तेरी मेरी कहानी Part- 1
एक प्याली चाय, एक प्लेट समोसा और मुंबई की बारिश। अभिषेक घर जाते वक़्त रोज़ चौराहे पे चाय की टपरी पे एक प्याली चाय और एक प्लेट समोसे खा के ही जाता था। वैसे भी चौराहें पे होने की वज़ह से वो चाय वाला वहाँ बहुत मशहूर था। रामुकाका अभिषेक को दूर से आते देखते ही उसकी गरम चाय और समोसे रेडी कर देते थे और वैसे भी मुंबई की बारिश में रामुकाका के हाथ की चाय का मज़ा ही कुछ और होता था।अभिषेक के साथ कोई और भी थी, जो रामुकाका के हाथ के चाय की शौक़ीन थी। वो भी उसी वक़्त वहाँ आती थी, जिस वक़्त अभिषेक आता था। दोनों की मंज़िल और रास्ते अलग थे। मगर फ़िर भी ना जाने क्यों चौराहें पे दोनों एक ही वक़्त पे साथ हो ही जाते थे। रोज़ दोनों एकदूसरे के सामने देख थोड़ा मुस्कुराते और चाय पीकर चल पड़ते अपने अपने रास्ते। बस अब तक तो सिर्फ़ इतनी सी थी उन दोनों की मुलाक़ात। ना कोई जान पेहचान, ना कोई बातचीत। जैसे की मुंबई की बारिश, चाय की प्याली और वो दोनों, दुनिया से बेगाने। रोज़ मिलते और मुस्कुराते थे, मगर एक दूसरे का नाम तक नहीं जाना कभी। जैसे आँखों ही आँखों मैं बाते हो रही हो उन दोनों की।
लेकिन, एक दिन अभिषेक ने सोचा की बहुत हुई ये आंँख मिचौली। आज तो हम उस लड़की से बात भी करेंगे और उस से उसका नाम भी पूछ ही लेंगे।
अभिषेक : ( मन ही मन सोचता ) ज़रूर कोई बात हुई होगी, तभी आज वो नज़र नहीं आई।
( थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद अभिषेक भी वहांँ से चला गया। आज घर जाते वक़्त वो उसी के ख़यालो में था। ऐसा पहले तो कभी अभिषेक ने उस लड़की ( इशिका ) के बारे में सोचा नहीं था। मगर उसके ना मिलने पर आज ना जाने क्यों, अभिषेक को उसका ही ख़याल आ रहा था। उसकी वो शरमाई हुई, झुकि हुई सी पलके, चेहरे पे उड़ के आते हुए, उसके वो रेशम से भी मुलायम काले-घने बाल की लते, वो प्यारी सी मदहोश कर देनेवाली मुस्कान, वो बारीश में भीगा हुआ दुपट्टा उसका । उस लड़की ( इशिका ) का चेहरा आज अभिषेक की आँखों से हटता नहीं था। )
( रात को उसे ठीक से नींद भी नहीं आई। सुबह जल्दी ही अपने काम पे लग गया। आज अभिषेक इसी जल्दी में था की कब शाम हो और वो उस चौराहें पर जाए, जहाँ उसकी जान बसती थी। शाम होते ही वो दौड़ा-दौड़ा चौराहें तक गया। अभिषेक को देखते ही रामुकाका ने चाय और समोसे की प्लेट उसके हाथों में थमा दी। मगर उसको तो जैसे कोई होश ही ना था। अभिषेक को तो बस उसका इंतज़ार था। उसकी जगह खाली थी मगर उसने अपनी आस बनाऐ रखी, और अपना इंतज़ार भी बनाऐ रखा। वो बारबार घडी को देखता और सामने देखता, मगर आज भी वो नहीं आई।
अभिषेक : ( अपने आप से ) वो कौन थी ? कहाँ से आती थी ? क्यों मैंने आज तक उससे बात तक न की और ना ही जानने की कोशिश की, कि उसका नाम क्या है ?
फ़िर भी अभिषेक ने मिलने की आस न छोड़ी। उसे अपने प्यार पे पूरा भरोसा था की वो ज़रूर आएगी। वो रोज़ शाम को चौराहें पे जाके चाय और समोसा लेकर उसका इंतज़ार करता और उसके नज़र न आने पर मायूस होकर चाय और समोसा पास में खड़े उस गरीब लड़के को देकर चला जाता था। वो लड़का खुश होता था की साहब उसे रोज़ चाय और समोसा देते थे, तो वो भी रोज़ उसी वक़त आ जाता था। अब मानो ये सिलसिला रोज़ का हो गया था, वक़्त किसी के रोके रुकता नहीं, दिन बदले, मौसम बदले, मगर अभिषेक और उसका इंतज़ार ना बदला।
तो दोस्तों, क्या आप बता सकते है की अभिषेक का इंतज़ार कभी ख़तम होगा या नहीं ? क्या इशिका कभी अभिषेक की हो पाएगी या नहीं ?
इंतज़ार कीजिए Part-2 का
Bela...
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