कागज़ के पन्ने

                                        कागज़ के पन्ने 

एक वो वक़्त था, जब हम खेल खेल में नाव बना के कागज़ के पन्नो को बारिश में बह जाने देते थे। 

वो कागज़ की नाव अक्सर थोड़ी दूर जाके डुब जाया करती थी,

उस डूबती नाव को देख अक्सर हम मायूस हो जाया करते थे,

 की गलती हमारी ही होगी, हमने ठीक से नाव बनाई ही नहीं होंगी। 

मगर गलती हमारी नहीं, बल्कि उस तूफ़ान की है जो बड़ी तेज़ हवा के झोंको से उस नाव को डूबा देता था। 

 इसी तरह कभी-कभी हमारी ज़िंदगी में भी ऐसा होता है की हम तो सीधे रस्ते चलते है,  

मगर कोई  रिश्तो का तूफ़ान आकर हमारी ज़िंदगी की नाव को डूबा के चला जाता है और हम सिर्फ देखते ही रह जाते है। 

इसलिए दोस्तों, हमें अपनी ज़िंदगी की नाव इतनी मज़बूत बनाए रखनी है की कोई भी तूफ़ान आकर हमारे मज़बूत रिश्तो और हमारे पक्के इरादों को डूबा ना सके। 

                                                               

एक वक़्त था, जब इम्तहान के वक़्त हमें कुछ लिखना याद नहीं आता था और हम उन कागज़ के पन्नो को मायूस होकर देखते रह जाते थे, तब यही कागज़ के पन्ने हम पे हस्ते थे मगर,

आज  जैसे वही कागज़ के पन्ने हमें लिखने के लिए अपने पास बुला रहे है और हमारे हाथ खुदबखुद चल पड़ते है उन ही कोरे कागज़ के पन्नो पे। 

                                                            Bela...      

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