DARR part 5

                                                            डर भाग-5

         तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा कि, आज अजय ऑफिस जाने के बदले सुनीता की कॉलेज के पास चला जाता है, वहाँ अजय ने देखा कि सच में दिनेश और उसके दोस्त कॉलेज की लड़कियों को छेद रहे थे, तब अजय ने दिनेश का हाथ मरोड़ के उसे अच्छे से धमकाया और ऐसा दूसरी बार ना कर ने को कहा। अजय के पास लक्ष्मी नाम की औरत आती है, जिसका पति पिने के बाद उसे और उसकी बेटी को रोज़ मारता है, तब अजय लक्ष्मी को एक बड़ा सा डंडा देते हुए कहता है, कि अगर तेरा पति तुझे फ़िर से मारने आऐ तो तू भी उसे इसी डंडे से मारना, ताकि उसकी अक्कल ठिकाने आ जाऐ, लक्ष्मी अजय की बात मानकर वो डंडा लेके वहाँ से चली जाती है। अब आगे... 

         ( आज अजय को घर जाने में थोडी ज़्यादा  देर हो गई, अचानक उसको ख्याल आया, कहीं आज फ़िर से माया ने घर पे कोई शरारत तो नहीं की होगी ना, मुझे घर जल्दी  जाना होगा। ये सोचते हुए अजय जल्दी से घर जाने लगा। अजय दरवाजे तक जाके  रूक जाता है, उसने चुपके से देखा, तो आज माया अपने कमरे से बाहर ड्राइंग रूम में  घूम रही थी, वो धीरे-धीरे चलती हुई इधर-उधर सब देखे जा रही थी और चीज़ो को छूने की कोशिश भी कर रही थी। मगर उसके हाथ डर के रुक जाते थे, मेज़ पे अजय और उसकी तस्वीर थी। तस्वीर को देखकर वो ज़रा रुक गई । नज़दीक जाके  गौर से उस तस्वीर को देखती ही रहती है, जैसे वो कुछ याद करने की कोशिश में हो। अजय दरवाजे के पीछे खड़ा हुआ चुपके से ये सब देख़ रहा था, अजय को पता था, की अगर वो उसके सामने जाएगा तो वो फ़िर से डर के कमरे में भाग जाएगी। बाई ने भी चुपके से अजय को वही रुकने को कहा। माया को २ साल बाद पहली बार कमरे से बाहर देख अजय मुस्कुराता है और उसकी आँखे भर आति है। )

              अजय को फिर से याद आता है, 

 ( पास्ट में जाते हुए )

      ( वो लम्हा जब वो दोनों छूपम छुपाई खेल रहे थे। वही दरवाजे के पीछे अजय खड़ा था और माया भैया-भैया पुकारती हुई उसे पुरे घर में ढूंँढ रही थी। भैया को न ढूंँढ पाने पर माया ने तरकीब़ लगाई, दौड़ते-दौड़ते वो  गिर जाती है और उसके पैरो में चोट लग जाती है। और फ़िर से भैया-भैया कह कर चिल्लाने लगती है, उसकी शैतानी से अनजान अजय उसे सच में चोट लगी समझकर दौड़ा-दौड़ा उसके पास भागा आता  है और माया का पैर पकड़ कर ) 

अजय :  क्या हुआ, क्या हुआ ?

     ( माया अजय को पकड़ते हुए )

माया : पकड़ लिया भैया को 

( माया ज़ोर-ज़ोर से हसने लगती है। अजय भी उसकी शैतानी पे ज़ोरो से हस पड़ता है। हँसते  हुए दोनों एक दूसरे के पीछे भागने लगे और ठक के बैठ जाते है, दोनों की सांँसे भी फूल जाती है।) 

माया : देख लेना भैया मैं आपको हंमेशा ऐसे ही दौड़ाती रहूंँगी। 

       ( और दोनों हँस पड़ते है, उस हंसी की आवाज़ आज भी अजय के कानो में ऐसे ही गूंँज रही होती है। वो सच में वही दरवाज़े से ही माया-माया बोलते हुए ज़ोर से हँस पड़ता है। माया उसकी हँसी की आवाज़ सुनकर दौड़ती हुई अपने कमरे में चली जाती है। अपने आप को सँभालते हुए अजय ने लम्बी गहरी साँस ली और घर के अंदर जाता है। )  

बाई : आप आ गए  साहब ! आप ने देखा ना ! आज दीदी कमरे से खुद बाहर आई थी। मुझे तो लगता है, कि बाबाजी की जड़ीबूटी  का असर दीदी पे धीरे-धीरे होने लगा है। अब देख लेना साहब आप, दीदी कैसे जल्द से जल्द ठीक हो जाती है, मैंने कहा था ना आप को साहब, बाबा बड़े ज्ञानी है। सब को ठीक कर देते है अपनी जड़ीबूटी से।

        ( बाई को बिच में अपने हाथो के इशारे से बोलता रोकते हुए )

अजय : माया ने खाना खाया क्या ? 

बाई : हाँ साहब ! कब का खा लिया, मैंने दवाई भी दीदी को पीला दी है, लगता है की बस अब वो सो ही जाएगी। 

अजय : ठीक है। मेरा खाना टेबल पे रख कर तुम जा सकती हो, कल सुबह जल्दी घर आ जाना, मेरी कोर्ट में कल सुनवाई है, मुझे कल कोर्ट जल्दी जाना होगा। 

बाई : जी साहब ! जैसा आप बोले, मैं अपने मुन्ने को भी साथ लेकर ही आ आउंँगी, वो थोड़ा सा बीमार है इसलिए। वैसे मैंने उसको बाबाजी  की जड़ीबूटी तो देदी है मगर...

     ( अजय बाई को इशारे से चुप रहने को और जाने को कहता है )  

बाई : जी साहब ! जाती हूँ-जाती हूँ। 

              ( बाई बोलते हुइ चली जाती है )  

    (अजय खाना खा कर अपने कमरे में सुनीता के केस की तैयारी में लग जाता है। अपना काम ख़तम करने के बाद वो सोचता है एक बार माया को देख आता हूँ, वो सो गइ या नहीं !! अजय ने धीरे से माया के कमरे का दरवाज़ा खोला। उसने देखा, कि माया आज बिस्तर पे ऑंखें बंंद कर के सो रही थी। ये देख अजय की आँखों को थोड़ा आराम मिलता है। अजय को भी अब लग रहा था, कि  बाबाजी की जड़ीबूटी का असर माया पे हो रहा है।)

दूसरे दिन सुबह अजय जल्दी कोर्ट जाने के लिए तैयार हो गया। 

अजय : आज ये बाई अभी तक क्यों नहीं आई ? मैंने उसे बोला था,  मुझे कोर्ट जल्दी जाना है फ़िर भी... 

                     ( दूसरे ही पल बाई घर आ जाती है। ) 

बाई : जी साहब, रास्ते में वो बस नहीं मिल रही थी और मेरा मुन्ना भी रो रहा था इसलिऐ ज़रा.... 

                        ( बाई को बिच में रोकते हुए )

अजय : ठीक है, ठीक है, मुझे आज कोर्ट जल्दी जाना है, तुम माया को नास्ता करा देना और उसका ख्याल रखना। मैं जा रहा हूँ। 

बाई : वो तो मैं रखूंँगी, मगर आपका नास्ता

 ( बाई को बिच में इशारे से रोकते हुए )  मैं नास्ता बाहर ही कर लूँगा। 

       ( अजय अपने आप से, ऊफ्फ कितना बोलती है बाई तू। )

       ( अजय जल्दी-जल्दी में घर से बाहर चला जाता है।) 

          तो दोस्तों, अब आप बताइए,  क्या बाबाजी की जड़ीबूटी से माया धीरे-धीरे ठीक हो पाएगी या नहीं ? और क्या कोर्ट में अजय सुनीता को इंसाफ  दिला पाएगा या नहीं ?

                         अगला भाग क्रमशः  ।।

                                                                                                                                                                                                      Bela...

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