तेरी मेरी कहानी Part- 6
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि अभिषेक के पूछने पर राघव ने उसे बताया, कि इशिका के बाबा इशिका को शायद कलकत्ता छोड़ आए है, ऐसा राघव को लगता है। मगर अकेले कलकत्ता जाकर अपनी बहन को ढूँढना राघव के लिए मुश्किल था। अभिषेक अपना दोस्त मोहन जो कलकत्ता में रहता है, उसे इशिका के बारे में पता लगाने को कहा, अभिषेक के दोस्त मोहन ने उसकी मदद करने को हाँ, तो कहा, मगर साथ में ये भी कहा, कि उसके लिए बहुत ज़्यादा पैसे लगेंगे, वो एक आदमी को जानता तो है, मगर वो बहुत पैसे लेता है, फ़िर भी अभिषेक ने इशिका के को ढूँढ ने को कह दिया, अब आगे...
इधर राघव चुपके से अपने बाबा को फ़ोन पे किसी से पैसों की बात करते हुए सुन लेता है और बाबा बिच-बिच में किसी रसीला बाई का नाम भी बोल रहे थे। राघव को लगा की ज़रूर बाबा दीदी के बारे में ही बात कर रहे होंगे।
उधर अभिषेक भी पैसो का इंतेज़ाम कर कलकत्ता जाने की तैयारी में लगा था।
अभिषेक : ( मन ही मन ) एक बार राघव से मिल लूँ । शायद उसे भी इशिका के बारे में कुछ पता चला हो।
वो चाय की टपरी पे जाके राघव का इंतज़ार करता है, तभी सामने से राघव भी आ जाता है।
अभिषेक : (जल्दी जल्दी में ) कुछ पता चला क्या तुम्हारी बहन इशिका के बारे में ?
राघव : हा, आज मेरे बाबा फ़ोन पे बाते कर रहे थे किसी से, तब मैंने चुपके से उनकी बाते सुनी, वो कुछ पैसों के बारे में बात कर रहे थे और बिच-बिच में किसी रसीला बाई का नाम भी ले रहे थे।
अभिषेक : ह ह म म म... तो ये बात है, अभिषेक समज गया, दाल में ज़रूर कुछ काला है। मैं एक ज़रूरी काम से अभी कलकत्ता जा रहा हूँ, तो तेरी दीदी के बारे में भी पता लगा लूँगा।
राघव :( को मन ही मन शक हुआ ) मगर आप मेरी दीदी के लिए इतना सब क्यों कर रहे हो ? कभी कभी इस बेदर्द ज़माने में कोई अपनों की मदद भी नहीं करता, तो आप हम गरीब के लिए इतना क्यों कर रहे हो ? कही आप मेरी दीदी से.....
( राघव की बात को बिच में ही रोकते हुए )
अभिषेक : इंसानियत नाम की भी कोई चीज़ होती है, मेरे भाई, बस समजलो इसी नाते। चलो मुझे ट्रैन पकड़नी है , वरना मुझे देर हो जाएगी। मैं चलता हूँ।
राघव को लगा जैसे की ज़रुर अभिषेकजी और दीदी कहीं एक दूसरे से प्यार तो नहीं करते ! ये सब जानने की बजाय उसे अपनी दीदी को ढूँढना ज़्यादा ज़रुरी लगा।
राघव : ( अभिषेक का हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए )
मैं भी आपके साथ आऊँगा। आपका तो पता नहीं मगर मेरी तो वो दीदी है, प्लीज मुझे आपके साथ आने दीजिऐ।
अभिषेक : ( अभिषेक राघव की भोली सूरत देख उसे मना नहीं कर पाया। )
ठीक है तो चलो, तुम्हारी टिकट का इंतेज़ाम मैं कर लूंँगा।
अभिषेक और राघव दोनों साथ कलकत्ता पहुँच जाते है। अभिषेक ने पहले से ही मोहन को स्टेशन पे बुला लिया था, ताकि इशिका को ढूंँढने में ज़्यादा वक़्त बर्बाद ना हो ।
अभिषेक : ( जल्दी जल्दी में, मोहन को अपने सामने देखते ही खुश होते हुए अभिषेक )
अरे मोहन, कैसा है मेरे यार तू ? घर पे सब कैसे है ?
( गले लगते हुए ) बहोत दिनों के बाद मिलना हुआ। तुजे देख के बड़ा अच्छा लगा। क्या कुछ पता चला क्या इशिका के बारे में ?
मोहन : अरे ! रुक जा मेरे यार, साँस तो लेले ज़रा। एक साथ इतने सारे सवाल ? बताता हूँ, सब बताता हूँ, मैं तो पहले की तरह देख ले एकदम बढ़िया हूँ, हटाकटा
( अपने बाज़ुओ को दिखाते हुए ) मुझे क्या हुआ ? और घर पे भी सब ठीक है। कभी-कभी माँ तुझे बहुत याद करती है। बाद में मिलाता हुँ उनसे। चल पहले कुछ नास्ता भी कर लेते है, फ़िर आराम से बाते करेंगे।
( मोहन ने आँखों के इशारे से अभिषेक के पास खड़े राघव को देखते हुए कहा, कि ये तेरे साथ कौन है ? अभिषेक राघव को मिलाते हुए )
अभिषेक : ये इशिका का भाई है, इस ने कहा मुझे भी चलना है आपके साथ। मैं कैसे मना कर सकता था।
मोहन : ठीक है, कोई बात नहीं।
( चाय नास्ता करते-करते बाते करते है।)
मोहन : यार अभिषेक, मैंने तुझे उस आदमी के बारे में फ़ोन पे बताया था ना, तो उस से मेरी बात हुई, उसने बताया की, एक नई लड़की किसी गाँव से कलकत्ता के बाजार में आई तो है, कलकत्ता का बाजार मतलब तू जानता तो है ना ! ( मोहन ने इशारे से उसे समजाया। अभिषेक और राघव के पाव निचे से तो ज़मीन ही सरक गई । )
राघव : ( थोड़ी देर बाद राघव कुछ याद करते हुए )
हाँ... अभी कल ही मेरे बाबा किसी रसीला बाई के बारे में फ़ोन पे बात कर रहे थे और उनसे ओर पैसे भी मांँग रहे थे।
मोहन : ओह्ह ! तो ये बात है। मैं अभी उस सुखीलाल को यहाँ बुला लेता हूँ, वो ज़रूर जानता होगा रसीला बाई को। क्योंकि उन गलियों में उसका रोज़ का आना-जाना लगा रहता है।
अभिषेक : अच्छा ठीक है, उसे जल्दी बुला लो। जितना हो सके उतना जल्दी हमें इशिका को अब ढूँढना होगा।
( मोहन उस सुखीलाल को फ़ोन लगाकर बुला लेता है। )
सुखी लाल : ( मुँह में पान चबाते हुए और अपनी लम्बी मुछो पर ताव देते हुए थोड़ी ही देर में आ जाता है ) जी आपने हमें याद किया ?
मोहन : हांँ... सुनो मैंने तुम को एक लड़की के बारे में बताया था, ये उसके रिश्तेदार है।
सुखी लाल : ह ह म म.... वो तो ठिक् है मगर दो दिन से मेरी बोतल ख़तम हो गइ है। ( इशारा करते हुए )
मोहन : ( उसे साइड में ले जाते हुए ) अरे यार, तू भी ना !वो सब तो मैं समज गया। तू पैसो की चिंता मत करो, तुम को तुम्हारा पैसा मिल जाएगा।
सुखी लाल : पहले दाम फ़िर काम। करना है तो बोलो वरना में चला।
( मोहन सुखीलाल को रोकते हुए )
मोहन : तुम भी समजते नहीं हो, अच्छा ठीक है,
( मोहन अभिषेक को साइड में ले जाकर पैसो के बारे में बात करता है, अभिषेक तुरंत थोड़े पैसे निकालकर मोहन को दे देता है। राघव दूर से ये सब देख लेता है। मोहन सुखी लाल को पैसे देते हुए ) आधा पैसा अभी देते है, आधा काम होने के बाद। ठीक है ? मगर काम पूरा होने से पेहले मुकर मत जाना।
सुखीलाल : ये सुखीलाल की ज़ुबान है, कट सकती है मगर मुकर नहीं सकती । आप अब फ़िक्र मत करो, आप बस पैसो का इंतज़ाम करो।
( पैसा गिनते हुए खुश होता है। अपनी मुछो पर ताव लगाते हुए ) समजो आपका काम हो गया।
मोहन : हाँ... लेकिन कब ?
सुखीलाल : लड़की की कोई फोटो ?
राघव : ( फ़ोन में अपनी दीदी की फोटो दिखाते हुए )
ये है मेरी दीदी।
सुखी लाल : ( फोटो देखते हुए ) ह ह म म म.... इस लड़की को तो मैंने आज कल में ही कही देखा है मगर याद नहीं आ रहा की कहाँ ?
मोहन : ( चिढ़ते हुए ) ज़रा अपने दिमाग पे भी ज़ोर लगाओ, याद करो कहाँ देखा था इसे।
सुखीलाल : ( अपने हाथ खूजाते हुए )
याद तो आ रहा है लेकिन...
मोहन : ( उसके हाथो में थोड़े ओर पैसे रखते हुए )
तू नहीं सुधर ने वाला। अब कुछ याद आया क्या ?
सुखीलाल : ( पैसो को देखते ही )
हांँ... शायद अब कुछ याद आ रहा है जैसे ( फोटो को फ़िर से गौर से देखते हुए ) शायद इसे मैंने कल रसीला बाई के कोठे पे देखा था। बहुत अच्छा नाच रही थी।
मोहन : ह ह ह म म मम.... ( उसको चुप करते हुए )
सुखीलाल : मेरा मतलब है, कि जहाँ तक में जानता हुँ, रसीला बाई के कोठे से आज तक कोई लड़की तो क्या कोई एक पत्ता तक नहीं लेके जा सकता। इतनी पाबन्दी है वहाँ।
अभिषेक : वो सब हम देख लेंगे। तू सिर्फ हम को उधर लेके चल।
सुखीलाल : हाँ... मगर बाजार रात को खुलता है ना, इस वक़्त कोई नहीं मिलेगा आपको। रात को चलते है ना, तब तक आराम करो आप। मगर भेस बदलकर आना होगा तभी आप मिल पाएंँगे लड़की से। समज गए ना !
तो दोस्तों, क्या अभिषेक और राघव इशिका को रसीला बाई के चंगुल से छुड़ा पाएंँगे ?
इंतज़ार कीजिए Part 7 का।
Bela...
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