तेरी मेरी कहानी Part- 4

                   तेरी मेरी कहानी Part- 4 

        तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि इशिका को काम की जरूरत थी, इशिकाने अभिषेक से मदद भी मांँगी, मगर अभिषेक उसे कुछ कहता उस से पहले तो इशिका अपना नाम पता देने से पहले ही वहाँ से चली गई और नाहीं इशिका फ़िर से चाय की टपरी पे आती है। उस तरफ़ अभिषेक के बाबा प्रेमचंद के वहांँ  से बहुत सारा क़र्ज़ लेकर चल बेस थे, अब सारा कर्ज़ा अभिषेक के सिर आ गया था। अभिषेक अपने बाबा का कर्ज़ा चुकाने के लिए प्रेमचंद के यहाँ ही काम करता और दादाजी का ख़याल भी रख़ता था, अब आगे... 

        

          ( एक तरफ इशिका सोच रही थी की, )

इशिका : शायद उन्होंने मेरे लिए कुछ काम ढूंँढ ही लिया होगा और मेरा भी तो मन है उनसे ( अभिषेक ) मिलने का, उनसे बाते करने का। मगर उनसे मिलने कैसे जाऊँ  ? माँ के जाने के बाद तो बाबा ने काम करना  जैसे बिलकुल ही बंद कर दिया था, दिन भर नशे में रहते और अगर दारू का पैसा ना मिले तो मार भी पड़ती सो अलग, बाबा हर वक़्त घर पे ही तो रहते है, भैया को लेकर किसी बहाने से जाना पड़ेगा तभी बात बनेगी। 

                 ( पीछे से आवाज़ आती है, )

बाबा : इशिका खाना लाओ जल्दी, भूख़ के मारे मेरी जान जा रही है, क्या कर रही हो इतनी देर से रसोई में, न जाने कहाँ ध्यान रहता है आज कल तुम्हारा। 

इशिका : ( अपने आप को सँभालते हुए ) जी अभी आई, बाबा। ( वो बाबा को खाना परोसने लगी। खाना देखते ही बाबा ने थाली को धक्का दे दिया।  ) 

बाबा : ये क्या खाना हुआ रूखी सुखी दाल और रोटी ? 

                    ( इशिका गभरा गई। )

 इशिका : जी बाबा, वो घर में कुछ खास पैसे नहीं है और जो थे वो भी कल रात को आप शराब  के लिए लेकर चले गए थे, अभी मेरे पास कुछ भी नहीं की मैं बाजार जाकर कुछ ला सकू। 

बाबा : हर बार बात मेरे शराब पे आके ही अटक जाती है, तेरा वो निकम्मा भाई दिन रात पढता रहता है, उसे भी बोलों कि कुछ काम भी किया करे, ऐसे पढाई से थोड़े ही घर में पैसे आनेवाले है, हममम !!! अब मुझे ही कुछ न कुछ इंतेज़ाम करना पड़ेगा ताकि ये रोज़-रोज़ का पैसो का तमाशा ही बंद हो जाएंँ। ऐसा बोलते हुए नाराज़ होकर इशिका के बाबा खाना खाऐ बगैर ही घर से चले गए, इशिका फ़िर से अपनी किस्मत पे रो पड़ी। इशिका के रोने की आवाज़ सुनते ही अंदर से उसका भाई दौड़ा चला आया उसके पास और उसको चुप कराते हुए बोला की क्या हुआ दीदी ?

           िशिकाने अपने भाई को सब बता दिया। 

  भाई : ( हस्ता हुआ ) बस इतनी सी बात ! ये तो रोज़ का तमाशा है, उसमें क्या रोना दीदी आप भी ना !!! बाबा रोज़ की तरह रात को वापस आ जाएंँगे। ऐसा करते है दीदी, आज हम दोनों चाय और समोसा खाने चलते है, मेरे पास कुछ पैसे है जो मैंने बचा के रखे थे, वैसे आज मौसम भी बहुत अच्छा है, दीदी। बारिश भी हो रही है, ऐसे में चाय और समोसे खाने का मज़ा ही कुछ और है।  लेकिन बाबा को मत बताना, चल हस दे ज़रा अब, मेरी प्यारी  बेहना।

       और वो दोनों उसी चौराहें पे जाते है जहाँ अभिषेक और इशिका  दोनों रोज़ आमने-सामने हुआ करते थे। उस दिन इशिका अपने भाई के साथ बड़ी खुश थी और दोनों मस्ती भी कर रहे थे। दूर से खड़ा अभिषेक ये सब देख रहा था, उसे लगा की इशिका के साथ जो लड़का है वो उसका दोस्त होगा या तो वो दोनों एकदूसरे से प्रेम करते  होंगे, क्योंकि  दोनों उस दिन बड़े खुश दिखाई दे रहे थे। 

     अभिषेक मन ही मन " ऐ बारिश तुझे कैसे पता चला, की आज मेरा मन भी जी भर के रोने को है, तूने इस कदर मुझे भिगो दिया है, की मुझे अपने आंँसू छुपाने की भी  जरूरत ही नहीं। " 

    उस तरफ़ इशिका का भाई उसे खुश रखना चाहता था, क्योंकि माँ के जाने के बाद वैसे भी वो अकेली हो  गई  थी।  इशिका को मालूम ही नहीं था की अभिषेक भी वहांँ  था और उसे दूर से देख़  रहा था। अभिषेक इशिका को मन ही मन बहुत प्यार करने लगा था, इसलिए उस से ये  सब देखा नहीं गया और अभिषेक वहाँ  से चला गया।  इस बात से अनजान इशिका और उसका भाई अभी भी दोनों अपनी मस्ती में ही थे, वक़्त कहाँ गुज़र गया  पता ही नहीं चला। फ़िर  वो दोनों भी घर चले गए। घर जाके देखा  तो आज बाबा घर जल्दी वापस आ गए थे और दोनों का इंतज़ार ही कर रहे थे। दोनों को देखते ही  

बाबा : ( पेहले तो भड़क गए, फ़िर कुछ सोचते हुए ) 

     चलो अब सो जाओ, रात बहुत हो गई है और   इशिका  कल तू अच्छे से तैयार हो जाना तेरे लिए एक नौकरी मैंने ढूंँढ ली है, अब से तू वही रहेगी, अपना कुछ सामान  भी साथ बांध लेना, समज गई  ? 

        ( बाबा की ऐसी  बात सुनकर दोनों को बड़ा अजीब लगा क्योंकि बाबा ने कभी भी हमारे साथ ऐसे शांति से बिना मारे बात नहीं की थी। 

 भाई :  कहाँ नौकरी लगी  है दीदी की ?

बाबा :  तू चुप चाप बैठ तेरे से तो कुछ होता नहीं

        ( ये  कह कर बाबाने उसे चुप करा दिया और बाबा सोने चले गए और थोड़ी देर बाद इशिका और उसका भाई  दोनों भी सो गए।   सुबह उठते  ही बाबा एक ही रट लगाए जा रहे थे।  ) 

बाबा : इशिका जल्दी करो, अपना सामान बांध लो, कहीं बस न छूट जाए ?

भाई : दीदी को कहाँ लेकर जा रहे हो, इतना तो बताइऐ  बाबा। 

बाबा : तू चल पीछे हठ, देर हो रही है, आने के बाद सब बता दूंँगा। ( केहते हुए बाबा इशिका का हाथ पकड़ कर खींचते हुए उसे घर से लेकर चले गए।)  

भाई : अपना ख्याल रखना दीदी।

इशिका : तू भी अपना ख्याल रखना भैया और अपनी पढाई मत छोड़ना।

          जैसे दोनों को लगता था की कुछ तो बुरा करने जा रहे है बाबा। न जाने अब मिलना होगा भी या नहीं ? सोच के भी डर लगता है।  ऊपर भगवान से हाथ जोड़ते हुए कहता है, " है भगवान, मेरी दीदी के साथ कुछ बुरा मत होने देना। " 

          तो दोस्तों,  इशिका के बाबा उसे नौकरी के लिए किसके पास लेकर गए होंगे ? 

                   इंतज़ार कीजिए Part-5 

                                                                   Bela... 

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