INTEZAAR

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भरी महफ़िल में भी तनहा थे हम, मौज़ मस्ती, खाना पीना सब था, मगर आँखों को जैसे किसीका इंतज़ार था, दिल ये  कहता बार बार न जाने कब ये इंतज़ार ख़तम होगा, और सामने से लो आ गई  खुशियां, आखिर आ ही गई मेरी प्यारी सी " माँ " !!

भाग के जैसे में पहोची उसके पास, पीछे से ज़ोर से आवाज़ आई, लो टूट गया सपना, मेरी चाय, मेरी कॉफ़ी, मेरा ब्रेकफास्ट, मेरा चश्मा, मेरा मोबाइल, मेरी दवाइयाँ, मेरा पूजा का सामान, मेरी बैग, बस यहीँ से शुरू हो गया रोज़ का सफर, और फिरसे एक कश्मकश में भूल ही गए की हमें किसका इंतज़ार था। सपना टुटा, ज़िंदगी शुरू.... ज़रूरी नहीं की हर बार सपने में घोड़े पे बैठकर एक प्यारा सा राजकुमार ही आए !!

                     https://www.instagram.com/bela.puniwala/

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