DARR - Part 2

                                  डर भाग-2

        तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि माया अपने साथ हुए उस हादसे के बाद अब तक उस में से बाहर नहीं निकल पाई, थोड़ी सी आहत से भी वह डर सी जाती है। अपने आप को जैसे उसने एक चार दीवार के कमरे में बंद कर के रखा है, माया का भाई अजय उसे देख के दिन रात परेशान रहता है, जो एक वकील भी है। अब आगे... 

          अजय इन्हीं  सब कश्मकश में ऑफिस जाके अपनी chair पे बैठता है। वहाँ उसके सामने की कुर्सी  पे एक लड़की अपना मुँह छुपाए अपने बाबा के साथ खड़ी थी। वह रो भी रही थी। अजय को उसके आधे ढके हुए चेहरे से पता चलता था, कि उसका चेहरा शायद जला हुआ था। फिर अजय ने उनको इशारे से अपने पास आके बैठने को कहा। वो दोनों डरते-डरते अजय के पास आके बैठ गए। 

अजय : तुम लोग इतना डर क्यों रहे हो ? यहाँ डरने की कोई ज़रुरत नहीं है। मैं हूँ ना, पहले आप बताइए की आपका और आपकी बेटी का नाम क्या है ? 

रामलाल : जी मेरा नाम रामलाल है और यह मेरी एकलौती बेटी सुनीता है। 

अजय : आपके साथ यह सब क्या, कब और कैसे हुआ ?

      ( वो लड़की तो रोती ही जा रही थी, उसके बाबा ने धीरे-धीरे बात करने की कोशिश की। ) 

रामलाल : साहब, जी हम तो ठहरे गरीब इंसान, हमारी क्या औकात की हम किसीके सामने कुछ कहे। भगवान् भी जैसे रूठे हुए है हमसे, वो भी हम गरीब का साथ नहीं देते और झुल्म करने वाले हम पे झुल्म करते रहते है। 

अजय : हाँ लेकिन हुआ क्या है ? यह तो बताइए !

रामलाल : मेरी लड़की को पढ़ना बहुत अच्छा लगता था, मेरे मना करने के बावजूद भी उसने जिद़ करके कॉलेज में दाखिला लिया। सुनीता मुझ से कहती थी, कि " मुझे डॉक्टर बनना है।" मुझे जिस बात का डर था वही हुआ। आप तो जानते ही होंगे, आज कल के जवान छोरों को!! अच्छी भली लड़की को परेशान करने का मौका नहीं छोड़ते है। पहले तो ये बहुत खुश होकर कॉलेज जाती थी, और आती थी। पढाई भी अच्छी चल रही थी। मगर कुछ दिनों से कॉलेज में गाँव के ज़मीनदार का बेटा और उसके दोस्त आते-जाते सबको तंग किया करते थे। कभी गन्दी-गन्दी बातें बोलते तो कभी उनका दुपट्टा ही खिंच लेते थे।  सुनीता की दोस्त के साथ भी ऐसा ही करते थे, पढाई करते नहीं और दुसरो को करने नहीं देते। कक्षा में भी कुछ न कुछ शैतानी किया करते थे, सब लड़कीयांँ परेशान है उससे। कभी उनकी चोटी खींचते, तो कभी किताब ले लेते थे । कभी-कभी तो लड़कियों के शौचालय तक पहुंँच जाते थे। 

अजय : ( ये सुनकर अजय को जैसे गुस्सा आया हो और उसने अपने हाथों में पकड़ी हुई पेन भी तोड़ डाली। फ़िर  थोड़ा संभलते हुए उसने कहा ) 

      तो क्या कोई कॉलेज के अध्यापक से शिकायत नहीं करता कभी ?

रामलाल : की है सरकार, सबने बहुत बार शिकायत की। मगर अध्यापक  बेचारा क्या करता ? वो उसके एहसान तले दबा हुआ है। उस लड़के के बाबा हर साल चंदा जो देते है कॉलेज को और ऊपर से सारे कॉलेज की मरम्मत भी करवाई। अध्यापक ने उसके पिताजी को कॉलेज बुलाया था एकबार।  तो वो तो ठेहरे गाँव के ज़मीनदार, तो उन्होंने अपने बेटे को अध्यापक के सामने सिर्फ " दुबारा ऐसी  गलती नहीं होनी चाहिए, "  ऐसा कह के मूछों पे ताव लगा कर चल दिए वहाँ से। 

अजय : (थोड़ा आक्रोश हुए ) ओह , तो ये बात है। ये अमीर ज़ादे पता नहीं अपने आप को क्या समझते है ? नाम क्या है उस लड़के का ?

रामलाल : उसका नाम दिनेश है। इतना सब कुछ होने के बाद भी मेरी सुनीताने मुझे कुछ नहीं बताया, क्योंकि वो जानती थी, कि अगर वो मुझे पहले ये सब बता देती तो मैं उसे कॉलेज जाने से रोक लेता और उसकी शादी किसी अच्छे घर में करवा देता। मगर एक दिन वो छुपके से रोती हुई मुझे नज़र आई, मैंने देख लिया, कि वो चद्दर में अपना मुँह छुपाए रो रही थी, मैंने सोचा उसकी माँ नहीं है तो क्या हुआ, मैं तो हूँ। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उससे पूछा, कि " क्या हुआ ? रो क्यों रही हो भला ? " मेरे बहुत पूछने पर उसने बताया। 

सुनीता :  ( सुनीता रोते रोते सारी बात बताने लगी )

                   ( पास्ट में जाते हुए )

       आज तो दिनेश ने शैतानी की सारी हद ही पार कर दी। उसने सारी कॉलेज के सामने मेरी सहेली का दुपट्टा और किताब खींच ली और उसे बिना चुनर ओढ़े सारी कॉलेज के तीन बार चक्कर लगाने को कहा। किसीने रोका नहीं, टोका नहीं, किसीके पास उससे टकराने की हिम्मत नहीं थी। उसने दो चक्कर लगा लिए, मुझसे ये देखा नहीं जाता था। दूसरे सभी सिर झुकाकर ये तमाशा देखे जा रहे थे। फ़िर मैंने हिम्मत कर मेरी सहेली का हाथ पकड़ा और उसे उसकी चुनर ओढ़ाते हुए मैंने दिनेश से कहा, " तू जैसे हम सब के साथ कर रहा है ऐसे कल को अगर तेरी बहन या माँ के साथ होगा तब तुझे पता चलेगा " और हम वहाँ से चलने लगे, तभी दिनेश ने पीछे से आवाज़ लगाकर हमको बोला,

दिनेश : अपने दोस्त से याराना तुझपे बहुत भारी पड़ेगा देख लेना। छम्मकछल्लो....

सुनीता : मैंने दिनेश की बात को अनदेखा किया, मुँह फेरकर वहाँ से अपनी सहेली को लेकर चल दी। अपनी सहेली को मैंने उसके घर छोड़ दिया और बाद में मैं अपने घर आ गई। मगर अब मुझे दिनेश से बहुत डर लग लगने लगा, क्योंकि उसने धमकी दी है मुझे, तो वो कुछ भी कर सकता है। 

रामलाल : मैंने तो पहले ही कहा था कॉलेज मत जा, मगर तू कहा सुनती है, तूने जो कुछ भी किया उससे बहुत खुश हूँ। तूने हिम्मत तो दिखाई। ऐसा करना बेटी, की कुछ दिन अब तुम कॉलेज मत जाना, ताकि वो ये सब बाते भूल जाए, उतने दिन तू दुकान में मेरा हाथ भी बटा देना। मुझे भी अच्छा लगेगा और तुझे भी। 

        ( सुनीताने अपने बाबा की बात मान ली और कुछ दिन वो कॉलेज नहीं गई और अपने बाबा के साथ दुकान जाने लगी। कुछ दिन बाद उसे लगा की अब सब ठीक हो गया होगा। दिनेश को कुछ याद नहीं होगा। )

सुनीता : (अपने बाबा से बात करते हुए) कब तक यूँ ही घर से दुकान और दुकान से घर जाती रहूंँगी। ऐसे तो मेरा डॉक्टर बनने का सपना कभी सच नहीं होगा। मुझे फ़िर  से कॉलेज जाना है बाबा। प्लीझ, प्लीझ, बाबा।  

रामलाल : ठीक है बेटा, अगर तेरी यही मर्ज़ी है तो यही सही मगर तू उस लफंगे से उलज़ना ही मत, वरना वो तुझे फिर से परेशान करेंगे। 

सुनीता : जी बाबा, मैं अब अपनी पढाई पे ही ध्यान दूँगी। और कही नहीं। 

       (और झुककर सुनीता ने अपने बाबा का आशीर्वाद लिया और कॉलेज की ओर जाने लगी। )

       ( सुनीता बस स्टॉप की ओर खड़ी बस का इंतज़ार कर रही थी, पीछे से मोटरसाइकल पे दो लड़के हाथ में तेज़ाब की बोतल लिए उसकी ओर बढे़ और पूरी तेज़ाब की बोतल सुनीता के चेहरे पे डालकर चल बने, उन दोनों लड़कों का चेहरा ढका हुआ था, इसीलिए कोई भी उनका चेहरा देख नहीं पाया, मगर सुनीताने उसके हाथों में पहनी हैंड बैंड से पहचान लिया की ये वही दरिंदे है। सुनीता चीख़कर ज़मीन पर गीर पड़ी, रोने चिल्लाने लगी। पास में खड़े कुछ लोगो ने रिक्क्षा में बिठाकर सुनीता को  अस्पताल ले गए, बाद में मुझे बुलाया।

       मैं क्या करू साहब अब ? हम गरीब कहाँ जाए ? किससे कहे ? हमारी फरियाद कौन सुनेगा ? क्या हमारी लडकियांँ कभी खुले में घूम नहीं सकती ? बिना डरे कही भी आ-जा नहीं सकती ? क्या लड़कियों को हमेंशा डर-डर के ही जीना होगा साहब ? बताइए साहब, क्या करे हम ? हमने आपका बहुत नाम सुना है, इसीलिए तो मदद के लिए सीधे आपके पास आए है। 

अजय : ( रामलाल की बात सुनते ही अजय को एकदम गुस्सा आ गया, अजय  अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया और उसने ज़ोर से अपने टेबल पे मुक्का लगाया। टेबल की सारी चीज़ें फाइल, पेन, पानी का ग्लास, फ़ोन सब उछलकर निचे गिर गया। )               

         ( अजय का गुस्सा देख रामलाल और सुनीता थोड़ा डर गए और कुर्सी से खड़े हो गए। अजय ने अपना मुँह दिवार की ओर कर दिया और कहा, जब तक ज़ुल्म  सहते रहेंगे, तब तक जुल्म करनेवाले की हिम्मत बढ़ती  ही जाएगी क्योंकि ज़ुल्म को रोकने वाला कोई है ही नहीं, मगर अब बहुत हुआ, अब बस और नहीं, अब ये अजय प्रताप खुद न्याय करेगा, अगर कोर्ट ने फैसला गलत सुनाया, तो इस बार अजय प्रताप की अदालत में न्याय होगा... जो कोई भुला न सकेगा। आप निश्चिंत होके अपने घर जाइए और अपनी बेटी का अच्छे अस्पताल में इलाज शुरू कीजिए, पैसो की चिंता मत करना, वो मैं संभाल लूंँगा। 

         ( रामलाल की आँखों में आस बंधी की इस बार हमें इन्साफ ज़रूर मिलेगा और उन दरिंदो को सजा ज़रूर मिलेगी। रामलालने जाते-जाते अजय प्रताप को बहुत  सारा आशीर्वाद दिया और वहाँ से अपनी बेटी सुनीता को लेकर जाने लगे। )

अजय : (अपनी बहन को याद करके मन ही मन कहता है ) न जाने और भी कितनी लड़कियाँ होंगी जो इन सब चीज़ों का शिकार होती आ रही है, जैसे वो लड़की नही कोई चीज़ हो जैसे सब ने इस्तेमाल किया और फ़ेंक दिया। मगर अब बस बहुत हुआ, अब ऐसा मैं कुछ भी होने नहीं दूंँगा... अजय की आँखों में जैसे एक आग थी, जैसे उसके माथे पर एक जूनून सवार था। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो रही थी। 

         तो दोस्तों, अब अजय क्या करनेवाला है ? उसने क्या सोचा उस लड़की को इन्साफ दिलाने के बारे में ? कया आप मुझे बता सकते है ?



अगला भाग क्रमशः  ।। 

                                                                                                                                                       Bela...

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