तेरी मेरी कहानी PART-3

                   तेरी मेरी कहानी PART-3

          तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि एक दिन अचनाक इशिका चाय की टपरी पे आती है और अभिषेक से अपने लिए कोई नौकरी हो तो बताऐ, ऐसा कह के चली जाती है, अभिषेक को अब तक पता नहीं था, की शायद इशिका कोई मुसीबत में होगी और क्या इशिका उसे  यही बताने आई थी, या कुछ ? और अब आगे... 

       ( इशिका के जाने के बाद से अभिषेक हर पल सोचता ही रह गया की, इशिका को काम की कितनी ज़रूरत थी। तो फ़िर वो दुबारा मिलने क्यों नहीं आई ? आख़िर में उसने अपना नाम पता भी तो नहीं बताया था। अभिषेक आज भी उसी के इंतज़ार में था। आज ना जाने क्यों  उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था और अचानक से तेज़ चलती हवा और बिन मौसम बरसात जैसे इशारा कर रही हो उनके आने का। अभिषेक मन ही मन सोचता, )

      ( " ऐ वक़्त,पल दो पल थम जा ज़रा, मेरा यार आ रहा है, ऐ धरती, लाल चुनर ओढ़े सज जा ज़रा, मेरा यार आ रहा है।" )

          तभी पीछे से आवाज़ सुनाई देती है। 

दादाजी : अभिषेक ज़रा मेरे लिए चाय लाना तो बेटा।

 ( अभिषेक जैसे चाय बनाते-बनाते होश में आया हो )

अभिषेक :  अभी आया दादाजी। ( दादाजी के कमरे में जाते हुए ) ये रही आपकी चाय दादाजी। 

दादाजी : जब तक तेरे हाथ की चाय नहीं पी लेता मेरा दिन नहीं बनता। मेर पास आकर बैठ तो ज़रा !! मुझे कुछ दिनों से तुझ से एक बात पूछनी थी  बेटा। 

अभिषेक : वो क्या दादाजी ? पूछो ना !! 

दादाजी : मैं बहुत दिनों से तुझे देख रहा हूँ, कि तू हर वक़्त कहीं खोया-खोया सा रहता है और थोड़ा मायूस भी लगता है, क्या हुआ है तुझे ? पहले की तरह तू खुश क्यों  नहीं दीख रहा है ? 

अभिषेक : नहीं तो, कुछ भी तो नहीं। आप भी क्या दादाजी ! लीजिऐ आपकी दवाई का वक़्त हो गया है।  

      ( अभिषेक दादाजी को दवाई देता है और वहाँ  से बाहर चला जाता है। ) 

      ( तो दोस्तों, आप सोच रहे होंगे की अभिषेक बड़े जमींदार का बेटा होगा। मगर यहाँ कहानी कुछ और ही है। तो सुनिए ) 

       अरे नहीं, अभिषेक दादाजी का बेटा नहीं मगर उनके यहाँ काम करता है। अभिषेक के बाबा कुछ काम नहीं करते थे, और कई लोगों का क़र्ज़ उनके ऊपर था। अब उसे चुकाना तो पड़ेगा। मगर कैसे ? कुछ कमाएँगे या तो बचेगा तो चुकाएंँगे ना ! इसीलिए अभिषेक जमींदार प्रेमचंद के यहाँ काम करता था और वही पे रहता था। वो पढ़ा लिखा था, इसलिए उसे ज़मींदारी का हिसाब रखने को कहा था और साथ-साथ दादाजी का भी ख्याल उसे ही रखना पड़ता था और जो भी उस में से पगार  का पैसा आता था, उस में से आधा पैसा बाबा का क़र्ज़  चुकाने में जाता था और आधा वो अपनी माँ और छोटे भाई के लिए भेजता था। उसके बाबा वसीयत में अभिषेक को  सिर्फ अपना क़र्ज़  देके गए थे, जो उसे चुकाना  था । अभिषेक अपने बाबा जैसा बिलकुल नहीं था, वो  बड़ा सीधा सादा, महेनती और ईमानदार भी था। तभी तो जमींदार साहब ने ज़मींदारी के सारे हिसाब किताब उसे दे रखे थे। दादाजी कई सालो से बीमार रेहते थे। अपने बाबा का क़र्ज़ वो जल्दी  चूका सके इसीलिए वो दुगना काम करने को भी राज़ी था। मगर गरीब की किस्मत शायद गरीब ही  रहती  है। उसकी पूरी उम्र भी गुज़र जाऐ तो भी वो शायद ये क़र्ज़ न चूका सके, इतना क़र्ज़ था उसके बाबा का। मगर वो हिम्मत हारनेवालों में से नहीं था। वो बड़ी ईमानदारी से अपना काम करता रहा।  प्रेमचंद की कोई औलाद नहीं थी। दादाजी थे जो बीमार रहते थे और उनके  भाई और उसका परिवार विदेश में रेहते थे। तो वैसे भी कोई बड़ा परिवार तो था नहीं। अभिषेक ने  प्रेमचंद और दादाजी को वचन दिया था की जब तक वो अपना क़र्ज़ नहीं चुकाएगा, तब तक वो वहाँ  से नहीं जाऐगा। वैसे भी प्रेमचंद और दादाजी को भी उस से बड़ी मदद मिल जाती थी, इसलिए उन्होंने अभिषेक को अपने पास रोके रखा। मगर कभी जताया नहीं की वो लोग भी यही चाहते है। ताकि वो ईमानदारी से अपना काम करता  रहे।

         तो दोस्तों, ये थी अभिषेक की कहानी। तो क्या अभिषेक अपने बाबा का क़र्ज़ चूका पाएगा कभी ? या फ़िर  वो अपनी सारी  ज़िंदगी  प्रेमचंद और दादाजी की सेवा ही करता रहेगा ? और क्या वो इशिका की मदद कर  भी  पाऐगा  या नहीं ?                                                   

              इंतज़ार कीजिए Part- 4 का। 

                                                                  Bela... 

                     
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