DARR part 3

                                 डर भाग-3

          तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि अजय बार-बार सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी बहन के बारे में ही सोचा करता है।अजय के ऑफिस जाते ही वहांँ सुनीता और उसके बाबा अजय से मिलने आऐ हुए थे, क्योंकि कॉलेज के लड़कोंने  सुनीता से बदला लेने के लिए सुनीता के चेहरे पे एसिड दाल के उसका चेहरा जला दिया था, अब सुनीता और उसके बाबा इंसाफ  के लिए अजय के पास आऐ हुए थे और अजय को सारी बात बताते है, अब आगे....  

      

           शाम होने ही वाली थी। अजय अपनी बैग और अपना काला कोट लेकर घर जाने की जल्दी में था। पुरे रास्ते में अब भी अजय माया के बारे में ही सोचता रहा। 

         घर पहुँचकर सबसे पहले उसने धीरे से माया के कमरे का  दरवाज़ा खोला। उसने कमरे में देखा तो माया चुपके से खुली आँखों से बिस्तर के नीचे से एक नज़र देखे जा रही थी। जैसे कहीं वो घूम हो। अजय ने ये देखकर धीरे से दरवाज़ा बंद कर दिया। फ़िर फ्रेश होकर अजय खाना खाने बैठा। 

अजय : ( बाई को पूछते हुए ) माया ने खाना खाया क्या ? 

                   ( बाई थोड़ा डरते-डरते बोली )

बाई : जी साहब, मैं जैसे ही खाना लेकर अंदर गई तो दीदी मुझ पे ही सारी चीज़े फ़ेकने लगी और चिल्लाने लगी। मैंने डर कर दरवाज़ा बंद कर दिया और खाना अंदर ही कोने में रख दिया था। अब पता नहीं की उसने...

        ( बाई बोलते-बोलते रुक गई। अजय को ज़्यादा बातें करना पसंद नहीं था, इसलिए अजय ने इशारे से उसे चुप रहने को कहा और )

अजय : तुम जा सकती हो अब। कल सुबह आ जाना।

            ( बाई नमस्ते करते हुए वहाँ से चली गई।  )

      ( अजय ने पहले माया  के कमरे में चुपके से देखा, कि माया ने खाना खाया की नहीं, माया ने खाना खाया तो था मगर खाते-खाते बहुत सारा खाना गिराया भी था, अजय ने खाने की प्लेट कमरे में से ले ली और चुपचाप  वहांँ की थोड़ी सफाई भी कर दी। )

         ( अजय का मन नहीं किया खाने का, इसीलिए सारा खाना फ्रिज में रखकर वो सोने चला गया। मगर उसकी आँखों में अब नींद कहाँ ? उसके दिमाग में जैसे कुछ तूफ़ान सा चल रहा था। सोने की कोशिश में वो जग रहा था.... कभी इधर तो कभी उधर.. और देखते ही देखते सुबह हो गई। जल्दी से उठकर वो सबसे पहले माया के पास गया और धीरे से दरवाज़ा थोड़ा खोलकर अंदर एक नज़र माया को देखने की कोशिश की। उसने कमरे में देखा तो उसकी आंँखें ख़ुशी से भर आई, जो इन दो सालों में नहीं देखा उसने आज देखा। माया के कमरे में आज बहुत अँधेरा भी नहीं था, उसने देखा, कि  माया के कमरे की खिड़की थोड़ी सी खुली हुई थी और खिड़की में से सूरज की किरण दरवाज़े तक आ रही थी और चुपके से माया बाहर की और सूरज को देख रही थी। मगर माया ने जैसे ही देखा की कोई है, तो उसने धड़ाम से खिड़की का दरवाज़ा बंद  कीया और भाग के बिस्तर के निचे जाके  छुप गई। जैसे वो अपने प्यारे भाई को भी नहीं पहचानती हो। माया की ये नादानी देख़, पहली बार अजय मन ही मन थोड़ा मुस्कुराया और दरवाजा बंद करके किचन में नास्ता बनाने गया। उसने सोचा माया के लिए आज मैं  खुद नास्ता बनाऊँगा। उसने बाई को इशारे से बाहर जाने को कहा और खुद ही माया के लिए पास्ता बनाने लगा। उसे पता था, कि माया को पास्ता बेहद पसंद है। )



बाई : साहब रुकिए ना, ये क्या कर रहे है आप ? मुझे बोलिए ना क्या बनाना है, मैं बना देती हूँ !!

          ( बाई को बिच में ही रोकते हुए आंँखें और हाथ के इशारे से वही रुकने को कहा। बाई को भी पता था, कि अजय थोड़ा गुस्सेवाला है और माया की ऐसी हालत के बाद वो अपने आप से ही जैसे नाराज़ रहता हो, इसलिए हर वक़्त अजय का गुस्सा उसकी नाक पर ही रहता है। इसलिए बाई डर के चुपचाप दूर खड़ी रही। )

          ( अजय को पास्ता बनाते-बनाते याद आ रहा था, कि माया हंमेशा पास्ता मेरे ही हाथों का बनाया हुआ खाती थी, उसे मेरे हाथों का बना पास्ता बेहद पसंद आता था।  )

                              ( पास्ट में जाते हुए )

अजय : माया तुम समझती क्यों नहीं हो, मुझे ऑफिस जाने को देरी हो रही है और तुम ज़िद्द पकडे बैठी हो, कि पास्ता मेरे ही हाथों से बनाया हुआ खाना है। बाई को बोल देना वो बना देगी तुम्हारे लिए पास्ता। बाई भी तो पास्ता अच्छा ही बनाती है। 

माया : नहीं नहीं नहीं, मुझे आपके हाथ का बना पास्ता खाना है, चाहे कुछ भी हो जाए.. प्लीज  भैया प्लीज प्लीज ... मेरे लिए !!

      ( और उसकी भोली सूरत देख मैं उसे मना भी नहीं कर सकता था। )

अजय : ( मन ही मन बोला, मुझे माया के लिए पास्ता बनाना ही पड़ेगा, तभी माया मुझे ऑफिस जाने देगी। )

             और अजय फटाफट पास्ता बनाने लगा। 

       ( माया अजय को पास्ता बनाते देख मन ही मन मुस्कुराया करती थी और अजय चुपके से माया को  मुस्कुराता देख खुश होता था। थोड़ी देर बाद माया को पास्ता की डिश उसके हाथों में पकड़ाते हुए  )

अजय :  ( अपनी बैग और काला कोट लेकर) 

        लो तुम्हारा पास्ता बन गया और अब मैं चला ऑफिस। मुझे  इजाज़त देगी महारानी साहिबा ? ( मस्ती करते हुए)

माया : इजाज़त है, महारानी खुश हुई तुमसे, तुम जा सकते हो और

                      ( हस्ते हुए बोली) 

शाम को घर आते वक़्त मेरे लिए आइसक्रीम ज़रूर लेते आना, मेरे प्यारे भैया, please । 


अजय : जी ज़रूर।  ( मन ही मन बोला ) 

" अब कोई दूसरी फरमाइश हो उससे पहले मैं यहाँ से निकल जाता हूँ। "

( और अजय  घर से बाहर निकला ही था की फ़िर से माया ने पीछे से आवाज़ लगाई )

 भैया.... रुको तो.... 

            ( और अजय के हाथ से चम्मच  निचे गिर गया। 

       चम्मच की आवाज़ से अजय को होंश आया की आज भी वो उसके लिए पास्ता बना रहा है लेकिन ज़िद्द करने वाली वो बहन कहीं खो गई है।)

         (अजय ने पास्ता प्लेट में लिया और माया के कमरे की ओर चला। जैसे उसे लगा की आज माया कोई शैतानी नहीं करेगी। )

          ( जैसे ही अजय दरवाज़ा खोल के अंदर गया तो माया ने अपने हाथों से  गुड़िया उसके सिर पे दे मारी। अजय को लगी भी, पर वो संभल गया। क्योंकि ऐसा एकबार नहीं, बल्कि कई बार हुआ था। अब अजय को इन सब की जैसे आदत सी हो गई थी। ) 

उसने पास्ता की प्लेट माया के सामने रखी और इशारे से खाने को बोला । माया ने झपटकर प्लेट ली और उल्टा मुँह करके थोड़ी गभराहट में और जल्दी-जल्दी में खाने लगी और बिच-बिच में अजय को मूड-मूड के देखा भी करती थी। अजय भी उसे देख रहा था खाते हुए। जल्दी-जल्दी में माया थोड़ा पास्ता निचे भी गिरा रही थी, इस पे भी अजय को उस पे प्यार ही आ रहा था। 

     ( अजयने माया की खाली प्लेट किचन में रखी और बाई को कहा )

अजय : माया सो जाए तो उसके के कमरे की सफ़ाई कर देना। मैंने उसे दवाई भी पीला दी है। मुझे जाना है, मैं जल्दी में हूँ। 

बाई : जी साहब, आप चिंता मत करना, हो जाएगा सब। 

        ( अजय और माया का इस दुनिया में और कोई नहीं था। अजय के माँ-बाबा जब अजय १५ साल का था और माया तक़रीबन १२ साल की होगी, तभी एक कार एक्सीडेंट में मारे गए। अजय के चाचा ने अजय और माया  दोनों को अनाथालय में भेज दिया, क्योंकि उनके पास भी इतना पैसा नहीं था, कि अपने दो बच्चों के होते हुए दूसरे दो बच्चों  की ज़िम्मेदारी उठा सके और दोनों को पढ़ा सके। अजयने अपनी पढाई अनाथालय से ही पूरी की, फ़िर बाद में अजय जैसे-जैसे पैसा कमाता गया, वैसे ही उसने अपने लिए घर खरीद लिया और अपनी बहन माया को लेकर अपने नए घर में रहने चला गया।  तभी  बाई को  सारा काम करने की लिए ऱख लिया था, बाई तभी से उनके घर आती थी। बाई अजय और माया दोनों का और घर का भी अच्छे से ख्याल भी रखती है। 

      ( माया को नास्ता कराके अजय घर से अपनी बैग और काला कोट लेकर ऑफिस के लिए निकल जाता है। )

        तो दोस्तों, अब माया धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी या नहीं  ? 

                          अगला भाग क्रमशः  ।।

                                                                                                                                                                                                        Bela...

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