डर भाग-8
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि माया अपने कमरे के बाहर निकल कर ड्राइंग रूम में घूम रही थी, इधर-उधर कुछ देखे जा रही थी, तभी उसकी नज़र अपनी और अजय की तस्वीर पर पड़ती है और उसे याद आता है, कि उस दिन वो और शबाना कॉलेज की फेयरवेल पार्टी में गए हुए थे और उन दोनों के साथ कुछ कॉलेज के दोस्तों ने बदतमीज़ी की थी, और माया उसके बाद बेहोश हो गई थी, उसके बाद क्या हुआ वो माया को शायद याद नहीं। अब आगे...
( अजय डरी हुई माया का हाथ पकड़कर उसके पास बैठ जाता है और बड़ी देर तक उसे देखता रहता है। आज भी अजय के मन में एक ही सवाल था,
अजय : " उस रात माया के साथ कया हुआ होगा ? जो वो इतनी डर गई है। जिसे वो आज तक भुला नहीं पा रही। "
और अजय उसे एक नज़र देखें जा रहा था। माया को देखते-देखते अजय की भी आँख वही लग जाती है और वो वही माया के पास ही उसका हाथ पकड़कर सो जाता है। सुबह उढ़ते ही अजय ने माया को पहली बार चैन की नींद सोते देखा। अजय ने प्यार से उसके सिर पे हाथ फेरा और धीरे से कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर निकला। आज अजय को भी शायद गहरी नींद आ गई हो ऐसा लगा, उसे भी जगने में थोड़ी देर हो गई, तब तक बाई भी आ चुकी थी, माया की वजह से घर की एक चाबी अजय ने बाई को दे रखी थी, ताकि वो किसी भी वक़्त ज़रूर पड़े तो आ जा सके।
बाई : ( अजय को देखते ही ) साहब, आज दीदी की तबियत कैसी है ? वो ठीक तो है ना ? मैंने इसलिए पूछा की रात को आप दीदी के कमरे में ही शायद सो गए थे ?
अजय : ( अजय मन ही मन, लो सुबह हो गई, अब चालू इसका चपर चपर!!! )
हाँ ठीक है। वो उठ जाऐ तो उसको तुम्हारे बाबाजी की जड़ीबूटी पीला देना और नास्ता भी करा लेना। फ़िर मुझे फ़ोन करके बता देना की माया क्या कर रही है और हो सके तो मेरे आने तक घर पे ही रहना। आज ऑफिस में शायद ज़्यादा काम नहीं हो तो में जल्दी घर चला आऊंँगा। समझ गइ ना !!अब और कोई सवाल नहीं।
( माया की ऐसी हालत की वजह से अजय उसे अकेला बहुत कम रहने देता था, जितना जल्दी हो सके वो अपना काम ख़तम कर घर जल्दी वापस लौट आता था। अजय की ज़िंदगी माया के इर्द-गिर्द ही थी, अपने बारें में उसने कभी कुछ सोचा ही नहीं, या ये कहूंँ, कि कभी सोचना चाहता ही नहीं। )
बाई : जी साहब, समझ गई। अगर ऐसी बात है तो थोड़ी देर के बाद मैं अपने मुन्ने को भी यही बुला लेती हूँ।
अजय : ( चिढ़ता हुआ, इशारे से चुप रेहने को कहा ) तुम्हें जैसा ठीक लगे।
(और अजय नास्ता करके अपने कमरे में फ्रेश होने के लिए चला जाता है। ऑफिस जाते-जाते अजय एक बार फ़िर से माया के कमरे का दरवाजा थोड़ा खोल के उसे देख लेता है। माया जैसे बहुत दिनों बाद चैन की नींद सो रही हो ऐसा उसे लगा। ये देखकर अजय के दिल में उम्मीद की किरण जगती है, कि शायद अब माया धीरे-धीरे ठीक हो ही जाएगी। अजय ऑफिस के लिए चल पड़ता है। )
( आज ऑफिस में लक्ष्मी पहले से उसका इंतज़ार कर रही थी। अजय को देखते ही वो खड़ी हो गई और साहब-साहब कहती हुई अजय के पैरो में पड जाती है।
लक्ष्मी : ( खुश होते हुए ) आपका बहुत बहुत शुक्रिया साहब।
अजय : ( अजय उसे उठाते हुए )
अब तुम कौन हो और शुक्रिया किस बात का ?
( अजय को याद नहीं आया की ये औरत कौन है और उसके साथ ये आदमी कौन है ? )
लक्ष्मी : अरे साहब, भूल गए आप मुझे ?
( अजय कुछ याद करने की कोशिश में था, इसको मैंने कही तो देखा है, मगर याद नहीं आ रहा। )
लक्ष्मी : कुछ दिन पहले ही तो मैं आई थी ना आपके पास अपने पति की फरियाद लेकर, तो आपने मुझे वो बड़ा डंडा दिया था। याद आया कुछ !!
अजय : हाँ याद आया, याद आया, लक्ष्मी !! आज तो तुम बड़ी खुश दिख रही हो। अब तो सब ठीक है ना !!!
लक्ष्मी : हाँ साहब, आपने जो डंडा दिया था ना उसी का चमत्कार है ये।
(अपने पति को साहब के पास खींचते हुए )
साहब, यही है मेरा पति बाबू, अब इसने पीना भी छोड़ दिया है और काम भी करने लगा है, आपकी ऑफिस के सामने ही मैंने इसको एक चाय की लारी दिला दी है। ये अब सुबह शाम आपको चाय पिलाएगा ।
अजय : क्यों सिर्फ मुझे ही चाय पिलओगे या बाकि सबको भी पिलओगे बाबू ?
( बाबू हाथ जोड़ते हुए )
बाबू : नहीं साहब, सबको पिलाऊंँगा ना। मैं बड़ी अच्छी चाय बनाता हूँ। लक्ष्मी ने ही तो मुझे सिखाया है।
लक्ष्मी : ( लक्ष्मी थोड़ा शरमाती है। बाबू को केहते हुए ) जाओ ना साहब के लिए चाय लेके आओ तो ज़रा ।
अजय : ( और अजय हस्ते हुए )
साथ में थोड़े पकोड़े भी लेते आना।
बाबू : जी साहब, अभी लाया।
( बोलता हुआ बाबू भागा-भागा अजय के लिए चाय और पकोड़े लेने चला जाता है। )
लक्ष्मी : साहेब, मैंने बाबू को इसीलिए यहाँ रखा है, ताकि आप इस पे नज़र भी रख सको। आप इस पे है ना नज़र रखना साहब, कुछ भी उल्टा सीधा किया न तो एक डंडा लगा देना इसके सिर पे।
अजय : (अजय हस पड़ता है। )
ठीक है तूम जाओ, फ़िक्र मत करो। मैं हूँ ना।
( लक्ष्मी अजय का शुक्रिया करते हुए चली जाती है )
( अजय ने थोड़ा काम निपटाया। वैसे भी आज अजय का ऑफिस में कुछ मन नहीं लग रहा। अजयने सोचा, अजय : " आज घर जल्दी चला जाता हूँ। "
क्योंकि अजय मन ही मन माया के बारे में ही सोच रहा था, कि माया क्या कर रही होगी ? अजय अपनी बैग और काला कोट लेकर घर की ओर चला। घर जा के वो देखता है की माया अच्छे से तैयार होके सोफ़े पे बैठी है, उसने अपने बाल भी अच्छे से बनाए हुए है और उसके हाथो में हम दोनों की तस्वीर है, वो अब एक नज़र से उस तस्वीर को सिर्फ देखे जा रही थी। जैसे वो कल की ही बात हो। अजय धीरे से उसके पास जाके बैठ गया। माया ने अजय का हाथ पकड़ा और उसके कंधे पे सिर रख के सिमट के बैठी रही जैसे वो बहुत कुछ कह रही हो। अजय ने भी उसको कुछ नहीं पूछा, अजय को पता था, कि वक़्त रेहते वो उसे सब बता देगी। अजय को सिर्फ और सिर्फ इस बात की ख़ुशी थी की वो अब धीरे-धीरे ठीक हो रही थी। इस से ज़यादा उसे और कुछ नहीं चाहिए।
बाई किचन में से ये सब देख मन ही मन खुश हो रही थी। भाई बहन का प्यार देख उसकी भी आँखों में पानी आ गए और जैसे दोनों को आशीर्वाद दे रही हो की अब दोनों फ़िर से पहले की तरह खुश रहे, बस मुझे भी और कुछ नहीं चाहिए। )
तो दोस्तों, क्या माया अपने भाई अजय को वो सब बातें बता पाएगी ? जो उसके और शबाना के साथ हुआ था।
अगला भाग क्रमशः ।।
Bela...
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