डर भाग-4
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि आज माया अपने कमरे की खिड़की खोले हुई थी और उसमें से सूरज की किरण कमरे के अंदर आ रही थी। अजयने आज अपनी बहन माया के लिए पास्ता भी बनाया, पास्ता बनाते वक़्त उसे पहले की बात भी याद आ जाती है, हस्ती-खेलती लड़की आज चुप-चाप सी हो गई है। अजय और माया उनके माँ-पापा की मौत के बाद अनाथालय में पले बड़े हुए है, उनका इस दुनिया में एक दूसरे के आलावा कोई नहीं। बाई अच्छी है जो सारा घर संभल लेती है। अब आगे...
( अजय घर से ऑफिस की ओर जाने के लिए निकलता है, रास्ते में उसने रामलाल और सुनीता के बारे में सोचा। ऑफिस जाने की जगह वो सुनीता की कॉलेज चला जाता है, वहा क्या हो रहा है देखने के लिए और वहाँ अजय ने वही सब देखा जैसा रामलाल और सुनीता ने बताया था। कॉलेज के बाहर ही एक लड़का और उसके दोस्त आति-जाती हर लड़की को परेशान कर रहे थे। अजय की समज में आ गया की यही दिनेश होगा। वो एक लड़की का दुपट्टा खींचे जा रहा था और लड़की गभरा रही थी। अजय ये सब चुपके से देख रहा था। अब उससे ये सब देखा नहीं गया। अजय उसी वक़्त दिनेश के सामने जाके खड़ा हो गया और उसके हाथ से दुपट्टा छीन के उस लड़की को दे देता है। फिर इशारे से लड़की को अंदर जाने को कहता है। लड़की भागी-भागी अपना दुपट्टा लेकर अंदर चली जाती है।
अजय : ( अपना मुँह दिनेश की और घूमाते हुए )
क्यों परेशान करते रहते हो इन लड़कियों को ? तुम यहाँ पढ़ने आते हो या लड़कियों को छेड़ने, ख़ामख़ा अपना और सब का वक़्त क्यों बर्बाद करते हो ?
( अजय ने पहले तो समजाने की कोशिश की )
दिनेश : ( पलटकर जवाब देते हुए ) तुम यहाँ नये आऐ लगते हो मुझे, तुम्हें पता नहीं मैं कौन हूँ ? और मैं यहाँ क्या करता हूँ, इस से तुम को क्या ? आज तो तुम को जाने देता हूँ, पर आगे से मुझसे पंगा मत लेना, समझे ?
( बोलते हुए दिनेश ने अजय को धक्का लगाया और अपनी ऊँगली दिखाते हुए ) चल भाग यहाँ से....
अजय : ( अजय ने उसकी ऊँगली पकड़ते हुए उसका पूरा हाथ ही मोड़ दिया और गुस्से से कहा ) मैं तुम को नहीं जानता तो तुम भी मुझे नहीं जानते बच्चे, मैं इसी जंगल का राजा हूँ, जिस जंगल में तुम रहते हो, समझे ? आज से मेरी नज़र हर वक़्त तुम पे ही रहेगी, आज के बाद कभी किसी लड़की को छेड़ा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। इस जंगल से बाहर निकाल दूँगा तुझे और भूल जाओगे अपनी ये हीरोगिरी, याद रखना मेरी बात।
( दिनेश को अपने हाथ से ज़रा सा धक्का देकर अजय वहाँ से जाने लगता है। ( दिनेश उस को जाते देखता रहता है )
( अजय दिनेश को अच्छे से धमकाने के बाद अपने ऑफिस जाके अपनी बैग और कोट टेबल पे रखकर पानी पिने जाता है, कि पीछे से आवाज़ आई। एक औरत चिल्लाते हुए आति है और अजय के पैरो में पड़ के )
लक्ष्मी : साहब, साहब मुझे बचा लीजिए, मेरी रक्षा कीजिऐ, या मुझे जेल में ही डाल दीजिऐ, वर्ना आज तो मेरा वो पियक्कड़ पति मुझे मार ही डालेगा, साहब मुझे बचा लीजिऐ,
(अजय ने लक्ष्मी को खड़ाकर के कुर्सी पे बिठाया और उसे पानी दिया )
अजय : अब बताओ तुम्हारा नाम क्या है और हुआ क्या ? तभी मैं तुम्हारी मदद कर सकूंँगा।
लक्ष्मी : ( रोते हुए ) साहब, मेरा नाम लक्ष्मी है और मैं पीछे वाली बस्ती में अपने पति और अपनी एक छोटी सी लड़की के साथ रहती हूँ। मैं पूरा दिन काम करके पैसा कमाती हूँ और वो मेरा पति पूरा दिन कुछ काम नहीं करता और दोस्तों के साथ इधर-उधर भटकता रहता है। रात को दारू पीके आता है और मुझे और मेरी बेटी दोनों को मारता है, मेरी पूरी दिनभर की कमाई भी लेकर चला जाता है। अब तो ये रोज़ का हो गया है साहब, मैं क्या करू ? मैंने आपका बहुत नाम सुना है, आप सच का साथ देते हो और गुनेगार को कड़ी से कड़ी सज़ा भी दिलवाते हो। इसलिए मैं सब से पहले सीधे आपके पास ही चली आई। अब आप ही बताओ साहब!!! क्या करे ?
अजय : अपने पियक्कड़ पति को छोड़ दो और अपनी बेटी को लेकर कहीं और चली जाओ।
लक्ष्मी : ये कैसी बात कर रहे हो साहब, ऐसा कैसे कर सकती हूँ मैं, कहाँ जाउंँगी मैं ?
अजय : ( एक डंडा लिया और सीधा लक्ष्मी के हाथ में पकड़ाकर )
ये डंडा अपने साथ घर लेकर जाओ और रात को तेरा पति तुझे मारने को आए तो इसी डंडे से उसे मारना।
लक्ष्मी : हाय रे ! साहब ये भला मैं कैसे उसके साथ कर सकती हूँ, वो मेरा पति है।
अजय : तो क्या हुआ ? तुम उसकी पत्नी होके उसका मार खा सकती हो तो क्या वो तुम्हारा पति होके तुम्हारा मार नहीं खा सकता हैं ? तूने क्या उस से मार खाने के लिए शादी की है ? तुम्हारी बेटी भी ये सब देख रही है, तो क्या वो भी तेरी तरह पूरी ज़िंदगी मार खाती रहेगी ? कभी सोचा है उसके बारे में भी ?
लक्ष्मी : नहीं साहब, फिर भी !!!
अजय : और उसे ये भी बोल दो के अगर घर में आना है, तो पैसा कमाकर लाए तो ही खाना मिलेगा, वरना नहीं और एक हफ्ते के लिए उसे घर से निकाल दो। तभी वो जाके सीधा होगा। कहाँ जाएगा ? घूम फिर के वापस तेरे पास ही आएगा। उसे तेरे अलावा ओर कोई नहीं रखेगा। आई कुछ बात समज में ? अब सब कुछ तेरे ही हाथों में है समजले !
( लक्ष्मी को जैसे हिम्मत आई हो, वो डंडा लेके खड़ी हुई, जैसे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई )
लक्ष्मी : जी साहब, ( डंडा हाथ में लेते हुए ) अब मैं वैसा ही करुँगी जैसा आपने कहा, अब देखो मैं उस लफंगे को कैसे ठीक करती हूँ ! आने दो उसे आज रात घर पे ।
(अजय उसकी नादानी और किस्मत पे थोड़ा हँसता है, बेचारी लक्ष्मी ! और अजय फ़िर से अपनी फाइल समेत के कुछ पढ़ने लगता है। )
तो दोस्तों, अब आप ही बताइए कि क्या अजय की धमकी से दिनेश डर कर लड़कीयों को छेड़ना बंद कर देगा ? और क्या लक्ष्मी का पति सुधर जाएगा ?
अगला भाग क्रमशः ।।
Bela...
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