिसाब से वह भी अपनी ही दुनिया में रहता है, कोई क्या करे, क्या नहीं ? इन सब चक्कर में वह नहीं पड़ना चाहता। और लडकियों से तो वह कोसों दूर ही रहता है, लड़कियाँ इसके पीछे पड़ती है, मगर ये किसी को भाव नहीं देता।
अब बात करती हूँ, मेरी सबसे छोटी दीदी, जो सिर्फ ८ साल की ही है, मगर बहोत शैतान। पूरा दिन उसके मन में कई तरह के सवाल उठते रहते है, जैसे, की " पंछी की तरह मैं हवाओ में क्यूँ नहीं उड सकती ? सूरज को सूरज दादा क्यूँ कहते है ? चंदा को चंदा मामा क्यूँ कहते है ? हम रात को ही क्यूँ सोते है दिन में क्यूँ नहीं ? सूरज दादा और चंँदा मामा गोल ही क्यूँ है ? हमें पढ़ने स्कूल क्यूँ जाना है ? पापा रोज़ ऑफिस क्यूँ जाते है ? दादा और दादी रोज़ रोज़ भगवान की पूजा क्यूँ करते है ? ऐसे और भी बहोत सारे सवाल, जिसके जवाब देते देते हम सब थक जाते है, मगर उसके सवाल ख़तम नहीं होते। और उसे अपनी गुड़िया इतनी प्यारी है, की पल भर के लिए भी वह उसे अपने से दूर नहीं होने देती। वह घर में सब की प्यारी है, क्यूंँकि वह सब से छोटी जो है !
अब बात करती हूँ, हमारी प्यारी बुआ के बारे में, हमारी बुआ को फैशन और स्टाइल से फुर्सत कहाँ ? अपने चेहरे का वह बहोत ख्याल रखती है, एकदम थोड़ा सा भी पिम्पल उसके चेहरे पे दिख जाए, तो वह पूरा घर सिर पे उठा लेती है, कभी फेस पैक लगाया तो कभी मुल्तानी मिट्टी, या फिर कुछ ओर, कभी अपने बालों को कर्ल्स करती है, तो कभी स्ट्रेट। कभी कलर्स तो कभी कुछ ओर, अपने nails को कलर्स या shape देना वह कभी नहीं भूलती, छोटे छोटे कपड़े पहनती है, तो पापा उस पे गुस्सा होते है, मगर वह किसी की सुनती कहाँ ? मोबाइल में थोड़ी थोड़ी देर में अपना मुँह बना के वह selfie लिया करती है, मेरी तो समज में आता नहीं की, कॉलेज में वह फैशन के लिए जाती है या पढ़ने ? हमारे महोल्ले में और उसके कॉलेज में लड़के उसके पीछे पागल है, मगर बुआ किसी को भाव नहीं देती, दिखने में वह बहोत ही beautiful है, इसलिए अब उसके लिए शादी के रिश्ते भी आते रहते है, लेकिन बुआ सब को रिजेक्ट कर देती है, ये कहकर की इस में ये नहीं, और उसमें वो नहीं, तो वह मेरी टाइप का नहीं, पता नहीं उसको कैसा और कौनसा लड़का पसंद आएगा ?
अब बात करू मेरी मम्मी की, मम्मी खाना बहोत अच्छा बना लेती है, और उसे कुकिंग पसंद भी है, सब की पसंद का वह ख्याल रखती है, किसी को खाने में यह पसंद तो किसी को कुछ ओर, मगर मम्मी सब के लिए कुछ न कुछ बना ही लेती है, उसका आधा दिन शायद किचन में ही जाता होगा। मगर किसी को भी नाराज़ नहीं होने देती। सब से अच्छी बात मेरी मम्मी में यह है की उसे बिगड़ी हुई बात बनाना बड़ी अच्छी तरह से आता है, जैसे की घर में किसी के साथ किसी का छोटा सा झगड़ा या फिर मन मुटाव हुआ हो, तो वह अपनी समझदारी से सबको मना लेती है, जैसे की एक डोर से सब को घर में एकदूसरे से बांधे रखती है। कितना मुश्किल होगा ना सबकी अलग अलग सोच और पसंद के हिसाब से सब को खुश रखना ? ये एक समझदार औरत ही कर सकती है, अपने बारे में वह शायद ही कभी सोचती होगी, ऐसा मुझे लगता है, या तो उसे अपने बारे में सोचने का वक़्त ही नहीं मिलता।
अब बारी आती है मेरे पापा की, उसका अंदाज़ भी एकदम हटके है। माना की उनके ज़िंदगी जीने के उसूल कुछ सख़्त है, मगर वह दिल के बहोत अच्छे है, सबका घर में अच्छे से ख्याल रखनाऔर खुश रखना चाहते है, मगर उनका गुस्सा सारी बात बिगाड़ देता है, उनको discipline में रहना पसंद है, वक़्त पे सोना, जागना, खाना, पीना, उठना, बैठना पसंद है, घर भी एकदम साफ चाहिए, इधर उधर चीज़े बिख़री हुई उसे पसंद नहीं, हिसाब के बड़े पक्के है वह, उन्हें ज़्यादा शोर भी पसंद नहीं, t.v भी बहोत कम देखते है, ऑफिस से आते वह भी या तो नोवल पढ़ते है, या खाना खाने के बाद वॉक पे जाते है, या तो पुराने गाने सुनते है, मज़े की बात तो यह है की, उनके ऑफिस जाते ही सब बिंदास हो जाते है, दादा, अपने कमरे में भजन शुरू कर देते है, बुआ फिर से नास्ता करके सो भी जाती है, भैया को अगर फिर से नींद ना आए तो घर में ही फुटबॉल खेलने लग जाते है, दादी सुबह में थोड़ा मम्मी को किचन में हेल्प कर लेती है, तो मम्मी खाना बनाते बनाते अपनी पसंद के गाने चला देती है, जो दादी को भी अच्छा लगता है। मम्मी और बुआ को डांस करने का मन हो तो म्यूजिक लगाते ही वह दोनों शुरू हो जाते है, दादा, दादी को इस से कोई ऐतराज़ नहीं है, उन्होंने भी अपने ज़माने में बहोत मस्तियाँ की थी, इसलिए उनको भी मन में सवाल होता है, की ये हमारा बेटा इतना सख़्त क्यूँ है ? पूरा दिन मुँह बनाए फिरता रहता है, पापा के सामने दादा, दादी की भी कुछ चलती नहीं। और हां अगर कभीें इन बिच अचनाक से पापा जो आ गए तो म्यूजिक बंध, में खिड़की पे बैठ के सब को पापा के आने का इशारा कर देती हूँ। सब अपने अपने काम पे लग जाते है, दादा न्यूज़ पेपर पढ़ते है, दादी माला जप्ती है, बुआ अपने कमरे में चली जाती है, मम्मी किचन में, छोटी दीदी अपनी गुड़ियाँ को लेकर दादी की गॉड में छुप जाती है, उनके सामने कोई अपनी आवाज़ नहीं उठाता। यहाँ तक के दादा जी भी नहीं। अगर पापा से कुछ कहना हो या कुछ माँगना हो तो सब मम्मी को ही पहले बताते है, क्यूँकि मम्मी को पता है की पापा को कैसे मनाना है।
एक बार क्या हुआ की, छोटी सी बात पे पापा सबके सामने भैया पे बहोत गुस्सा हो गए, भैया रुठ के अपने कमरें में चला जाता है, पापा अपने कमरे में। फिर मम्मी जाकर पापा को समजाती है, की " जवान लड़के के साथ इतनी सख़्ती ठीक नहीं है, माना की वह इस बार गलत था, मगर, यही बात आप उसे गुस्से से ना कह कर प्यार से किसी और तरीके से कहते तो शायद वह समज भी जाता। मुझे पता है की आप सबको खुश रखना चाहते है, मगर गुस्से से कभी क्या कोई बात बनती है भला ? सबको अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीना का हक़ है, कभी कभी बच्चो के साथ बच्चे बन जाना ही समझदारी है। " पापा को मम्मी की बात समज में आती है, और पापा भैया को मना लेते है, और अब तो कभी कभी वह भैया के साथ फुटबॉल भी खेल लेते है, तो दादा के साथ बैठकर मूवी भी देखते है, और मम्मी के साथ गाने भी सुन लेते है, मेरे पास आकर नॉवेल पढ़ते है, और कभी सब साथ में पिकनिक पे भी जाते है, मगर फिर भी सब को थोड़ा सा तो डर पापा से लगा ही रहता है, " but its ok, let it be " सबके अलग अलग अंदाज़ होते है जीने के, जो वह अपने हिसाब से ही जीते है, अगर वह खुद चाहे तो उनमें थोड़ा सा बदलाव आप ला सकते है, मगर ज़्यादा नहीं। कुछ impressions उनके अंदर होती ही है। जिससे कोई चाहकर भी दूर नहीं रह सकता।
तो ये है हमारी " happy family " थोड़ी खट्टी, तो थोड़ी मीठी, और थोड़ी " interesting "
तो दोस्तों, मानो अगर एक ही घर में सब की सोच इतनी अलग है तो पूरी दुनिया में तो सब की सोच कितनी अलग होगी, और ज़िंदगी जीने का अंदाज़ भी। मुझे वह अलग अलग किस्म के लोगो को पढ़ना और जानना भी अच्छा लगता है, की जिस के बारे में, मैं लिख सकु।
Bela...
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