DARR PART-1

                                डर भाग-1

         ( दरवाजा़ अंदर से बंद था मग़र फ़िर भी जैसे कुछ धड़ाम से गिरने की आवाज़ आई हो। अजय थोड़ा गभराया, भागा-भागा माया के कमरे के पास जा पहुँचा। दरवाजे तक जाकर वो थोड़ा सा रुका और दरवाजे पे कान लगाकर अंदर क्या हो रहा है ? ये सुनने की कोशिश कि, मगर कुछ सुनाई नहीं दिया। फ़िर अजयने धीरे से माया के कमरे का दरवाजा़ खोला, फिर से अजय मन ही मन माया को देखकर रो पड़ा। )

          अजयने देखा, कि  " पूरा कमरा बिख़रा पडा था, उसका बिस्तर भी बिख़रा पडा था, चद्दर भी फट गई थी, कपड़े भी सारे इधर-उधर बिखरें पड़े थे, अलमारी का दरवाज़ा भी बस ऐसे ही आधा खुला हुआ था, अंधेरे कोने में छुपके, डरी हुई, सेहमी हुई, अपने आप को अपने ही हाथो में समेटे हुए बिस्तर के नीचे छूपी हुई थी उसकी अपनी बहन माया। उसके लंबे, घने, रेशमी बाल बिखरे हुए थे, वो बहुत कुछ बोलना चाहती थी, मगर बोल नहीं पाती थी, उसकी आँखें बहुत कुछ कह रही थी। अब तो आँखों के आँसु भी सुख गए थे। ना तो वो सो पाती थी, ना तो वो जग पाती थी, नाहीं वो रोती थी, नाहीं वो मुस्कराती थी, खाने-पीने का कोई होंश ना था उसे, बस खुली आँखों से फरियाद कीऐ जा रही थी जैसे, " 

         मायाकी ये खामोशी अजय से बरदाशत नहीं होती थी। अजयने धीरे से उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और  उसे इशारे से बाहर आने को बोला। वो और भी डर गई और सिर्फ़ एक ही बात बोले जा रही थी, " मुझे छूना मत, मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो " और मुझे धक्का देकर ईधर-उधर भागने लगती। 

        तब अजय को महसूस हुआ, कि कितना बुरा लगता होगा एक लड़की को उसकी मर्जी के बिना किसी का छूना। वो कितना तड़प रही होगी, वो कितना चिखी और चिल्लाई होगी, मगर किसी ने उसकी न सुनी, पता नहीं क्या हुआ होगा उसके साथ और किसने किया होगा ? 2 साल हो गए इस बात को मगर उसकी तबियत में कुछ सुधार नहीं आया। जैसे उसके साथ कल ही वो हादसा हुआ हो, और वो उस डर के साथ अब भी जी रही हो, अब तो अजय से देखा भी नहीं जाता उसका ये डर... 


 अजय : ( दिन रात यही सोचता रहता ) कि 

     " क्या करू जिससे की माया ठीक हो जाए, एक वकील होते हुए भी मैं बेबस और मजबूर हूँ, कुछ भी नहीं कर सका मैं, बस हाथ पर हाथ धरे रोज़ देखता हूँ उसे, कि कब वो ठीक हो जाए और कब वो मुझे सारी बात बता सके। " 

         माया के कमरे का दरवाजा बंद करके अजय fresh होकर अपने काम पे निकल गया, ( अजय मन ही मन सोचता है )

 अजय : अपना काला कोट तो मैंने पहन लिया मगर इन्साफ कैसे और किसको  मिलेगा ये  पता नहीं था। अगर मैं जज होता तो ऐसे लोगो को सजा नहीं बल्कि सबके सामने चौराहे पे उसी वक़्त फांसी लगा देता। ताकि कोई दूसरा कोई ऐसा करने की जूररत भी न कर पाए, सोचने से भी डरे, चाहे वो कोई भी हो। 

         वो सोचता रहा और वहाँ उसका ऑफिस आ गया। मगर दिल में अभी भी उसके एक तूफ़ान सा चल रहा था, वही लम्हा अजय की आँखों के सामने बार बार आ रहा था। 

       " जब किसीने आधी रात को  घर की डोरबेल बजाई थी, तब जब मैंने घर का दरवाज़ा खोला तब माया बेहोश हालत में फटे कपड़ों में घर के बाहर एक ज़िंदा लाश की तरह पड़ी हुई थी, उस वक़्त अजय के पैरों के निचे से तो ज़मीन ही सरक गयी थी। मगर घर के बाहर माया के आलावा और कोई नहीं था, पता नहीं किस ने दरवाज़े की डोरबेल बजाई होगी ? और कौन उसे घर के दरवाज़े तक ऐसे ही छोड़ के चला गया ?

         " वो भयानक, तूफानी काली रात ऊपर से भरी बरसात, उसपे क्या बीती होगी ये सोच के अजय के तो रौगंटे ही खड़े हो जाते है। दिल से एक आह निकल जाती है। अगर अजय कभी वो रात भूल नहीं सकता तो माया  कैसे भूल सकेगी, वो कैसे बाहर निकल पाएगी इन सबसे ? "

          तो दोस्तों, कया अजय को इन २ साल में कुछ पता चला होगा, कि उसकी बहन माया के साथ उस रात क्या हुआ था ? और क्या उसकी बहन कभी ठीक होगी भी या नहीं ? आप इस बारे में क्या सोचते है ? 

             अगला भाग क्रमशः  ।।

                                                                                    Bela... 

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Comments

  1. Ha maya thik ho sakti he agar wo khud thodi himmat kare or use koi asa apna mile jo uska dard samje or bhot sara pyar or care de👏👏🥰🙏

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