तेरी मेरी कहानी Part -5

                   तेरी मेरी कहानी Part -5 

          तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, की इशिका के बाबा  कुछ काम तो करते नहीं, इशिका और उस के भाई को बात-बात पे मारा करते थे और दूसरी तरफ़ अभिषेकने इशिका और उसके भाई दोनों को साथ में हस्ते हुए देख अभिषेकने ऐसा सोच लिया, कि  जैसे वो दोनों एक दूसरे से प्यार करते होंगे, थोड़ी देर बाद  अभिषेक बिना कुछ कहे वहाँ से अपने घर वापस चला जाता है। उस तरफ़ इशिका के बाबा " इशिका को नौकरी मिल गईं है और अब उसे वहांँ ही रहना पड़ेगा," ऐसा कहते हुए इशिका का हाथ पकड़कर उसे वहाँ से ले जाते है। अब आगे...


       उस तरफ इशिका को किसी और के साथ देखने के बाद अभिषेक का तो दिल ही टूट गया था, उसे लगा की वो किसी और की हो गई, अब वो उसे कभी नहीं मिलेगी। वो अपनी बेवकूफी पे पछता रहा था की शायद उस दिन उस लड़की  ( इशिका ) को थोड़ी देर रोक कर उस से बातें  की होती तो आज वो शायद मेरे साथ होती।

        मगर " कांँच के टुकड़े जैसे कभी जुड़ नहीं सकते वैसे ही टुटा हुआ दिल भी कभी जोड़ा नहीं जाता।" 

      उसके बाद से अभिषेक दीवानों  सा हो गया था। उसे अपना होश ही नहीं था। ऐसे में प्रेमचंद जी को अचानक से हार्ट अटैक आ जाता है और  वो चल बसे। मगर जाने से पेहले  वो अपनी सारी  ज़मीन जायदाद अभिषेक के नाम कर गए थे, क्योंकि उसके अलावा उनका यहाँ और कोई था भी तो नहीं ! वो ईमानदार भी था और वो दादाजी का ख़याल भी रखता था।  मगर अब अभिषेक को पैसो से कुछ लेना देना नहीं था, उसका मन तो अभी भी इशिका के ख़यालो में ही गुम था। उसने उन पैसो से अपना सारा क़र्ज़ चूका दिया था और वही दादा जी की देखभाल करता रहता था। मगर दिल अब भी उसका जैसे कुछ ढूंँढ रहा था, शराब  के नशे में वो चौराहें पे चाय की टपरी पे गया। तो वहांँ इशिका का भाई खड़ा था, अभिषेक उसे पहचान गया। अभिषेक उसके पास गया।  ( वो भी बड़ा परेशान  और मायूस लग रहा था। अभिषेक ने उस से बात करने की कोशिश की। )  

अभिषेक :   तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो ? 

भाई : क्या में आपको जानता हूँ ?

अभिषेक : ह ह म म... नहीं,  तुम मुझे नहीं जानते मगर शायद मैं तुम्हें ज़रुर जानता हूँ। कुछ दिन पहले मैंने तुम्हें  एक लड़की के साथ इसी जगह पे देखा था। तुम दोनों चाय, नास्ता कर रहे थे और बड़े खुश भी नज़र आ रहे थे। मैं  दूर खड़ा वहाँ से तुम दोनों को देख रहा था। 

भाई : ह ह म म... 

अभिषेक : उस दिन तुम्हारे साथ जो लड़की थी, आज वो तुम्हारे साथ क्यों नहीं आई  ? कहाँ है वो ? वो ठीक तो है ना ?  तुम उसके क्या लगते हो ?

भाई : ( ऑंखें भर आती है। )  जी मैं  राघव और  वो मेरी दीदी  इशिका है।  मेरे बाबा ने उसे कही नौकरी पे लगा दिया है, मगर पता नहीं कहाँ। मेरे पूछने पर बाबा मुझे कुछ भी बताते नहीं,  उल्टा मुझ पे चिल्लाते रहते है। मुझे अपनी दीदी की बहुत चिंता हो रही है। न जाने वो कहाँ होगी,  किस हाल में होगी ? मगर आप मुझे क्यों पूछ रहे हो, क्या मेरी दीदी आपको जानती थी ? आपकी उस से कभी कुछ बात हुई  है क्या ? उसने आपको कभी कुछ बताया है क्या ?

अभिषेक : ह ह म म म... नहीं... मतलब हा...  हम लोग यहाँ एक ही वक़्त पे रोज़ चाय पिने आते थे तो एक दिन उसने मुझे अपनी नौकरी के बारे में पूछा था, मैं  उसे कुछ बताऊँ  या पुछू  इस से पेहले तो वो चली भी गई। उसने  अपना नाम और पता भी नहीं बताया मुझे। अब मैं  उसे कैसे ढूंँढता। इसीलिए मैंने तुमको पूछा और तो कोई बात नहीं।(बात को आगे बढ़ाते हुए अभिषेक राघव से) अच्छा, तो तुम्हारे बाबा उसे कहा लेकर गए थे ये भी तुम्हे नहीं पता ?

राघव  : जी नही... हा...  लेकिन याद आया कुछ दिन पहले बाबा की  जेब से कलकत्ता की टिकट निकली थी।  तो शायद... और कलकत्ता बहुत दूर है और वहांँ  जाने के लिए मेरे पास उतने  पैसे भी तो नहीं है।  इतने बड़े शहर में मैं अकेला उसे कैसे ढूंँढूगा भला। इसलिए  दिल में एक आस  लिए यहाँ चला आता हूँ की शायद एक दिन मेरी दीदी मुझे यही पे मिल जाए । 

अभिषेक : ( थोड़ी देर  के बाद ) अच्छा !!!  तो तुम ऐसा करो की अपने बाबा से बातों-बातों में जानने की कोशिश करो की वो कहा होगी। मैं  कुछ सोचता हूँ। दो दिन बाद हम यही मिलेंगे।   

राघव : जी ज़रुर, अपनी दीदी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। 

        कहते हुए राघव अपने घर की और चला।  अभिषेक राघव को जाते देख रहा, मन ही मन सोचता की कहा होगी वो ? कलकत्ता में मेरा एक दोस्त है उसे पूछता हूँ, शायद कुछ पता चल जाए। थोड़ी देर रुकने के बाद अभिषेक भी घर की ओर चला।  एक लम्बी साँस लेते हुए। 

        राघव बातो-बातो में अपने बाबा से दीदी के बारे में पूछने की कोशिश करता रहा। की शायद कुछ पता चल जाए। 

       उस तरफ अभिषेक ने भी कलकत्ता में अपने दोस्त मोहन को फ़ोन लगा के सारी बात बताई। 

मोहन : यार दोस्त अभिषेक, तेरी बात सुनकर मुझे भी लगता तो है की राघव और उसकी दीदी की मदद करनी चाहीए ।  मैं  कुछ करता हूँ,  वैसे तो यहाँ इतने बड़े कलकत्ता शहर में एक लड़की को ढूँढना मुश्किल तो है, पर हम भी यारों  के यार है, तू फिक्र मत कर, मैं  एक आदमी को जानता हूँ,  जिसे कलकत्ता की  हर गली, हर नुक्कड़ की खबर रहती है, मगर उसका मुँह बहुत बड़ा है, उस का  मुँह पैसो से भरना पड़ेगा, तभी वो अपना काम करेगा।  

अभिषेक : तू पैसो की फ़िक्र मत कर। पैसो का इंतेज़ाम मैं  कर लूँगा।  तू बस पता लगा की लड़की कहाँ  मिलेगी।  मैं  तुमको उस लड़की की फोटो बाद में भेजता हूँ।  

मोहन : ठीक है, चल अब मैं फ़ोन रखता हूँ। फ़िर मिलते है।  

अभिषेक : ओके। 

         तो दोस्तों,  क्या आप बता सकते हो की इशिका कहाँ  मिलेगी ? और किस हाल में मिलेगी ?  

           इंतज़ार कीजिए Part- 6 का। 

                                                                     Bela...

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